कमाल अख़्तर अमरोहा के उझारी के हैं। पिछले सात साल से उझारी और ढक्का के चौधरी उनकी राजनीतिक क़ब्र खोदने की खुलेआम मुहिम चला रहे हैं। खुलेआम सोशल मीडिया पर उनको हराने के दावे के किए जा रहे हैं। कमाल ने सीट बदलने की गुहार लगाई। पहले मुरादाबाद से टिकट मांगा, फिर नौगांवा से और आख़िर में कांठ में सेटल हो गए। शायद जीत भी जाएंगे बशर्ते अनीसुर्रहमान डील का हिस्सा हों और लोग पिछली बार की तरह फिज़ाउल्लाह जैसों पर वोट ज़ाया न करें।
हसनपुर तहसील के ही सिहाली जागीर गांव के पूर्व विधायक अशफाक़ ख़ान के ख़िलाफ सिहाली के पठानों ने हराने की मुहिम शुरु की। 2017 में बाक़ायदा समाजवादी पार्टी को अशफाक़ का टिकट कटवाने का चंदा दिया और बदले में जावेद आब्दी को टिकट का समर्थन किया। अब अशफाक़ सियासी बयाबान में हैं।
जावेद आब्दी लगातार दो बार चुनाव हारे। उनकी हार में उनके ही क़स्बे नौगांवा से सैयद और अतरासी के आसापास के पठानों का अहम योगदान रहा। मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद मुसलमानों ने मुहिम चलाई कि समाजवादी पार्टी के मुसलमान विधायक नपुंसक हैं, चूढ़ी पहन कर रहते हैं इसलिए उनको ज़मींदोज़ किया जाएगा। अब हुआ ये है कि पांच छ साल की क़ौमी मुहिम के बाद नपुंसक, दरी बिछैया, क़ौम के दलाल करीब 65 विधायकों का सियासी करियर तक़रीबन ठिकाने लग गया है। पार्टियों ने मान लिया कि मुसलमान अपने कथित सेक्युलर नुमाइंदों से नाराज़ हैं और किसी भी क़ीमत पर उनको वोट नहीं देगे। इसके नतीजे में मुस्लिम बाहुल सीटों पर मुसलमान उम्मीदवारों के टिकट कट गए। पार्टियों ने मान लिया, जिन्हें वोट देना है वो गधे को भी दे देंगे ऐसे में मुसलमान को टिकट देकर अपने हिंदू वोट क्यों ज़ाया किए जाएं।
2017 के चुनाव में कमाल अख़्तर, शाहिद मंजूर, अशफाक़ ख़ान, जावेद आब्दी, नवाज़िश आलम, इमरान मसूद, अनीसुर्रहमान, ज़फर आलम जैसे तमाम मुसलमान उम्मीदवारों के हारने के बाद यह बात पुख़्ता हो गई कि मुसलमान अब बिखर गया है और यूपी में कोई सियासी हैसियत नहीं रखता है। बीजेपी ने मुसलमान वोट के बिना जीत कर दिखा दिया कि दो, या न दो, हमें फिक्र नहीं हैं, तब भी जीतेंगे। अब सामाजिक न्याय वालों का दांव है कि 41 फीसदी पिछड़ों को अगड़ों के सामने एकजुट करलो, फिर दो चार फीसदी दलित या दो चार फीसदी मुसलमान वोट नहीं देंगे तब भी भारी जीत होगी।
अब नैरेटीव यही है कि यूपी की 20 फीसदी आबादी अछूत है और अप्रासंगिक है। यह नैरेटीव बनाने में मियां के चूज़ों का सबसे अहम किरदार है। अब जबकि तमाम नपुंसक, दरी बिछैया ठिकाने लग गए हैं और सियासत छोड़कर चूढ़ी की दुकान खोलने की फिक्र में है यही गैंग रो रहा है कि मुसलमानों को टिकट नहीं मिल रहे। अरे भैया जिनसे लेना न देना, यानी न गठबंधन रखना है, न सामाजिक रिश्ते और न जिन्हें वोट देना है उनसे शिकायत क्यों? ये जो साठ सत्तर सीट पर ‘नुपंसक’ जीत कर आते थे इनके बिना रह कर तो देखो कुछ बरस। बाक़ी तारीख़ क़ौम की दलाली करने वालों से जितने सवाल पूछेगी उससे ज़्यादा सवाल उनके होंगे जिन्होने नेतृत्व खड़ा करने के नाम पर नुमाइंदगी भी डुबो दी है और सारी पार्टियों को संघ के पाले में धकेल दिया है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)