डॉक्टर शुजाअत अली क़ादरी
केन्द्रीय वक़्फ़ कौंसिल की नई योजना ‘शहरी वक़्फ़ सम्पत्ति विकास योजना’ से नई तस्वीर उभर रही है। देश में इसके व्यापक सकारात्मक बदलाव नज़र आ रहे हैं और योजना का सबसे अधिक लाभ कर्नाटक ने उठाया है। कर्नाटक में इस योजना के तहत अब तक 96 परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं जबकि सबसे फिसड्डी राज्य में दिल्ली का नाम है।
आज अपनी तीसरी सिरीज़ में हम बात करेंगे की केन्द्रीय वक़्फ़ कौंसिल की शहरी वक़्फ़ सम्पत्ति विकास योजना क्या है और किस तरह यह योजना मुसमलानों के लिए लाभकर साबित हो रही है।
इस योजना की ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि कई कारणों से, देश में अधिकांश औकाफ की आय सीमित है। इसका परिणाम यह होता है कि आम तौर पर मुतवल्ली (औकाफ के प्रबंधक) के लिए उन उद्देश्यों को पर्याप्त रूप से पूरा करना मुश्किल होता है जिनके लिए ये औकाफ बनाए गए थे। अधिकांश शहरी वक्फ भूमि में विकास की संभावना है लेकिन मुतवल्ली और यहां तक कि वक्फ बोर्ड भी इन जमीनों पर आधुनिक कार्यात्मक भवन के निर्माण के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाने की स्थिति में नहीं है।
वक्फ बोर्डों की वित्तीय स्थिति में सुधार लाने और उन्हें अपने कल्याण कार्यों के क्षेत्र को बढ़ाने में सक्षम बनाने के लिए, यह योजना खाली वक्फ भूमि को अतिक्रमणकारियों से बचाने और आर्थिक रूप से लागू हो सकने वाली परियोजनाओं को विकसित करने की दृष्टि से तैयार की गई है। इन ख़ाली पड़ी लेकिन उपयोगी वक़्फ़ संपत्तियों को अधिक आय उत्पन्न लायक़ बनाने और कल्याणकारी गतिविधियों को व्यापक बनाना ही ‘शहरी वक़्फ़ सम्पत्ति विकास योजना’ का उद्देश्य है।
इस योजना के तहत, वक्फ भूमि पर आर्थिक रूप से चल सकने लायक़ भवन, जैसे वाणिज्यिक परिसर, मैरिज हॉल, अस्पताल, कोल्ड स्टोरेज आदि के निर्माण के लिए देश में विभिन्न वक्फ बोर्डों और वक्फ संस्थानों को ब्याज मुक्त ऋण दिया जाता है। केंद्रीय वक्फ परिषद यानी अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की तरफ़ से वार्षिक सहायता अनुदान के साथ 1974-75 से इस योजना को लागू कर रही है। इस योजना के तहत, केंद्र सरकार ने सितंबर 1974 से मार्च, 2021 के बीच कुल 6293.66 लाख रुपये की सहायता अनुदान जारी किया है और बदले में केंद्रीय वक्फ परिषद ने 155 परियोजनाओं को ब्याज मुक्त ऋण दिया है। साल 2017 में मूल्यांकन के बाद यह पाया गया कि उपरोक्त योजना को कम से कम दस वर्ष और जारी रखने की आवश्यकता है ताकि पर्याप्त संख्या में वक्फ संपत्तियों का विकास किया जा सके।
राज्यों ने अपने वक़्फ़ बोर्डों के माध्यम से इस योजना पर फीडबैक दिया और मौजूदा योजना पर राष्ट्रीय श्रम अर्थशास्त्र अनुसंधान एवं विकास संस्थान (एनआईएलईआरडी), नई दिल्ली द्वारा की गई सिफारिशों को शामिल करके योजना को जारी रखने का निर्णय लिया गया है, और इसका नाम बदलकर शहरी वक्फ संपदा विकास योजना (एसडब्ल्यूएसवीवाई) कर दिया गया है।
इस योजना से आज तक सबसे लाभान्वित होने वाला राज्य कर्नाटक है। जिसे अब तक 21 करोड़ रुपए से अधिक का अनुदान अर्जित किया है जबकि आश्चर्यजनक रूप से सबसे कम अनुदान दिल्ली ने उठाया है। इस योजना के तहत दिल्ली ने पिछले 46 सालों में आज तक सिर्फ़ साढ़े पाँच लाख रुपए का ही लाभ लिया है।
सिर्फ़ दो बार ऐसा हुआ कि इस योजना को केन्द्र ने कोई मद नहीं दिया। पहली बार वर्ष 2008 में और दूसरी बार 2010 में। इस दौरान केन्द्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी। वर्ष 2014 के बाद से इस योजना में मद लगभग लगातार बढ़ाया है। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार के आने के बाद ‘शहरी वक़्फ़ सम्पत्ति विकास योजना’ में वर्ष 2014 में 2.74 करोड़ रुपए, 2015 में 2.65 करोड़, 2016 में 2.79 करोड़, 2017,18 एवं 2019 में हर वर्ष 3.16 करोड़ और 2020 में 3 करोड़ रुपए बजट दिया है। आज देश भर में 27 बड़े प्रोजेक्ट में इस योजना के तहत काम चल रहा है। कुल 13 परियोजनाओं को परिक्रामी धन (revolving fund) उपलब्ध करवाया गया है।
‘शहरी वक़्फ़ सम्पत्ति विकास योजना’ से अब तक आंध्र प्रदेश में 8, बिहार में 10, छत्तीसगढ़ में 1, गुजरात, हरियाणा एवं झारखंड में 2-2, कर्नाटक में 96, केरल में 29, मध्यप्रदेश में 21, महाराष्ट्र में 5, मणिपुर में 5, ओडिशा में 15, पंजाब में 4, राजस्थान में 3, तमिलनाडु में 28 और उत्तर प्रदेश में 10 परियोजनाओं को पूरा किया जा चुका है। सबसे बेहतर राज्य कर्नाटक है जबकि दिल्ली की दशा सबसे बुरी है।
भारत में वक़्फ़ बोर्डों के तहत मुसलमानों की धर्मार्थ सम्पत्ति की रक्षा के लिए प्रयोजन किए गए हैं। केंद्रीय वक्फ परिषद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना वक्फ अधिनियम, 1954 में दिए गए प्रावधान के अनुसार वक्फ बोर्डों के कामकाज से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार के सलाहकार निकाय के रूप में 1964 में की गई थी। पहले से प्रचलित मुसलमान वक्फ वैधता अधिनियम 1913 में सुधार के साथ ‘केन्द्रीय वक़्फ़ परिषद’ वजूद में आई। आज इस कौंसिल ने अपनी कार्यप्रणाली के साथ ही बहुत विशिष्ट प्रयोग किए हैं। देश में वक्फ के समुचित प्रशासन से सम्बन्धित मुद्दों के बारे में परामर्श देने के लिए केन्द्रीय वक्फ परिषद् की स्थापना एक स्थाई इकाई के रूप में की गई। अगली कड़ी में भी हम केन्द्रीय वक़्फ़ कौंसिल की शैक्षणिक योजनाओं और योगदान पर चर्चा करेंगे।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन हैं)