बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी में हम न जाने कितनी सदियों से यह पर्व मनाते आ रहे हैं. पर हमारे समाज में बुराई बढ़ती गई है और अच्छाई सिमटती दिख रही है. हमारे समाज की एक बहुत बड़ी बुराई है: जातिवाद. इसका स्रोत है: वर्ण-व्यवस्था! यह वर्ण-व्यवस्था ही कथित हिंदू धर्म या सनातन या ब्राह्मण धर्म की सबसे बड़ी पहचान है. हमारे समाज में बहुत सारे उत्पीड़ित और उत्पीड़क समूहों के लोग जाति या वर्ण के नाम पर एक दूसरे से चिढ़ते या नफ़रत करते हैं. इसके बुरे नतीजे भी देखने को मिलते हैं. अनेक बार हिंसा, तनाव, रक्तपात और टकराव की स्थिति पैदा होती है. इससे समाज और विभाजित, विकृत और विरूप होता है.
अगर हम सचमुच बुराई पर अच्छाई की जीत चाहते हैं तो हमें जाति और वर्ण आधारित भेदभाव खत्म करने होंगे. यह अचानक नहीं होगा, इसके लिए समाज और सरकारों को क्रमशः पहल करनी होगी. कभी सामाजिक पहल तो कभी कानूनी भी. किसी जाति विशेष में पैदा हुए व्यक्ति से नफरत और वैमनस्य का सिलसिला हमें खत्म करना होगा. जाति और वर्ण की समूची व्यवस्था के विनाश में जुटना होगा. जब तक यह वर्णव्यवस्था रहेगी, हमारा समाज समरस, समावेशी, समानता-आधारित और सुंदर नहीं बन सकेगा. अच्छाई घटती रहेगी और बुराई बढ़ती जायेगी.
यह बात मैं सिर्फ किताबों से अर्जित ज्ञान के आधार पर नहीं कह रहा हूं, अपने निजी जीवन के अनुभव की रोशनी में भी कह रहा हूं. मैं जिस पेशे में हूं, सिर्फ जाति और वर्ण के चलते मुझे बहुत कुछ झेलना पड़ा. बहुत ‘अच्छे’, ‘समझदार’, ‘ज्ञानी’ और ‘सेलिब्रेटी’ किस्म के लोगों ने भी हमें वर्णगत-सोच से प्रभावित होकर उत्पीड़ित किया. कई बार तो इतना परेशान किया गया कि पेशे से अलग होने की बात भी सोचने लगा था. पर विकल्प कहां थे? हम जैसे लोगों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में भी जगह नही थी, यहां तक कि उपयोगी फेलोशिप भी नहीं उपलब्ध थीं.
ऐसे दमन या अत्याचार से सिर्फ मेरा ही नहीं, मेरे संस्थान का और अंतत: हमारे पेशे का भी नुकसान हुआ. मेरी ऊर्जा का वाजिब उपयोग भी नहीं हुआ.आप ही सोचिये, हमारे जैसे असंख्य लोगों ने यह सब झेला है और उनमें अनेक ऐसे होंगे जो मुझसे ज्यादा प्रतिभाशाली या मेहनती होंगे. यह वर्ण-व्यवस्था बनी रही तो आगे भी जाति-आधारित दमन-उत्पीड़न का सिलसिला जारी रहेगा. असंख्य लोग यह सब झेलते रहने को अभिशप्त होंगे.
यकीं कीजिए, जिन बड़े ओहदेदारो या बड़ी हस्तियों ने जाति या वर्ण-दुर्भावना के वशीभूत होकर मेरा उत्पीड़न किया, उनके प्रति निजी तौर पर मेरे मन मे तनिक भी कलुष या घृणा नहीं है. मुझे मालूम है, वे बड़े लोग भी वर्ण-व्यवस्था के मारे लोग हैं, उन्हें भी इस व्यवस्था ने ‘बीमार’ कर रखा है. गरीब लोग खान-पान या दवा की कमी के चलते बीमार पडते हैं और अनेक अमीर या कथित कुलीन उच्च-वर्णीय लोग ‘वर्णवादी-वायरस’ के चलते आजीवन बीमार रहते हैं. कुछ कथित निम्न-वर्णीय लोग भी इसकी चपेट मे आ जाते हैं. पर व्यापक तौर पर यह कथित उच्च-वर्णीय लोगों का वायरस है क्योकि हमारी व्यवस्था(सरकारी हो या निजी क्षेत्र ) के संचालन की अहम् भूमिका में वही हैं. मेरा मानना है कि उन्हें भी इससे मुक्ति चाहिए. इसका एक ही उपाय है, वर्ण-व्यवस्था का विनाश!
पुतलों और मुखौटों पर हमला करने से कुछ भी हासिल नही होगा. बुराई पर अच्छाई की जीत तभी संभव है, जब यह व्यवस्था बदले. वर्ण-व्यवस्था के खात्मे की कोशिश कीजिए. भौगोलिक रूप से हमारा देश बहुत सुंदर है, वर्णव्यवस्था के खात्मे से हमारा समाज भी सुंदर हो जायेगा.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है, ये उनके निजी विचार हैं)