सुसंस्कृति परिहार
कल आज जुमा था। सामूहिक नमाज़ का दिन। इस दिन प्राय:प्राय:सभी मुस्लिम मस्जिद जाकर नमाज़ अदा करना अपना फ़र्ज़ समझते हैं।वैसे ही उपस्थिति ज़्यादा होती है लेकिन जिस तरह भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपुर शर्मा ने पैगम्बर मोहम्मद साहब पर अनाप शनाप बोला फिर,माफी मांगी तथा भाजपा ने निष्कासन किया वह पर्याप्त नहीं माना गया। मुस्लिमों को बल मुस्लिम और गैर-मुस्लिम देशों से जिस तरह मिला उससे आस्था से जुड़े इस सवाल पर बबाल हो गया जो स्वाभाविक है। मुस्लिम देश भारत सरकार से माफी की मांग कर रहे हैं।
वहीं लोग ज्ञानवापी मस्जिद में तथाकथित शिवलिंग पर दिए वक्तव्य पर प्रोफेसर रतनलाल को हुई जेल को आधार बनाते हुए मोहतरमा नुपुर को उससे बड़ी धाराओं में जेल भेजने की बात कह रहे हैं। जो तार्किक रुप से सही भी है। भाजपा प्रवक्ता को सिर्फ निष्कासित करना उचित दंड नहीं कहा जा सकता। इसलिए मोहम्मद साहब का सवाल ज्यादा उछल रहा है तथा इसे अमेरिका भी स्पोर्ट कर रहा है।
स्मरण कीजिए उस दौर का ‘जब मंदिर वहीं बनाएंगे’ और’ जय श्री राम’ का नारा हिंदुओं की प्रगाढ़ आस्था का केन्द्र बन गया था और माननीय न्यायालय को बड़ी संख्या में हिंदुओं की आस्था को बीच में लाकर बाबरी विध्वंस पर अतार्किक फैसला लेना पड़ा। तब मुस्लिम समुदाय ने फैसले को देशहित में सहज स्वीकार्य कर लिया था। इसके पीछे उनकी सोच शायद यही रही होगी कि इस मस्जिद में नमाज नहीं होती थी एक खंडहर के रूप में पड़ी थी। इसलिए इसका करता औचित्य?
लेकिन आज जब उत्तरप्रदेश, पंजाब, दिल्ली रांची से लेकर हावड़ा तक आस्था का सवाल बातरह गूंज रहा है तब उसे बंदूक के साए में सुलझाया नहीं जा सकता। इससे हिंदू मुस्लिम विवाद और गहराएगा तथा बेवजह लोग मारे जायेंगे। जिससे एक बड़ा संकट गहरा जाएगा वह है हमारा बाजार। देश पेट्रोलियम पदार्थों के लिए तरसेगा दूसरे मुल्कों से बड़ी क़ीमत देकर खरीदेगा। मुस्लिम देशों के साथ हमारा व्यापार खत्म होगा। साथ ही करोड़ों लोग जो तमाम मुस्लिम देशों में नौकरियां कर रहे हैं उन्हें भारत वापस भेज दिया जायेगा। इस तरह की इक्का दुक्का देश कार्रवाई शुरू भी कर दिए
हैं। आगे का हाल ख़ुदा जाने।
अभी भी समय है हमारी और उनकी आस्था को अलग थलग ना मानकर एक जैसा व्यवहार सरकार करे। माफ़ी मांग लेने से यदि समस्या का हल हो जाए तो बुरा क्या? पहल भारत को करनी होगी। साथ ही साथ कश्मीर , उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्यप्रदेश,कर्नाटक में मुस्लिमों के साथ जो गलत हो रहा है वह अध्याय भी बंद करें। अपने आका संघ प्रमुख मोहन भागवत का कहा ही मान लें -“हम सबका डी एन ए एक है” तो काहे का लफड़ा। यदि हिंदुत्ववादी संगठन सबक नहीं सीखते तो दुनियां हिंदू वर्सिस मुस्लिम युद्ध देखने तैयार रहें। उम्मीद तो यही है कि देश अपनी साझा संस्कृति अक्षुण्ण रखेगा। ऐसे दौर में अल्लामा इक़बाल बहुत याद आ रहे हैं
ईरान मिस्त्र और रोमां सब मिट गए जहां से
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।