विराट कोहली: भारत का वह क्रिकेटर जो अपनी शर्तों पर आगे बढ़ता है, रिकॉर्ड बनाता है, जीत दिलाता है।

नयी दिल्ली: बल्लेबाज के रूप में विरोधी गेंदबाजों और एक कप्तान के रूप में विपक्षी टीम पर हावी होने की अपनी विशिष्ट शैली के कारण क्रिकेट जगत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले विराट कोहली दुनिया के उन चंद कप्तानों में शामिल हैं जिन्होंने अतिरिक्त जिम्मेदारी मिलने के बाद अपने खेल को भी नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

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लेकिन कोहली अब टी20 प्रारूप की कप्तानी छोड़ने का फैसला कर चुके हैं। संयुक्त अरब अमीरात में होने वाले टी20 विश्व कप के बाद वह आगे इस प्रारूप में केवल बल्लेबाज के रूप में खेलेंगे और ऐसे में उनके सामने स्वयं को नयी परिस्थितियों के अनुसार ढालने की चुनौती होगी क्योंकि पिछले सात वर्षों में वह जिन मैचों में खेले, उनमें अधिकतर में कप्तान रहे।

कोहली जब क्रिकेट का ककहरा सीखने कोच राजकुमार शर्मा के पास गए थे तो वह उनके जोश और जुनून से प्रभावित हुए थे। जल्द ही उन्हें पता चला गया था कि इस बच्चे में कौशल भी है और जब यही बच्चा अपने पिता के निधन के बावजूद रणजी ट्रॉफी में अपनी टीम की नैया पार उतारने के लिए क्रीज पर उतरा तो दुनिया भी उनकी दृढ़ता से वाकिफ हुई थी।

कप्तानी के बाद आया निखार

इसी जोश, जुनून, कौशल एवं दृढ़ संकल्प से वह 2008 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर और तीन साल की प्रतीक्षा के बाद टेस्ट क्रिकेटर बन गए। लेकिन यात्रा तो अभी शुरू हुई थी। कोहली को 2013 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय मैचों में कप्तानी का मौका मिला और 2014 के आखिर में वह टेस्ट कप्तान बन गए तथा इसके बाद जो कुछ हुआ, वह इतिहास है।

कप्तान बनते ही कोहली के खेल में गजब का निखार आया। जो बल्लेबाज ‘डैडी शतक’ बनाने के लिए संघर्ष कर रहा था, वह बड़े सैकड़े जड़ने लगा और उसके बल्ले से रनों की बारिश होने लगी। सिर्फ रन ही नहीं, उन्होंने अपने अंदर की आक्रामकता मैदान पर दिखाई और अपने साथियों में भी यही विशेषता भरी। यह ऐसा कप्तान था जो मैदान पर उतरता तो सिर्फ एक ध्येय जीत दर्ज करने का होता। व्यक्तिगत उपलब्धियां नेपथ्य में चली गईं और भारतीय क्रिकेट वास्तव में ‘टीम गेम’ बन गया। इसका प्रभाव परिणाम में भी दिखा।

कोहली के नेतृत्व में अब तक भारत 65 टेस्ट मैचों में से 38 जीत चुका है जो भारतीय रिकॉर्ड है। वनडे में 95 मैचों से 65 में जीत दर्ज करने का शानदार रिकॉर्ड उनके नाम पर है। टी20 में उन्होंने 45 मैचों में कप्तानी की है जिनमें से 27 भारत ने जीते हैं।

लेकिन जहां खिलाड़ी अतिरिक्त जिम्मेदारी मिलने पर दबाव में आ जाते हैं, वहीं कोहली के खेल में निखार आया। टेस्ट मैचों में ही देखिये। जिन मैचों में वह कप्तान नहीं थे, उनमें उन्होंने 41.13 के औसत से रन बनाए लेकिन नेतृत्वकर्ता के रूप में उनका औसत 56.10 हो गया। इसमें सात दोहरे शतक शामिल थे। वनडे में भी यह अंतर 51.29 और 72.65 के बीच स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।

अपनी शर्तों पर आगे बढ़ने वाला खिलाड़ी

केवल टी20 में यह अंतर नकारात्मक रहा जो 57.13 से घटकर 48.45 हो गया। अब कोहली इसी प्रारूप की कप्तानी छोड़ने का निर्णय कर चुके हैं, लेकिन इससे पहले टी20 विश्व कप जीतकर आईसीसी (अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद) की प्रतियोगिताओं में अपने रिकॉर्ड में सुधार करना चाहेंगे।

कोहली की कप्तानी में भारत आईसीसी प्रतियोगिता नहीं जीता है और उनपर इसका दबाव भी है। भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने उन्हें संकेत दे दिए थे कि टी20 विश्व कप के बाद उन्हें कप्तानी गंवानी पड़ सकती है। लेकिन कोहली ने इससे पहले ही कप्तानी छोड़ने की घोषणा कर साबित कर दिया कि वह अपनी शर्तों पर आगे बढ़ने वाले खिलाड़ी हैं।