वीवीपैट पर्चियों की गिनती का मौजूदा विवाद क्या है यह समझना जरूरी है!

ईवीएम पर जब कई प्रश्न खड़े हुए तो वोटर-वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल वीवीपैट की व्यवस्था शुरू की गई थी, लेकिन एसी पर्चियों का फ़ायदा ही क्या जब उनमें से कुछ वीवीपैट पर्ची की गिनती मतगणना के साथ न हो ?

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2019 में जब आम चुनाव हुए थे तो विपक्षी दलों के नेताओं ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसमें उन्होंने एक निर्वाचन क्षेत्र में कम से कम 50 फीसदी वीवीपैट पर्चियों का मिलान किए जाने की मांग की थी। ताकि चुनावी प्रक्रिया की शुद्धता बनी रहे।

लेकिन उनकी इस मांग को नही माना गया चुनाव आयोग ने अपने जवाब में कहा, ‘अगर हर संसदीय या विधानसभा क्षेत्र की 50 प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाएगा तो इससे गिनती करने का वक्त बढ़ेगा। इसमें करीब 5 दिन तक ज्यादा लग सकते हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों की घोषणा 23 मई की जगह 28 मई को हो पाएगी।’

अप्रैल 2019 मे सुप्रीम कोर्ट ने बस इतना ही किया कि चुनाव आयोग वीवीपैट पर्चियों को एक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) प्रति विधानसभा क्षेत्र से बढ़ाकर पांच करने का आदेश दिया इससे पहले चुनाव आयोग प्रत्येक क्षेत्र से कोई भी एक ईवीएम चुनकर उसकी पर्चियों का मिलान करता था अब एक की जगह पांच ईवीएम मशीन के वोटो का मिलान वीवीपैट पर्चियों से किया जायेगा, यह फैसला भी आगामी चुनावो के लिए किया गया

लेकिन यहां एक बहुत बडी गलती की जा रही थी लोकसभा चुनाव में इन पर्चियों की गिनती मतगणना के बाद की गई इससे पूरी प्रक्रिया का महत्व ही खत्म हो गया क्योंकि वीवीपीएटी का पूरा सिस्टम चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को ध्यान मे रखकर लाया गया था

जब परिणाम घोषित हो जाते है तो न किसी पार्टी के चुनाव एजेंट रहते है और न इस पुरी प्रक्रिया की देखरेख का सही सिस्टम काम करता है इसलिए यह जरूरी हैं कि वीवीपैट पर्चियों की गिनती मतगणना के दौरान ही की जाए

इसलिए ही एक जनहित याचिका लगाई गई जिसमें वीवीपैट पर्चियों की गिनती मतगणना के दौरान करने की मांग की गई याचिका में मांग की गई है कि मतगणना की शुरुआत में ही वीवीपैट पर्चियों का सत्यापन हो, न कि मतगणना के बाद, पर्चियों का सत्यापन पहले या दूसरे दौर की मतगणना में किया जाना चाहिए न कि आखिरी में क्योंकि चुनाव एजेंट अंत तक नहीं रहते हैं।

दो दिन पहले इसी याचिका की सुनवाई थी लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा इस सही बात पर भी भी चुनाव आयोग ने आपत्ति उठा ली, आयोग के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया में लगे लोगो को वीवीपीएटी सत्यापन के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले का पालन करने के लिए पहले ही प्रशिक्षित किया जा चुका है, और याचिका विचार करने योग्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी आयोग की दलीलों पर सहमति जताते हुए कहा कि हम हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। स्थापित प्रथा, प्रक्रियाओं और कानून के अनुसार गिनती जारी रखें अब 10 मार्च को मतगणना हैं और आखिरी समय में कुछ नहीं किया जा सकता है। ऐसे में केजरीवाल का डायलॉग ही याद आता है.’सब मिले हुए जी’.

(लेखक सवतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)