कृष्णकांत
70 सदस्यीय विधानसभा में 67 मंत्री. घोटाला और सार्वजनिक संपत्ति की लूट ऐसे भी की जा सकती है. बाकी विपक्षी पार्टियों को भाजपा से सीखना चाहिए. दैनिक जागरण की खबर है कि उत्तराखंड में मंत्रियों का आंकड़ा 67 तक पहुंच गया. हालांकि, मंत्रिमंडल में नौ ही सदस्य हैं. बाकी बचे 58 को रेवड़ियां बांटी गई हैं. उन्हें सरकार ने अहम पदों पर मनोनीत करके मंत्री पद का दर्जा दिया है. इन 58 में से आठ को कैबिनेट मंत्री और बाकी 50 को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है.
उससे भी दिलचस्प यह है कि जिन 58 लोगों को मंत्री पद का दर्जा दिया गया है, उनमें से कोई भी विधायक नहीं है. लेकिन मंत्री पद का दर्जा हासिल करने वाले को सरकार हर महीने 1.25 लाख रुपये का मानदेय और भत्ता देती है. इसके अलावा 34 लोग ऐसे हैं जिनको मंत्री का दर्जा तो नहीं मिला है, लेकिन उन्हें विभिन्न समितियों, आयोगों आदि में पद दिए गए हैं. उनपर भी हर महीने इतना ही खर्च आता है.
संवैधानिक प्रावधान के मुताबिक उत्तराखंड विधानसभा सरकार मंत्रिमंडल में अधिकतम 12 सदस्य हो सकते हैं. त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री समेत नौ मंत्री हैं, बाकी तीन जगहें खाली हैं. राज्य की विधानसभा में कुल 70 सीटें हैं और 1 एंग्लो इंडियन विधायक नामित किया जाता है. हालांकि, बीती जनवरी में कानून में संशोधन करके यह एंग्लो इंडियन विधायक का पद खत्म कर दिया गया.
अब आप कहेंगे कि हर सरकार मंत्रिमंडल से बाहर कुछ लोगों को मंत्री पद का दर्जा देती है. यह बात सही है, ऐसा सब सरकारें करती हैं. लेकिन इसकी कोई सीमा होगी कि मंत्री पद का दर्जा थोक में रेवड़ी की तरह बंटेगा? वैसे भी लोग कहते हैं कि भाजपा एवं मोदी जी बहुत ईमानदार हैं, फिर वे पिछली सरकारों से आगे बढ़कर क्यों लूट रहे हैं?