श्याम मीरा सिंह
कुछ नफ़रती चिंटू भाला फेंक खेल में भी महाराणा और मुग़ल ले आए हैं. दावा कर रहे हैं कि राणा का वंशज है इसलिए इतना लंबा भाला फेंक दिया, जैसे महाराणा मुग़लों की सेना में भाला फेंकते थे और मुग़ल सेना काँपती थी. पहली बात ये कि योद्धाओं को धर्म में बांधकर नहीं देखना चाहिए. किसी भी धर्म या जाति में योद्धाओं की कमी नहीं रही है. महाराणा महान योद्धा थे तो मुग़ल भी महान लड़ाके थे. और महाराणा की जिस पंक्ति का इस्तेमाल दक्षिणपंथी कर रहे हैं कि “तू है वंशज महाराणा का फेंक जहां तक भाला जाए” ये भी किसी और ने नहीं बल्कि “वाहिद अली वाहिद” ने लिखी है. जब वाहिद अली वाहिद ने महाराणा की तारीफ़ करते समय उनका और अपना धर्म नहीं देखा तो आप उनकी पंक्ति का इस्तेमाल करते हुए धर्म क्यों देख रहे हैं?
और जिन मुग़लों के काँपने की बात आप कर रहे हैं उन मुग़लों के आगे न जाने कितने राजाओं ने तो लड़ने की हिम्मत भी नहीं की, मिनट भर में ही मुग़लों की अधीनता स्वीकार कर ली. मुग़ल राजाओं ने झेलम नदी से लेकर गोदावरी नदी की ज़मीन को अपनी तलवारों और घोड़ों से रौंदकर इस देश के सबसे बड़े हिस्से पर वर्षों शासन किया है. इसलिए कँपने-कँपाने वाली बात मुग़लों के लिए मत बोलो. आसमान में थूकने से थूक आपके मूँह पर ही गिरेगा आसमान पर नहीं.
बातों की जलेबियाँ तल राजपूतों का तुष्टिकरण बंद करो. जो अपने पुरखों की तारीफ़ सुन मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. राजपूत राजाओं में भी जाँबाज़ लड़ाके थे, मगर उन्हें महान बताने के लिए किसी दूसरे धर्म को नीचा दिखाने की ज़रूरत नहीं है, ये ओछी और दंगाई हरकत है. महान मुगल राजाओं का ज़िक्र करते हुए भी महाराणा की बहादुरी की प्रशंसा की जा सकती है, महाराणा की प्रशंसा करते हुए भी मुग़लों की भी प्रशंसा की जा सकती है. अपनी लकीर बड़ी दिखाने के लिए दूसरे की लकीर मिटाने वाले कमजोर और कायर लोग होते हैं, नीरज को प्रतिबिंबों और कविताओं में महाराणा का वंशज कहा जा सकता है मगर ऐसे कायरों को इतिहास नफ़रती चिंटुओं के नाम से दर्ज करता है.
क्या है वाहिद अली वाहिद की पूरी नज़्म
यहां वाहिद अली वाहिद की उस नज़्म को प्रस्तुत किया जा रहा है जो नीरज चोपड़ा द्वारा ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के बाद सोशल मीडिया पर चर्चा में आ गई-
कब तक बोझ संभाला जाए
द्वंद्व कहां तक पाला जाए
दूध छीन बच्चों के मुख से
क्यों नागों को पाला जाए
दोनों ओर लिखा हो भारत
सिक्का वही उछाला जाए
तू भी है राणा का वंशज
फेंक जहां तक भाला जाए
इस बिगड़ैल पड़ोसी को तो
फिर शीशे में ढाला जाए
तेरे मेरे दिल पर ताला
राम करें ये ताला जाए
वाहिद के घर दीप जले तो
मंदिर तलक उजाला जाए
कब तक बोझ संभाला जाए
युद्ध कहां तक टाला जाए
तू भी राणा का वंशज
फेंक जहां तक भाला जाए
आपको पता है नीरज चोपड़ा को किसने ट्रेनिंग दी? उनके कोच का का नाम क्या है? नीरज चोपड़ा के कोच का नाम “नसीम अहमद” है. जिन्होंने पंचकुला में नीरज को 6 साल ट्रेनिंग दी. अब भी जब नीरज कोई मेडल या प्रतियोगिता जीतता है तो सबसे पहली तस्वीर अपने गुरु नसीम अहमद को ही भेजता है. और जितनी ख़ुशी नागपुरी संतरों को नीरज के जीतने पर आज हो रही है. उससे ज़्यादा ख़ुशी नसीम अहमद को नीरज के यहाँ तक सफ़र पर हुई है. कोच नसीम अहमद ने नीरज को हारते, थकते, गिरते और जीतते हुए देखा है, उनका हर वक्त साथ निभाया है. और आपने सिर्फ़ जीत में ही नीरज को देखा है और अपना दावा कर दिया.
नीरज ने 87 मीटर भाला फेंकने पर गोल्ड जीता है. आपको पता है इससे पहले जर्मनी के Uwe Hohn ने 104.80 मीटर भाला फेंकने का विश्व Record बनाया हुआ है. नीरज क्या पूरे भारत में, भारत ही क्या पूरे विश्व में भी आगे चलकर कोई Uwe Hohn की बराबरी भी नहीं कर पाएगा. अब आप ही बताइए Uwe Hohn को किसका वंशज कहा जाए? क्या उसके वंशज महाराणा से भी अच्छा भाला चलाते थे?
कुल जमा कहानी ये है कि भावनाओं में मत बहा करिए. इन भावनाओं के कारण ही एक नितांत अयोग्य आदमी आपका प्रधानमंत्री बना बैठा है. उसी का आइटी सेल और उसके समर्थक आज भी आपकी भावनाओं को हिला डुला कर चेक करते रहते हैं. इसलिए खेल को खेल रहने दीजिए, युद्ध न बनाइए. नीरज को महाराणा का वंशज कह सकते हैं इसमें भी कोई बुराई नहीं है. मगर महाराणा का वंशज कहने लिए दूसरे धर्म को टार्गेट करने की आवश्यकता नहीं पड़ती. जो ऐसा कर रहे हैं उनका अपना अंडरवीयर उतर जाएगा 50 फ़ुट भाला फेंकने में.
(लेखक युवा पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक वाॅल से लिया गया है)