लक्ष्मीप्रताप सिंह
अफगानिस्तान में बच्चा-बाजी यानी बच्चों को सेक्स के लिए गुलाम बनाके रखना क्या सिर्फ तालिबान करता है? जी नहीं। ये घिनौना काम अमेरिकी सेना का साथ देने वाली अफगानी सेना भी करती रही है और अमेरिका की जानकारी में। 2015 में The New York Times में छपी खबर के अनुसार पहली फोटो अमेरिकी स्पेशल फ़ोर्स के कप्तान “डेन क्विन” (पहली फोटो) की है।
डेन की अमेरिकी सेना समर्थित ग्रुप के एक लड़ाके लीडर से हाथापाई हो गयी थी जब उन्होंने देखा कि उस अफगानी कमांडर ने अपने बेड से एक लड़का कुत्ते की तरह गले में जंजीर डाल के बांध रखा था। वो कमांडर उस बच्चे को सेक्स के लिए यूज करता था। जब डेन ने विरोध किया तो हाथापाई तक बात पहुँच गयी, इस पर डेन ने कमांडर को पीटा और अमेरिकी सेना से डेन को नौकरी से वापस भेज दिया।
दूसरी तस्वीर अमेरिकी मरीन के लेंस कोरपोरेल, ग्रेगरी बकले जूनियर ने अपने पिता को फोन करके बताया कि अफगानी पुलिस रात को उन बच्चों का सेक्सुअल अब्यूज कर रही है जिन्हें वो दिन में पकड़ पे बेस पर लाए हैं। “हमें रात को बच्चों की चीखें सुनाई देतीं हैं लेकिन हम कुछ कर नहीं सकते” जब पिता ने सीनियर्स से शिकायत की बात कही तो ग्रेग्ररी ने बताया की अमेरिकी फ़ौज के अधिकारियों का कहना है की इसे नजर अंदाज करो क्योंकि ये अफगानिस्तान का कल्चर है और इसे यहाँ “बच्चा-बाजी” कहते हैं। बकले की इस घटना के बाद उसी बेस पर गोली मार कर हत्या कर दी गयी, उनके पिता का कहना है कि इसके पीछे उसी विरोध का हाथ है।
अफगानिस्तान में बच्चों और लड़कियों को सेक्स स्लेव बनाने की समस्या नई नहीं है। शस्त्र सेनाओं के कमांडर शुरू से ऐसा करते रहें हैं। तालिबान से बचाने के लिए अमेरिकी सेना मिलिटेंट ग्रुप्स को भर्ती कर रही थी, प्रशिक्षण दे रही थी, हथियार देकर गावों और सूबों का कमांडर भी बना रही थी। जब यही कमांडर बच्चों को अब्यूज करना शुरू करते थे तो सेना को ऊपर से ये सब इग्नोर करने के ऑर्डर थे।
अमेरिकी स्पेशल फ़ोर्स के कप्तान क्विंन ने एक ऐसे ही कमांडर को पीटा जिसने एक बच्चे को चेन से बंधा हुआ था जिसके बाद सेना ने उन्हें वापस बुला कर नौकरी से निकाल दिया। उनका कहना था की हम अफगानिस्तान में इस लिए थे क्योंकि तालिबान ने हक़ छीने ज़्यादती की लेकिन जिन्हें हम सत्ता सौंप रहें वो उनसे भी ज्यादा भयानक कृत्य कर रहे हैं। क्विंन की तरह ही सार्जेन्ट फर्सस्ट क्लास “चार्ल्स मार्टलेंड” ने भी एक अफगानी सेना के कमांडर को अपनी हवस के लिए बच्चों को यातना देते देखा तो पीट दिया, उन्हें भी अमेरिकी सेना जबरजस्ती रिटायर कर रही थी।
अफगानिस्तान की समस्या वहां के अतिवादी और अति धार्मिक कट्टरवादी लोगों की मानसिकता से शुरू हुईं है। इस मानसिकता को जब राजनीतिक संरक्षण मिला तो ज़्यादती शुरू हुईं और जब अमेरिका ने इसे दक्षिण एशिया और रूस-चीन के खिलाफ टूल की तरह प्रयोग करने और अफगानिस्तान में दबे कोबाल्ट के सबसे बड़े भंडार को दोहने की सोची तबसे हालात बाद-से-बदतर हो चले हैँ। अमेरिकी फ़ौज के जाने के बाद अफगानिस्तान के पास एक सुनहरा मौका था की वो एक नये संविधान, प्रशासन व शासन व्यवस्था की नींव रखते लेकिन जिनके हाथ सत्ता आयी वो स्वयं अमेरिका के हाथ की कठपुतली थे। बिना चुनाव सत्ता देने का मतलब साफ था कि कल फिर तालिबान काबिज़ हो जायेगा। उन्हें अपनी अय्याशी व अतिवादिता के आगे कुछ भी जायज नहीं लगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)