मेरे कमरे में पुल शॉट खेलते विव रिचर्ड्स का एक ब्लैक-एंड-व्हाइट फोटो टंगा हुआ है। कोई मुझसे पूछे मैं क्रिकेट के किस दृश्य को बार-बार देखना पसंद करूंगा तो मेरा उत्तर होगा पैविलियन से बाहर निकल कर बैटिंग क्रीज़ तक पहुंचते हुए विवियन रिचर्ड्स को देखना। सबसे पहले उसकी परिचित आकृति दिखती थी – सफ़ेद पतलून-कमीज़-धारियों वाली स्वेटर और मैरून रंग की कैप। चाल में एक बेपरवाह अकड़। किसी तरह की कोई जल्दीबाज़ी नहीं। एक तरफ को थोड़ा सा झुका हुआ शांत मुस्कराता चेहरा और च्युइंग गम चबाते गतिमान जबड़े। कलाई पर तीन रंगों वाला बैंड। चाहे कोई मैदान हो, कैसा भी गेंदबाज़ हो, कैसी भी परिस्थितियां हों बल्ले को एक हाथ से दूसरे में थामते, कन्धों और बांहों की थोड़ी सी वर्जिश करते किसी बादशाह की तरह अपने विचारों में खोये दिखाई देते इस खिलाड़ी की चाल पूरे करियर में एक सी रही। वह क्रीज़ पर यूँ पहुंचता जैसे उसके पहले किसी ने ढंग से बल्ला चलाना तक न सीखा हो। बड़े से बड़े खौफ़नाक गेंदबाज़ की तरफ उसकी निगाह यूँ जाती थी जैसे कोई अनुभवी बड़ा शरारत करने की तैयारी में लगे किसी बच्चे को देख रहा हो।
वह गार्ड लेता। बल्ले से पिच को एकाध बार हौले से ठोकता। उसके बाद उसकी आँखें उठती थीं – एक साथ चारों तरफ देख सकने में सक्षम। उसके नज़र उठाते ही सिली पॉइंट, मिडविकेट, मिड-ऑफ और मिड-ऑन दो-दो कदम पीछे हट जाते। एक निर्णायक निगाह गेंदबाज की दिशा में डाली जाती और दर्शकों की साँसें थम जातीं।
क्रिकेट का इतिहास एक से एक महान खिलाड़ियों और उनके कारनामों से भरा पड़ा है लेकिन विवियन रिचर्ड्स जैसा कोई न हुआ। वह शून्य पर आउट होकर लौटता भी उतना ही खतरनाक और अपराजेय दिखाई देता था जितना डबल सेंचुरी बना चुकने के बाद नॉट आउट लौटता हुआ। घंटे-आधे घंटे के भीतर अपनी बैटिंग से किसी भी टेस्ट मैच की दिशा बदल सकने का माद्दा रखने वाले इस खिलाड़ी ने कभी हैलमेट नहीं पहना। इसके बावजूद संसार भर के गेंदबाजों को वैसा खौफ किसी और बल्लेबाज़ से नहीं लगता था।
एक बार ऑस्ट्रेलिया के तेज़ गेंदबाज रॉडनी हॉग का एक बेहद तेज़ बाउंसर उसकी पसलियों से टकराया। गहरी चोट लगी लेकिन रिचर्ड्स ने मुस्कराते हुए च्युइंग गम चबाना जारी रखा। स्लिप्स में खड़े ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी हाल पूछने आए। उसने कंधे उचकाए और मुस्करा दिया। अगली गेंद भी शार्ट थी। इस बार उसने उसे मिडविकेट बाउंड्री के पार पहुंचा दिया। बहुत सालों बाद उसने स्वीकार किया, “मुझे बहुत दर्द हो रहा था लेकिन उसे चेहरे पर नहीं लाया जा सकता था। मैं अपने देश के लोगों के लिए खेल रहा था। मेरे लिए वह जंग के बीच सरहद पर खड़े रहने जैसा था।”
विवियन रिचर्ड्स को समझने के लिए हमें थोड़ा सा वेस्ट इंडीज क्रिकेट के इतिहास में जाना होगा। 1961 में जब फ्रैंक वॉरेल कप्तान बनाए गए, वेस्ट इंडीज़ की टीम को टेस्ट क्रिकेट खेलते हुए 43 साल हो चुके थे। 15 छोटे-छोटे द्वीप-देशों के खिलाड़ियों को लेकर बनाई जाने वाली इस टीम में ज्यादातर खिलाड़ी काले होते थे लेकिन उनकी कप्तानी हमेशा गोरे करते आए थे क्योंकि इनमें से ज्यादातर द्वीपों पर इंग्लैण्ड का शासन था, क्रिकेट बोर्ड पर अंग्रेज़ों का कब्जा था और औपनिवेशिक घमंड को यह गवारा न था कि उसकी गुलामी कर रही टीम का नेतृत्व कोई काला करे। हालांकि 1948 में काले ब्रैडमैन के नाम से विख्यात महान जॉर्ज हैडली ने एक टेस्ट में कप्तानी की थी, सही मायनों में फ्रैंक वॉरेल वेस्ट इंडीज़ के पहले पूर्णकालिक काले कप्तान थे।
1962 में पहले जमैका और फिर त्रिनिदाद-टोबैगो को आज़ादी मिली। गुयाना और बारबाडोस 1966 में आज़ाद हुए जबकि बहामा 1973 में। तीन-सवा तीन सौ सालों के औपनिवेशिक शासन के दौरान स्थानीय जनता पर भीषण अत्याचार हुए और प्राकृतिक संपदा की लूटखसोट हुई। उस अन्यायपूर्ण समय की ठोस स्मृति कैरिबियाई जनमानस का हिस्सा थी।
