विश्वदीपक
फेसबुक ने भारत में जो किया वह म्यांमार के मुक़ाबले कुछ भी नहीं. म्यांमार में “बुद्ध की सेना” ने फेसबुक का ही इस्तेमाल करके करीब 25-30 हज़ार रोहिंग्या मुसलमानों का नरसंहार किया था. नरसंहार से बचने के लिए लगभग 10 लाख लोगों को देश छोड़कर भागना पड़ा. (मैं इस बात पर जोर दे रहा हूं – बुद्ध की सेना) बाद में पता चला कि नरसंहार की ज़मीन तैयार करने के लिए म्यांमार की सेना फेसबुक पर फर्जी अकाउंट बनाकर झूठी खबरें प्रचरित करती थी ताकि नरसंहार के पक्ष में, वहां की बहुसंख्यक आबादी का समर्थन हासिल किया जा सके. ठीक वैसे ही जैसे यहां आरएसएस और बीजेपी की ट्रोल आर्मी करती है. (गनीमत है कि भारत की सेना अभी इस लड़ाई का हिस्सा नहीं बनी).
फिर जैसा होता आया है, वही हुआ. पहले फेसबुक ने लीपापोती की लेकिन बाद में उसे अपनी गलती माननी पड़ी. सवाल यह है कि गलती मानने से क्या होगा ? क्या उन लोगों को ज़िंदा किया जा सकता है जिन्हें “बुद्ध की सेना” ने गोलियों से भून दिया था? क्या पलायन करने वाालों को वापस उनके वतन, उनके घर भेजा जा सकता है? भारत, बांग्लादेश या दूसरे दक्षिण एशियाई देशों में जानवरों से भी बदतर स्थिति में रहने के लिए मजबूर ये वही रोहिंग्या हैं जिनके खिलाफ़ हिन्दू धर्म के रक्षक हिंसक अभियान चलाते हैं. बीजेपी इसी अभियान का दूध पीकर मोटी होती रही है.
हां, अगरजुकरबर्ग चाहता तो म्यांमार को नरसंहार से अगर बचाया जा सकता था, पर उसने नहीं किया. भारत में भी नहीं करेगा. चाहे भारत हो या म्यांमार, फेसबुक की लाइन क्लियर है. जुकरबर्ग उसी के साथ है जो सत्ता में है. जो उसे धंधे में फायदा दे सकता है वही फेसबुक का ख़ुदा है फिर चाहे बीजेपी हो या “बुद्ध की सेना”. अगर आप फेसबुक के जरिए लोकतंत्र की रक्षा करना चाहते हैं, प्रॉब्लम आपकी है; फेसबुक की नहीं.
मिडिल ईस्ट में फेसबुक ने बोया ज़हर
केवल भारत, म्यांमार ही नहीं फेसबुक पूरी दुनिया में (क्रूर) सत्ताओं के साथ साठ गांठ करने के लिए बदनाम है. चूंकि हम अब तक इस बारे में आंख मूंदकर बैठे रहे, इसलिए पता ही नहीं चला. पूरे मिडिल ईस्ट में फेसबुक ने ज़हर बो रखा है. माना जाता है कि पत्रकार जमाल जमाल खशोगी की हत्या से पहले उन्हें उनके देश में फेसबुक का इस्तेमाल करके खूब बदनाम किया गया. देशद्रोही, चरित्रहीन, बिकाऊ कहकर कैंपेन चलाई गई.
ठीक वैसे ही जैसे अपने यहां हिंदू नाज़ीवादी किसी भी ढंग के पत्रकार के खिलाफ करते हैं. सउदी सत्ता के इशारे पर फर्जी अकाउंट्स बनाए गए जिनके जरिए जमाल खशोगी के खिलाफ़ लोगों के दिमाग में ज़हर भरा गया. फिर तुर्की में उनकी हत्या की गई. आपको याद ही होगा कि जमाल खशोगी को टुकड़ों में काटा गया गया था. उनकी प्रेमिका सउदी दूतावास के बैठकखाने में उनका इंतज़ार कर रही थीं, उधर अंदर उनके जिस्म को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जा रहा था.
मैं नहीं मान सकता कि फेकबुक को यह नहीं पता रहा होगा कि जमाल खशोगी के खिलाफ जो कैंपेन चलाई जा रही है, उसका अंत भयानक हो सकता है. जुकरबर्ग को बिल्कुल पता रहा होगा पर धंधा नैतिकता से बड़ा होता है. जैसे सउदी सरकार के इशारे पर चलने वाले फर्जी अकाउंट्स के जरिए शिया समुदाय को या ईरान को निशाना बनाया जाता है, उसी तरह ईरानी सत्ता की छत्रछाया में सैकड़ों फर्जी अकाउंट्स के जरिए सउदी अरब और सुन्नी मुसलमानों के खिलाफ़ ज़हर उगला जाता है. नतीजा यह होता है कि इधर पोस्ट वायरल हुई, उधर हमला हुआ. कायदे से कहा जाए तो इन सब हत्याओं हिंसाओं में फेसबुक की भागीदारी है लेकिन जब तक मुनाफा हो रहा है, लाशों की क्या परवाह करना. यही है फेसबुक का फॉर्मूला.
(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)