वक़्फ़ बोर्ड भारतीय मुस्लिमो के विकास में सहायक, सही इस्तेमाल के ज़रिये बदल सकती है मुस्लिमो की तक़दीर

डॉक्टर शुजाअत अली क़ादरी

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भारत में मुसलमानों को कई तरह के विशेष प्रयोजन से विशेषाधिकार प्राप्त हैं जिसमें सामुदायिक और निजी अधिकार शामिल हैं। इसमें वक़्फ़ बोर्ड सम्पत्ति का, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक वित्त विकास निगम वित्तीय विकास का, अल्पसंख्यक आयोग मानवाधिकार का, मौलाना आज़ाद फाउंडेशन शैक्षणिक उत्थान का और पिछड़ा वर्ग मुसलमानों के अधिकारों के लिए कार्यरत है। इसी तरह राज्यों में कार्यरत इस मिजाज़ के कार्यालय भी मुसलमानों के विकास और उत्थान के लिए रात दिन कार्य कर रहे हैं।

आज अपनी पहली सिरीज़ में हम बात करेंगे की वक़्फ़ की मंशा क्या होती है? भारत में वक़्फ़ के लिए किस तरह के प्रावधान हैं और वक़्फ़ बोर्ड से जुड़ी कितनी जानकारियाँ हैं जो मुस्लिम समाज के सम्मुख स्पष्ट होनी चाहिए।

इस्लामी फ़िक़ (न्यायिक व्याख्या) के अनुसार वक़्फ़ का अर्थ है अहरणीय (जिसे वापस ना लिया जा सके)। मुस्लिम धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए एक इमारत, भूमि का भूखंड या अन्य संपत्ति दान करना इस प्रथा में शामिल है। एक धर्मार्थ ट्रस्ट दान की गई संपत्ति को धारण कर सकता है। ऐसा समर्पण करने वाले व्यक्ति को वाक़िफ़ (दाता) के रूप में जाना जाता है। मरियम वेबस्टर शब्दकोश के मुताबिक़ वक्फ़ का अर्थ है “संपत्ति का एक इस्लामी बंदोबस्ती ट्रस्ट में रखा जाना और धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्य के लिए इसका इस्तेमाल” और “एक संपन्न ट्रस्ट फंड द्वारा बनाई गई एक मुस्लिम धार्मिक या धर्मार्थ संस्था”। तुर्की में उस्मानियों ने इसे शुरू किया और बाद में फिलिस्तीन के ब्रिटिश जनादेश के तहत वक़्फ़ को राज्य की हिफ़ाज़त में चलने वाले बोर्ड का रूप दिया जो कल्याणकारी कार्यों के लिए इसका इस्तेमाल कर सकता है। उस्मानियों से सीखकर ब्रिटिश राज इसे पहले मिस्र और बाद में भारत लाया।

आज भारत में वक़्फ़ कई रूपों में परिभाषित है। भारत सरकार केन्द्रीय वक़्फ़ परिषद् चलाती है। इसे के तहत वर्ष 2013 में स्थापित ‘नवाडको’ यानी राष्ट्रीय वक़्फ़ विकास परिषद भी चलाती है। इसी तरह राज्यों के वक़्फ़ बोर्ड भी अलग अलग क़ानूनों के तहत कार्य करते हैं। वक़्फ़ बोर्ड शुद्ध रूप से मुसलमानों की वक़्फ़ की सम्पत्तियों के संरक्षण और विकास के काम देखती है। यह हो सकता है कि किसी राज्य का वक़्फ़ बोर्ड बेहतर काम कर रहा हो और कहीं का नहीं। यह मानवीय इच्छा शक्ति का भी मुद्दा हो सकता है।

केन्द्रीय वक़्फ़ परिषद : वक़्फ़ एक्ट 1954 के आलोक में भारत सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के तहत केन्द्रीय वक़्फ़ परिषद का गठन 1964 में किया गया। बाद में इसे वक़्फ़ एक्ट 1995 की एक उपधारा के तहत कर दिया गया। केन्द्रीय वक़्फ़ परिषद का काम राज्य के वक़्फ़ बोर्डों को सलाह देना और उनकी कार्यक्षमता में विकास करना है। इसका अध्यक्ष केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्री ही होगा जिसे 20 अन्य सदस्य सलाह देंगे। इनकी नियुक्ति भारत सरकार करती है।

न्यायमूर्ति श्वाश्वत कुमार ने वर्ष 2011 में एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत में वक़्फ़ बोर्ड के पास (वर्ष 2011 की गणना के अनुसार) 1 लाख 20 हज़ार करोड़ रुपए का लैंड बैंक है जिससे सालाना 12 हज़ार करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त किया जा सकता है जो समाज की भलाई पर ख़र्च किया जा सकता है

भारत के कई राज्यों के बोर्ड बहुत ही नुमाया काम कर रहें है, हरियाणा के वक़्फ़ बोर्ड ने 2011 में रिकॉर्ड कमाई अर्जित की। अभी राजस्थान वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमेन डॉ. खानू ख़ान बुधवाली कई वक़्फ़ सम्पत्तियों को ख़ाली करवा चुके हैं और वे लगातार वक़्फ़ सम्पत्तियों से क़ब्ज़े हटवाने की मुहिम पर कार्य कर रहे हैं।
भारत की वक़्फ़ परिषद के पास वित्तीय शक्तियाँ भी हैं जिनका हम अगले आलेख में ज़िक्र करेंगे।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और मुस्लिम कम्युनिटी के लीडर हैं)