विश्वदीपक
आप हिजाब, बुर्का करते-करते ब्लड प्रेशर के शिकार हो जाएंगे, दोस्ती तोड़ लेंगे. देशभक्ति साबित करने के लिए गाय का मूत्र पीने लगेंगे. उधर, मेहुल भाई याच में पार्टी करेंगे और भाई ऋषि अग्रवाल जी सिंगापुर में मौज मस्ती. जी हां, ऋषि अग्रवाल भाई सिंगापुर के नागरिक हैं. उन्होंने यह व्यवस्था काफी पहले कर ली थी. शायद उन्हें पता था कि एक दिन उनके सतकर्मों का खजाना खुल जाएगा. इसलिए पहले ही वो राडार के बाहर निकल लिए.
सोचिए क्या कोई यूं ही बैंको को 23 हज़ार करोड़ का चूना लगा सकता है? नहीं.आपको अगर दस लाख का लोन लेना हो तो बैंक नानी की याद दिलवा देगा. फिर अग्रवाल भाई के लिए सब कुछ इतना आसान कैसे था? साफ है कि इस खेल में 1)बैंक के लोग भी शामिल थे 2) भाईजी को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था.
ABG का प्रमोटर ऋषि अग्रवाल, मोदी जी एक मात्र उपलब्धि “गुजरात समिट” का जाना पहचाना चेहरा था. हर साल उसमें भाग लेता था. बैंक से पैसा निकालने के लिए फर्जी दस्तावेज पेश किया करता था. SBI ने 2018 में चिट्ठी लिखकर सीबीआई को आगाह किया था कि ABG में फ्रॉड चल रहा है. एक साल बाद, जून 2019 में उसके एकाउंट को फ्रॉड तो घोषित किया गया लेकिन कोई ठोस कारवाई नहीं हुई. क्यूं? इसका जवाब पाकिस्तान देगा, राहुल गांधी या नेहरू? या फिर कांग्रेस?
2013 में वह मोदी जी के साथ दक्षिण कोरिया की यात्रा पर भी गया था. हैरान करने वाली बात यह है कि जो ऋषि अग्रवाल बैंकों को आराम से 23 हज़ार करोड़ का चूना लगाने पाने में सफल हो गया, उसकी कुल संपत्ति 300 करोड़ भी नहीं. मतलब, बैंको ने उसे पैसा देते वक्त सिक्योरिटी के बारे में कोई पड़ताल नहीं की. ABG शिपयार्ड ने पिछले दो सालों में – महामारी के दौरान – 2000 हज़ार से ज्यादा लोगों को नौकरी से निकाला है. इनमें से कई ऐसे हैं जिनको उनकी सैलरी तक नहीं मिली.
फिर भी कोई न तो सवाल पूछेगा. न फ्रॉड फकीरचंद की सरकार कोई जवाब देगी. अब तो यह भी नहीं कह सकते कि इसके पीछे कांग्रेस का हाथ है. गुजरात में 1998 से BJP सत्ता में है. यानि 24 साल तो सीधा-सीधा है. इसके पहले अगर तीन साल जोड़ लें तो कहा जा सकता है कि 1995 से ही गुजरात में BJP का शासन है. अपने फकीरचंद, श्रीमान मोदी जी ही 2002 से लेकर 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री थे. मतलब यह है कि अगर बैंकों को करीब 23 हज़ार करोड़ का चूना अपने अग्रवाल भाई लगा पाए तो यह बिना फकीर की कृपा के नहीं हो सकता.
(लेखक पत्रकारिता से जुड़े हैं, विचार व्यक्तिगत हैं)