राजीव रंजन सिंह
आजकल सीएम योगी आदित्यनाथ हर जगह बोलते हैं कि रामभक्तों पर गोली चलवाने वालों को वोट दिया तो ये पाप है। यह चुनावी स्टंट भले है लेकिन मुझे लगता है असल मुद्दों से भटकाव है। ऐसा नहीं कि अखिलेश बहुत मूल्यों की राजनीति कर रहे या दूसरे भी कर रहे, लेकिन समाज में जिस तरह की नफ़रत, बहस चुनाव को लेकर दोस्तों में हो जाती है। वो देखकर मन दुखी होता है, मेरी समझ से चुनाव के मुद्दे रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क, जैसे- बुनियादी मुद्दों तक महदूद रहने चाहिए। अब रामभक्तों पर गोली चलाने वालों से बीजेपी के रिश्ते की बानगी के तथ्य।
भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी जी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि 1999 में लोकसभा में अटल जी के विश्वास मत एक वोट से हारने के ठीक चार दिन बाद सोनिया गांधी ने सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया, जिसमें मुलायम सिंह के समर्थन का भी ज़िक्र था, इसकी अगली रात जया जेटली के घर मुलायम सिंह और आडवाणी में गुप-चुप मुलाक़ात हुई। रामरथ यात्रा के जनक ने राम भक्तों पर गोली चलवाने से मदद माँगी कि सोनिया को सरकार बनाने से रोका जाए, मुलायम सिंह ने भरोसा दिया लेकिन आडवाणी पर शर्त रखी कि फिर इसके बाद चुनाव कराने होंगे.. बाद में ऐसा ही हुआ।
2002 में फिर अटल सरकार और एनडीए के सामने संकट आया कि अपना राष्ट्रपति कैसे बनाया जाए, तब फिर मुलायम संकटमोचन बने और डॉ. एपीजे कलाम का नाम सुझा दिया गया। कांग्रेस को फिर झटका दिया।
अटल, आडवाणी की जोड़ी एहसान का बदला ब्याज समेत वापस करती थी। 2003 में बीएसपी को यूपी की सरकार से न सिर्फ़ बेदख़ल किया, बल्कि बीएसपी में तोड़फोड़ कराकर मुलायम सिंह की सरकार बनवा दी और वह सरकार साढ़े तीन साल चली। हैरत की बात कि सरकार राम भक्तों पर गोली चलवाने वाले की और विधानसभाध्यक्ष रामभक्त केशरी नाथ त्रिपाठी बने रहे।
इसके अलावा और भी बहुत उदाहरण हैं। चूँकि कम उम्र के लोगों के ज्ञान का मूल स्रोत आजकल सोशल मीडिया है इसलिए तथ्य रखना ज़रूरी लगता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, और न्यूज़ 24 में कार्यरत हैं)