खान अब्दुल गफ्फार खान हमेशा अपने साथ एक कपड़े की गठरी (थैला) रखते थे जिसे वह किसी को नही सौपते थे गांधी जी अक्सर उनसे मज़ाक किया करते थे की बादशाह थैले मे ऐसा क्या है जो किसी को हाथ भी नही लगाने देता। एक बार कस्तूर बा ने कह दिया आप बादशाह को थेले के बारे में मज़ाक न किया करे उनके थेले में एक पठानी सूट व जरूरत के कुछ सामान के अलावा कुछ भी नहीं है ॰ तो बापू हंसकर बोले मुझे क्या पता नहीं है की उस के पास पहनने को दो ही कपड़े है तभी तो मैं थेला देखने की बात करता हूं ऐसा हंसी मजाक मैं सिर्फ बादशाह के साथ ही कर सकता हूं और किसी के साथ करते मुझे किसी ने देखा है क्या ??? क्यों की बादशाह को मैं बिलकुल अपने जैसा पाता हूं।
जब 1969 मे गांधी जन्म शताब्दी पर इंदिरा जी के विशेष आग्रह पर ईलाज के लिए भारत आये तो हवाई अड्डे पर उन्हें लेने इंदिरा जी और जे॰पी॰ नारायण जी खुद आए । बादशाह खान जब हवाई जहाज से बाहर आये तो उनके हाथ में वही पोटली थी जिसके बारे मे गांधी जी मजाक करते थे । मिलते ही श्रीमती गांधी ने पोटली की तरफ हाथ बढ़ाया – इसे हमे दीजिये ,हम ले चलते हैं, बादशाह खान ठहरे, बड़े ठंढे मन से बोले – यही तो बचा है ,इसे भी ले लोगी ? बटवारे का पूरा दर्द खान साब की इस बात से बाहर आ गया । जे॰पी॰ नारायण और इंदिरा जी दोनों ने सिर झुका लिया । जे॰पी अपने आप को संभाल न पाये,उनकी आँख से आंसू गिर रहे थे।
1985 मे कांग्रेस स्थापना शताब्दी के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हे विशेष अतिथि के रूप मे पुनः आमंत्रित किया और इसके लिए तत्कालीन पाकिस्तान के तानाशाह प्रधानमंत्री जिया उल हक़ को उन्हे भारत आने की इजाजत देने के लिए कहा जब बादशाह खान भारत आए तब भी उनके हाथो मे वही पोटली थी जो पिछली बार 1969 मे इंदिरा गांधी के आमंत्रण पर वो साथ लाये थे राजीव गांधी इस पोटली के बारे जानते थे उन्होने बादशाह खान से कहा आपने कभी महात्मा गांधी और इंदिरा जी को ये पोटली को हाथ भी नही लगाने दिया लेकिन अगर आप चाहे तो क्या मै इस पोटली को खोल कर देख सकता हूँ ? बादशाह खान ने हँस कर अपने पठानी अंदाज़ मे कहा “ तु तो हमारा बच्चा है… देख ले … नही तो सभी सोचते होंगे पता नही बादशाह इस पोटली मे क्या छुपाए फिरता है “ जब राजीव गांधी ने पोटली खोल कर देखा तो उसमे सिर्फ दो जोड़ी लाल कुर्ता-पाजामा थे” और 1987 मे प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार द्वारा उन्हे भारत रत्न से नवाजा गया।
महात्मा गांधी के सत्य अहिंसा के सिद्धांतो का एक ऐसा पुजारी जिसका नाम तो बादशाह खान लेकिन फकीरो की तरह तमाम उम्र सिर्फ दो जोड़ी कुर्ता पाजामा के साथ जिंदगी व्यतित की जब की वह अलीगढ़ विश्वविद्यालय से पढ़ा लिखा, पख्तून के एक जमीदार का बेटा था और जिसका भाई लंदन से डाक्टर बन कर आया था और पख्तून का मुख्यमंत्री था।