आज़ादी के बाद के शुरुआती वर्षों में इस स्मृति से बाहर निकल पाना मुश्किल था। यह मनोदशा क्रिकेट के मैदान पर भी दिखाई देती थी। एक से एक शानदार खिलाड़ियों के होते हुए भी टीम बेतरह हारती थी जबकि फ्रैंक वॉरेल और उनके बाद बने कप्तानों में गैरी सोबर्स, रोहन कन्हाई और क्लाइव लॉयड जैसे दिग्गज खिलाड़ी शामिल थे।
लॉयड की कप्तानी में रिचर्ड्स ने पहला टेस्ट 1974 में खेला। कमज़ोर भारत के साथ खेलते हुए उन्होंने अपने जीनियस की पहली झलकियां दिखाईं। अगली सीरीज ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ थी जिसके पास उस समय के सबसे तेज़ गेंदबाजों लिली और थॉमसन की जोड़ी थी। इस सीरीज में युवा विव का साक्षात्कार खेल की गलाकाट प्रतिद्वंद्विता और क्रूरता से हुआ। किसी भी कीमत पर जीतने के लिए खेलने उतरे ऑस्ट्रेलियाइयों ने वेस्ट इंडीज़ को पांच-एक से ध्वस्त कर दिया। अपना पहले दौरे पर गए युवा तेज़ गेंदबाज़ माइकेल होल्डिंग तक को हार के बाद पिच पर रोता देखा गया।
ऑस्ट्रेलिया में कहा गया ब्लैक बास्टर्डस्
क्रिकेट को मौज मस्ती की तरह जीवन का हिस्सा समझने वाले वेस्ट इंडियन खिलाड़ियों के लिए यह सीरीज एक बड़ा सबक रही। विव रिचर्ड्स ने इस सबक को सबसे गहरे आत्मसात किया। उसने देखा कि वेस्ट इंडीज़ की हार से समूचे देश की जनता में निराशा छा जाती थी। उसने देखा कि बेरोजगारी और गरीबी से जूझ रही उसके देश की आबादी अपने खिलाडियों के अच्छे खेलने भर से कुछ देर को अपने दर्द भूल जाती थी। उसने यह भी देखा कि किस तरह स्वतंत्र हो चुकने के बावजूद चमड़ी के रंग के कारण उसे और साथी खिलाड़ियों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता था। ऑस्ट्रेलिया में उन्हें अक्सर ब्लैक बास्टर्डस् कह कर संबोधित किया गया। नेल्सन मंडेला जेल में थे, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद अपने चरम पर था अलबत्ता काले लोग संस्कृति, समाज और खेलों के हर इलाके में अपना परचम गाड़ना शुरू कर चुके थे।
रिचर्ड्स ने तय कर लिया उन्हें क्रिकेट को आंकड़ों के लिए नहीं अपने लोगों के सम्मान के लिए लड़े जाने वाले युद्ध के तौर पर खेलना होगा। खुद महान गायक बॉब मार्ली एक बार ड्रेसिंग रूम आकर उनके लिए गा चुके थे- “गेट अप, स्टैंड अप, स्टैंड अप फॉर योर राइट्स।” अपने खेल के माध्यम से रिचर्ड्स ने तीन शताब्दियों की गुलाम मानसिकता को झकझोर कर जगाना था। उसने वैसा कर भी दिखाया। उस सीरीज के बाद वह जब तक वेस्ट इंडीज़ की टीम में रहा, उसकी टीम संसार की सर्वकालीन महानतम और अपराजेय टीम बनी रही। इसी दौर में काले खिलाड़ियों की सामाजिक स्वीकार्यता अकल्पनीय रूप से बढ़ी और गोरी चमड़ी की हेकड़ी निकल गयी।
रिचर्ड्स ने सही को सही और गलत को गलत कहने में कभी संकोच नहीं किया। बल्कि जरूरत पड़ने पर कितनी ही बार आगे आकर सही पक्ष का समर्थन किया, मैदान के भीतर भी और बाहर भी।
रिचर्ड्स की कलाई पर हमेशा बंधा रहने वाला तिरंगा बैंड इस बात की गवाही देता था कि बड़ा खिलाड़ी होने के साथ-साथ वह राजनीति और इतिहास की चेतना से भरपर एक क्रांतिकारी भी था। बीबीसी की फिल्म ‘फायर इन बेबीलोन’ में वह इस बैंड के तीन रंगों का मतलब बताता है, हरा रंग अफ्रीकी मातृभूमि की सम्पन्नता का प्रतीक है, सुनहरा रंग उस संपदा की याद दिलाता है जिसे गोरे शासक लूट कर ले गए थे जबकि लाल रंग पुरखों के उस रक्त का प्रतिनिधित्व करता है जिसे उन्होंने आज़ादी हासिल करने के लिए बहाया।
कोला-पेप्सी बेचने वाले नए ज़माने के बौने चैम्पियनों के सामने विवियन रिचर्ड्स किसी पहाड़ सरीखा नज़र आता है। उसके आंकड़े बताते हैं वह अपने समय से कहीं आगे का खिलाड़ी था। उसकी राजनैतिक-सामाजिक सोच उसे उससे भी बड़ा इंसान बनाती है।