लालू प्रसाद यादव
सच कहूँ तो किसी ने मुझे इस यात्रा को रोकने या आडवाणी को गिरफ्तार करने के लिए नही कहाँ था। प्रधानमंत्री ने कुछ नही कहा। मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने जो तब केंद्रीय गृह मंत्री थे, मुझे दिल्ली बुलाकर जानकारी ली कि क्या मैंने आडवाणी को रोकने की योजना बनाई है। जब मैंने इस बारे में साफ़ साफ़ कुछ नही कहा तो वह कहने लगे, आप इसे अपने ऊपर क्यों लेना चाहते है? यात्रा को जारी रहने दीजिए।
मैंने बेहद सख्त लहजे में उनसे कहा आप सबको सत्ता का नशा चढ़ गया है। हालांकि इसी समय प्रधानमन्त्री आवास पर व्यस्तताएं बढ़ गई थी। वीपी सिंह ने अनेक हिन्दू धर्मगुरुओ की अपने यहाँ बैठक बुलाई और इन लोगो ने उन्हें यही कहा कि यात्रा नही रोकी जानी चाहिए। समझौते से सम्बंधित कई फार्मूले भी सामने आए, लेकिन इनमें से किसी पर भी सहमति नही बनी।उस बैठक में कोई समाधान नही निकला।
इस तनाव भरे माहौल के बीच में बिहार शरीफ गया, जहा के लोगों ने मुझे एक हरी पगड़ी भेंट की। मैं उसे अपने घर ले आया और खुद से कहा कि यह पगड़ी उस भरोसे का प्रतीक है जो अल्पसंख्यक समुदाय मुझ पर रखता है। इस देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को मुझे हर हाल में बचाना ही होगा। उस पगड़ी को मैंने अपने बेडरूम में रखा और यह प्रतिज्ञा की कि राज्य में सांप्रदायिक भाईचारा बरकरार रखने की अपनी जिम्मेवारी से कभी पीछे नही हटूँगा।
मेरे दिमाग में यह बात साफ़ थी कि आडवाणी की यात्रा अल्पसंख्यक समुदाय और सांप्रदायिक भाईचारे के लिए सीधा और वास्तविक खतरा थी। सख्त कदम उठाने के बारे में सोच लेने के बाद मैंने राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बेडरूम में ही एक बैठक की। प्रधान सचिव मुकुंद प्रसाद और दूसरे अधिकारी बैठक में मौजूद थे। मैंने उन सबसे कहा की यात्रा रोकनी होगी और आडवाणी और उनके साथ साथ संघ परिवार के दूसरे नेताओं जैसे विश्व् हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल (अब दिवंगत) को गिरफ्तार करना पड़ेगा।
(गोपालगंज से रायसिना – मेरी राजनीतिक यात्रा – लालू प्रसाद यादव )