वीर विनोद छाबड़ा
‘आराधना’ (1969) की रिलीज़ ने तहलका मचा दिया था. हर तरफ सिर्फ़ दो ही के नाम की गूंज थी, राजेश खन्ना और किशोर कुमार…रूप तेरा मस्ताना…हालांकि दो गानों में मोहम्मद रफ़ी भी थे…बागों में बहार है…गुनगुना रहे हैं भंवरे खिल रही है कली कली…गाने हिट भी हुए, मगर फिर भी रफ़ी की कोई पूछ नहीं हुई. इधर राजेश खन्ना और किशोर एक दूसरे के पूरक हो गए. परदे पर राजेश और पीछे किशोर. ये वो दौर था जब रफ़ी को पहली पसंद मानने वाले शम्मी कपूर और राजेंद्र कुमार रिटायरमेंट की कगार पर थे और रफ़ी की आवाज़ के कारण मशहूर हुए जॉय मुख़र्जी, बिस्वजीत और प्रदीप कुमार की कोई पूछ नहीं थी। मनोज कुमार के लिए महेंद्र कपूर लकी हो गए थे.
रफ़ी के पीछे हो जाने का उलटफेर शुरू हुआ आर.डी. बर्मन के कारण. हुआ ये कि ‘आराधना’ के निर्माण के दौरान एसडी बर्मन बीमार पड़ गए. सारी बागडोर उनके सपुत्र पंचम उर्फ़ आरडी के हाथ में आ गयी. उन्होंने रफ़ी को किनारे कर दिया और रूप तेरा मस्ताना…किशोर से गवा दिया. अंदरखाने के एक्सपर्ट्स का कहना था कि अगर बर्मन दा बीमार न पड़ते तो निश्चित ही रफ़ी से ही ये गाना गवाते.
लेकिन मेरे विचार से परिवर्तन तो वक़्त की आवाज़ है. किसी के होने न होने से नहीं रुकता है. ये तो होना ही था. इलज़ाम आरडी पर आ गया. मगर रफ़ी साहब इस परिवर्तन को दिल पर ले बैठे. वो डिप्रेशन में डूब गए. उन्हें लोग समझाने लगे, ऐसे नहीं, ऐसे गाओ. ये सब देख कर नौशाद अली साहब बहुत आहत हुए, ये तो एक रफ़ी जैसे महान गायक का अपमान है कि उन्हें गाने का ढंग सिखाया जा रहा रहा. उन्होंने रफ़ी को बुलवाया, तुम ये मत भूलो कि क्लासिकल गायन में आप उस्ताद हो. जिनसे आप परेशान हैं उनका क्लासिकल में कोई तजुर्बा नहीं है. मत भूलें आप रफ़ी हैं, एक मुक़म्मल गायक. आपसे कोई मुक़ाबला कर ही नहीं सकता. ये सुन कर रफ़ी साहब का हौंसला बढ़ा. अगले ही दिन नौशाद साहब ने ‘माई फ्रेंड’ की रिकॉर्डिंग रखी और रफ़ी को बुलवाया. राग भैरवी में उनसे गवाया…नैया मेरी चलती जाए, सहारे तेरे बढ़ती जाए…एक ही टेक में गाना रिकॉर्ड हो गया. रफ़ी साहब का कॉन्फिडेंस भी बढ़ा. हालाँकि ये फिल्म थोड़ा विलंब से 1974 में रिलीज़ हुई. मज़े की बात ये थी कि ये गाना नौशाद साहब के सखा शकील बदायूंनी ने नहीं हसरत जयपुरी ने लिखा था.
कुछ ही दिन बाद रफ़ी साहब को ‘हवस'(1974) के इस गाने के लिए फ़िल्म वर्ल्ड मैगज़ीन ने बेस्ट सिंगर का अवार्ड दिया…तेरी गलियों में न रखेंगे क़दम आज के बाद…बरसों बाद उन्हें कोई अवार्ड मिला था. इसके बाद किशोर कुमार की आंधी के बावजूद रफ़ी साहब पूरी मुस्तैदी से गायन की दुनिया में जमे रहे. 1977 में रफ़ी साहब को ‘हम किसी से कम नहीं’ के लिए बेस्ट सिंगर का नेशनल अवार्ड तो मिला ही फ़िल्मफ़ेयर ने भी बेस्ट प्लेबैक सिंगर अवार्ड दिया…क्या हुआ तेरा वादा वो क़सम वो ईरादा…और मज़े की बात देखिये म्यूज़िक डायरेक्टर कोई अन्य नहीं, वही आर.डी.बर्मन थे जिन पर लेबल लगा था कि वो किशोर कुमार के मुरीद हैं.