अजमल अली ख़ान
यूपी विधानसभा का चुनाव का बिगुल बज गया है और सारी सियासी पार्टीयाँ अपने चुनावी अभियान में लग गये है, कहते है दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है यहाँ जिसका पलड़ा भारी रहता है दिल्ली में उसका सिक्का चलता और इसलिए यूपी के विधानसभा की चुनाव सभी पार्टीयाँ पूरे दम-ख़म से लड़ रही हैं लेकिन इस पूरे सियासी घमासान में मुस्लिम मतदाता किस ओर जाएँगे ये सियासी पार्टीयों को बेचैन किया है.
उत्तर प्रदेश में कुल वोटर 14.05 करोड़ है और उसमें मुस्लिम मतदाता 3.84 करोड़ है जातिगत आँकड़े की बात करे तो ब्राह्मण 10%, राजपूत 5%, वैश्य 3%, भूमिहार 2%, मुस्लिम 19.3% अनुसूचित जाति 21% है। यूपी की लगभग 140 सीटें ऐसी है जहां पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है जिसमें 73 सीटों पर 30% से ज़्यादा और 70 सीटों पर 20% से ज़्यादा है.
2014 के आम चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में दो ही पार्टियाँ चुनाव में सक्रिय थी समजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, 2002 के बाद यहाँ पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं बन पायी थी और कांग्रेस तो 1988 के बाद अभी तक सत्ता पर क़ाबिज़ होने के लिए जद्दोजहद कर रही है। यूपी में मुस्लिमों के अनेको मुद्दे है आरक्षण से लेकर बुनकारो के बिजली माफ़ी, उनकी शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा का मामला, रंगनाथ मिश्रा और राजेंद्र सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में मुस्लिमों की हालत देश में दलितों से भी बदतर है।
इन्ही सब मुद्दों को देखते हुए मुस्लिम कभी कांग्रेस के हुए उन्हें लगा की कांग्रेस आएगी तो उनको कुछ फ़ायदा होगा तो कभी सपा के पक्ष में वोट किए कभी बसपा के लिए वोट किए भाजपा को लेकर मुस्लिमों में हमेशा भ्रम बरकरार रहा है और उनकी ये भ्रम अभी भी बरकरार है.मुस्लिम कभी बसपा को वोट दिये तो कभी सपा की सरकार बनाये 2012 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों ने सपा के पक्ष में खुलके वोट किये जिसका नतीजा था की 403 सीटों में सपा को 227 सीट मिले इस सरकार में मुस्लिमों के काम भी बहुत हुए मगर 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे ने अखिलेश यादव और उनकी सरकार पर एक बदनुमा दाग़ लगा दिया. ओवैसी अभी भी अपनी सभी रैलियों में इसी दंगे का हवाला देकर अखिलेश और सपा सरकार पर वार करते है. इस दंगे की वजह से सपा और अखिलेश की छवि मुस्लिमों में बहुत ख़राब हुई और इससे सपा को बहुत नुक़सान हुआ।
2014 में हुए लोकसभा के आम चुनाव में मोदी युग का उदय हो चुका था जिसका ख़ामियाज़ा सपा, बसपा और कांग्रेस को उठाना पड़ा. भाजपा जहां यूपी के 80 लोकसभा सीटों में से 75 जीती तो वही सपा पूरे यूपी में सिर्फ 3 सीटें जीती, तो बसपा का खाता भी नहीं खुला, कांग्रेस को उसकी पुश्तैनी सीट अमेठी और रायबरेली से ही संतोष करना पड़ा और उसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर यूपी चुनाव लडी और प्रचंड बहुमत से यूपी विधानसभा का चुनाव जीत गई सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा भाजपा को जहां तीन चौथाई सीटें 403 में से 312 और सपा को मात्र 54 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 97 सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार लड़ाया तो सपा और कांग्रेस गठबंधन ने 57 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा किया जिसमें सपा के 18 तो बसपा को 5 और कांग्रेस को 2 मुस्लिम सीट मिली.
अब यूपी विधानसभा का शंखनाद हो गया है और सारी पार्टीयां अपने अपने पत्ते मुस्लिमों को रूझने के लिये फ़ेक रही है कहा जाता है की यूपी में सपा का मुस्लिम+यादव (एमवाई) समीकरण है जिसके बदौलत वो सत्ता पर क़ाबिज़ होना चाहती है तो बसपा अपना सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय वाले फ़ार्मूले पर काम कर रही है तो कांग्रेस की एकमात्र सहारा प्रियंका गांधी मुस्लिमों को रिझाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है।
मगर इस चुनाव में सबसे ज़्यादा मुस्लिमों के हक़ दिलाने का बीड़ा उठाया है हैदराबाद के आल इंडिया मजलिसे इततहादुल मूसलेमिन ( एआइएमआइएम) के सदर अससुद्दीन ओवैसी ने, ओवैसी जहां पूरे यूपी में तक़रीबन 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रहे है तो वो पूरे यूपी में घुम घुम कर मुस्लिमों को जगाने का काम कर रहे है वो अपने मंचो से सीधा मुस्लिम मतदाताओं से जुड़ने का प्रयास कर रहे है और कहते है की वो यूपी में मुस्लिम लीडरशीप खड़ा करने आये है. ओवैसी पर भी इस बात का आरोप लगता आया है की वो भाजपा के “बी” टीम है क्यूँकि वो अपने भाषणो में जनता को भड़काते है जिससे धूर्विकरण हो जाता है और भाजपा को फ़ायदा पहुँचता है. राजनीतिक पंडित ओवैसी को हलके में ले रहे है और कह रहे है इनके आने से कुछ ज़्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं है।
अब देखना दिलचस्प होगा कि 2022 के विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम सपा के टीपू यानी अखिलेश यादव को यूपी का सुल्तान बनाते है या बसपा की मायावती के सर ताज सजाते हैं. कांग्रेस और ओवैसी के हिस्से में क्या मिलता है सियासत के जानकार ये भी कह रहे है की इस बार मुस्लिम वोटर अभी ख़ामोश हैं और कुछ भी खुल कर बोलने के लिए तैयार नहीं वो वोटिंग के दिन अपना पत्ता खोलेगा।
(लेखक हैदराबाद स्थित मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म विभाग में शोधार्थी हैं, उनसे 9918923131, और ajmalalikhan@manuu.edu.in पर संपर्क किया जा सकता है)