उत्तर प्रदेश परिवहन मंत्रालय की डग्गारमार वाहनों को लेकर बड़ी लापरवाही, किसी बड़ी दुर्गघटना का इंतज़ार

हापुड़: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में अशोक कटारिया ने परिवहन मंत्रालय की कमान संभालने के बाद उत्तर प्रदेश में डग्गामार वाहनों व बसों का संचालन पूरी तरह से बंद करने की बात कही थी। उनकी यह घोषणा फ्लॉप होती नजर आ रही है। पांच साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद आज भी डग्गामार वाहनों व बसों का संचालन न केवल जारी है बल्कि इनकी संख्या भी तेजी से चरम पर हैं। हाल इस तरह का है कि अब परिवहन निगम की बसों के रंग में रंगकर बाकायदा कोडवर्ड लिखकर डग्गामारी की जा रही है, जो कि पुरी तरह से अवैध है। रोडवेज के समानांतर रूटों पर दौड़ रहीं डग्गामार बसें परिवहन निगम की बसों को प्रतिदिन लाखों रुपये का नुकसान पहुंचा रही हैं। वहीं, बेतरतीब और तेज रफ्तार से यात्रियों की जिंदगी भी दांव पर लगा रही हैं। उधर, संबंधित अधिकारी इस तरफ ध्यान आकर्षित करने के बजाय आंखें मूंदे बैठे हैं।

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डग्गामारों को नहीं है शासन प्रशासन का डर

मेरठ समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो मेरठ, सहारनपुर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, अलीगढ़, बुलंदशहर, लखनऊ, इलाहाबाद समेत तमाम जनपदों में जोरों पर डग्गामारी की जा रही है। एक डिपो से ज्यादा बसें डग्गामारी में दौड़ रही हैं। डग्गामार वाहनों व बसों के संचालकों के हौंसले इतने बुलंद हैं कि उन्हें किसी भी शासन प्रशासन का डर बिल्कुल भी नहीं है,  इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये डग्गामार बसें बकायदा रोडवेज बस अड्डों के सामने से सवारियां बैठाती हैं लेकिन, पुलिस प्रशासन और परिवहन अधिकारी इन दबंग डग्गामार संचालकों के सामने नतमस्तक हैं। न तो कोई मुकदमा दर्ज कराया जा रहा है और न ही कोई रोक-टोक की जा रही है, शायद पुलिस प्रशासन या परिवहन अधिकारी को किसी बड़े हादसे का इंतजार तो नहीं।

आपको बता दें कि प्रदेश में डग्गामारी बसों के संचालन पर अंकुश नहीं लगने से निगम से जुड़े श्रमिक संगठन भी बेहद गुस्से में हैं। कुछ लोग इसे भाजपा सरकार की निगम का निजीकरण करने की सोची-समझी साजिश मानते हैं। उनका कहना है कि सरकार जानबूझ कर निगम की आर्थिक हालत को कमजोर कर रही है ताकि आर्थिक संकट का बहाना बनाकर निगम को निजी हाथों में दिया जा सके।

सूची भेजने पर भी कार्रवाई नहीं

परिवहन निगम मेरठ के अफसरों ने हाल ही में डग्गामार बसों के संचालन के सुबूत के तौर पर ऐसी बसों का सर्वे कराकर कुछ बसों की सूची नंबर सहित शासन को भेजी थी। साथ ही मंडलायुक्त, एसएसपी और आरटीओ को भी सूची भेजी थी। लेकिन, इस सूची पर अभी तक किसी भी अधिकारी ने संज्ञान नहीं लिया। सूत्रों के अनुसार आमतौर पर एक बस रोजाना औसतन 20-50  हजार रुपये की कमाई करती है। वहीं अगर इन बसों की कमाई पर नजर डालें तो यह कमाई लाखों रुपये रोजाना बैठती है अर्थात महीने में कमाई का आंकड़ा करोड़ों रुपये का बैठता है। किसी विभाग की इतनी बड़ी कमाई लुट जाए तो उसका घाटे में जाना लाजिमी है।