संजय कुमार सिंह
‘एक देश, एक टैक्स’ – का मकसद यही था कि ज्यादा वस्तुओं-सेवाओं पर कम टैक्स लगे और टैक्स की दर एक हो। इससे टैक्स चोरी भी कम होगी। पर टैक्स की दर एक होना तो छोड़िए, न्यूनतम दर को भी पांच प्रतिशत से कम नहीं किया जा सका। टैक्स व्यवस्था ऐसी है कि सैनिटेरी नैपकिन पर भी टैक्स लगाया गया। जब विरोध हुआ, मुद्दा बना तो कहा गया कि किसी (या इस खास) आयटम को टैक्स ब्रैकेट से बाहर रखना संभव ही नहीं है। पर जब लगा कि मामला अदालत में चला जाएगा तो उसे अचानक टैक्स से अलग कर दिया गया। कैसे हुआ राम जानें। अभी क्या स्थिति है मैं नहीं जानता पर पेट्रोलियम पदार्थों को अभी तक जीएसटी के तहत नहीं लाया जा सका है और ज्यादा टैक्स लेने के लिए कानून में संशोधन किए गए हैं। अभी 50 प्रतिशत से ज्यादा टैक्स है। कहा यह जाता रहा है कि टैक्स चोरी कम हो जाए तो टैक्स की दर कम की जा सकेगी।
पर जहां चोरी की आशंका सबसे कम है (पेट्रोलियम पदार्थ) वहां टैक्स सबसे ज्यादा है। वह भी तब जब हमारे यहां एक लक्जरी टैक्स है और एक सिन (पाप) टैक्स की अवधारणा भी। लक्जरी टैक्स विलासिता की वस्तुओं पर लगता है लेकिन पेट्रोल डीजल जैसी जरूरी चीज से कम है। भले एयर कंडीशनर और एयर कंडीशन कमरों पर भी लगता है। इसी तरह, सिगरेट, तंबाकू, गुटखा पर सिन टैक्स लगाने का प्रचलन है। शराब पर टैक्स ज्यादा रखा जाता है ताकि लोग कम सेवन करें और करें तो भारी टैक्स दें। लेकिन अलग चाल चरित्र और चेहरे वाली पार्टी इसपर प्रतिबंध लगाकर टैक्स की रकम से हाथ धोना पसंद करती है। क्योंकि बहुमत (जैसे भी हासिल हुआ हो) का मतलब मनमानी मान लिया गया है। अगर सिगरेट, तंबाकू, पान मसाला की ही बात करूं तो भारत में सिन टैक्स विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश से कम है। इतना कम कि उसे शायद ही सिन टैक्स कहा जा सके।
ऐसी हालत में सरकार टैक्स चोरी तो नहीं रोक पा रही है ऐसे नियम बना दिए हैं जिससे धंधा-कारोबार करना ही मुश्किल है। बैंक खाता खोलने के लिए पैन नंबर जरूरी है। जीने के लिए आधार नंबर। फिर भी टैक्स की दर न्यूनतम पांच प्रतिशत रही। कम नहीं हुई और अब बढ़ाने की बात चल रही है। एक देश, एक दर तो मुद्दा ही नहीं है। पूरी व्यवस्था में चोरी और बेईमानी का जो आलम है वह अपनी जगह। जब टैक्स की न्यूनतम दर आठ प्रतिशत होगी तो चोरी होगी ही। बढ़ेगी भी। बिना बिल सामान बिकेंगे ही और रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार सब चलेगा। कमीशन तो यह होता ही है। प्रधानमंत्री इसे ठीक करने का वादा करके सत्ता में आए थे पर अब चुनाव जीतने में ही लगे रहते हैं। और तो और पीएम केयर्स के नाम पर भ्रष्टाचार, टैक्स और कमीशन खोरी को जायज बना दिया गया है।
कहने की जरूरत नहीं है कि टैक्स दर में वृद्धि की जरूरत तब पड़ रही है जब रेल टिकट से लेकर तमाम नई चीजों और सेवाओं को टैक्स ब्रैकेट में ले आया गया है। पार्किंग का शुल्क तो बढ़ा ही है उसपर भी टैक्स है। दूसरी ओर, बिहार जैसे गरीब राज्य को शराब पर टैक्स की जरूरत नहीं है। और वह शराब बंदी तथा इस नाते पर्यटन से लेकर कई दूसरे धंधों पर नुकसान सहने में सक्षम है जबकि वहां डबल इंजन की सरकार है। जीएसटी दर बढ़ाना एजंडा में है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)