जब ‘संगम’ की ग़ज़ल की रिकॉर्डिंग के दौरान नुसरत फतेह अली ख़ान की आंखों से निकले थे आंसू

शहंशाह-ए-कव्वली नुसरत फतेह अली खान 28 साल पहले इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। लेकिन उनके जाने के बाद भी उनकी कव्वाली पर झूमने वाली पीढ़ी अभी मौजूद है। अपनी गायकी और कव्वाली के फ़न की बदौलत शहंशाह-ए-कव्वाली आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं। पाकिस्तान में पैदा हुए नुसरत अली फतेह अली ख़ान जब कव्वाली के स्टेज पर आए तो उनके लिये सरहदें की कोई अहमियत ही नहीं रही। जिस तरह उन्हें पाकिस्तान में सुना जाता था, भारत में नुसरत के चाहने वाले उससे भी बड़ी तादाद में मौजूद हैं। राज्यसभा के पूर्व सांसद और मशहूर गीतकार जावेद अख़्तर कहते हैं, “नुसरत फ़तेह अली खान अपने काम में इतने तल्लीन रहते थे कि वे उसका हिस्सा लगने लगते थे।’

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जावेद बताते हैं कि मेरी ग़ज़लों की एक एल्बम ‘संगम ’की एक ग़ज़ल की रिकॉर्डिंग के दौरान, जिसके बोल थे, तो अब क्या सोचे, क्या होना है, जो होगा, अच्छा होगा’, इस दौरान वे लगातार रोते हुए और रिकॉर्डिंग होती रही।’ जावेद अख्तर के मुताबिक़, ‘संगम’ की इस ग़ज़ल की रिकॉर्डिंग करते हुए रोते रहे, यह गज़ल जावेद अख़्तर ने ही लिखी थी।

अब क्या सोचे क्या होना हैं जो होगा अच्छा होगा

पहले सोचा होता पागल अब रोने से क्या होगा

यार से गम कह पर तो खुशरो लेकिन तुम ये क्या जानो

तुम दिल का रोना रोते थे वो दिल में हसता होगा

आज किसी ने दिल तोडा तो हमको जैसे ध्यान आया

जिसका दिल हमने तोडा था वो जाने कैसा होगा

मेरे कुछ पल मुझको दे दो बाकि सारे दिन लोगो

तुम जैसा जैसा कहते हो सब वैसा वैसा होगा

अपनी फनकारी से पाकिस्तान में धूम मचा देने वाले नुसरत फतेह अली खान को जब बॉलीवुड में काम करने के लिए आमंत्रित किया गया, तो उन्होंने शायरी के मामले में अपनी पसंद को ज़ाहिर करते हुए स्पष्ट कह दिया कि वे केवल जावेद अख्तर के साथ काम करेंगे। पाकिस्तान और भारत के दो महान कलाकारों ने एक साथ काम किया और एल्बम ‘संगम’ को रिलीज़ किया। इस एल्बम का सबसे मशहूर गीत ‘आफरीन आफरीन’ था। जावेद अख़्तर के इन अल्फाज़ को नुसरत फतेह अली ख़ान ने ऐसी आवाज़ दी कि गज़ल खत्म होने के बाद भी दिलो दिमाग़ पर छाया उनकी आवाज़ का जादू आसानी से नहीं उतरता।

जावेद अख्तर बताते हैं कि संगम पर काम करने के दौरान तीन चार रोज़ तक नुसरत फतेह अली खान के साथ रहने का मौक़ा मिला था। इस दौरान नुसरत फतेह अली ख़ान की सारा ध्यान या तो काम पर रहता या फिर वो मेरे अशआर सुनते या फिर अपना संगीत सुनाते थे। जावेद अख्तर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि “मैंने अक्सर नुसरत फतेह अली खान को लंबे समय तक एक स्थान पर खामोशी से बैठे हुए घूरते देखा और फिर अचानक वे हारमोनियम अपने क़रीब करते और बजाना शुरु कर देते वे अपने काम से इश्क करते थे।”