पश्चिमी यूपी में जबरदस्त सर्दी पड़ रही है,देसी जुबां में कहें तो बढ़िया “जाड़ा” हो रहा है मगर राजनीतिक गर्मी इतनी है कि गर्मी लगने लगी है लोगों को, लेकिन कई सीटें ऐसी हैं जिन पर गठबंधन का टेस्ट होना है। पहले चरण की वोटिंग 10 फरवरी को होनी है, सिवालखास विधानसभा से रालोद (राष्ट्रीय लोक दल) के चुनाव चिन्ह पर Haji Ghulam Mohammad चुनाव लड़ रहे हैं। 2012 से 2017 तक सिवालखास से विधायक रहें ग़ुलाम मुहम्मद असल चर्चा में तब आये थे जब उन्हें 2014 लोकसभा चुनावों से ठीक पहले लखनऊ सपा कार्यालय से बुलावा आया था। और अचानक से उन्हें तब बागपत लोकसभा से प्रत्याशी घोषित किया गया था।
उनकी सिवालखास विधानसभा बागपत लोकसभा में आती है,उस समय सोमपाल शास्त्री ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने से मना कर दिया गया था। मुजफ्फरनगर दंगों की आंच में उस वक़्त ग़ुलाम मोहम्मद चुनाव लड़ने मैदान में आये और पार्टी के सिम्बल का मान रखते हुए शानदार चुनाव लड़ा था और दूसरे नम्बर पर आए थे,अजीत सिंह तीसरे नम्बर पर पहुंच गए थे।
आज ग़ुलाम मुहम्मद स्व। अजीत सिंह की पार्टी के सिम्बल पर ही इस सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। सिवालखास शुरू से ही चौधरी चरण सिंह जी की कर्मभूमि रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए ही 7 दिसम्बर को जयंत-अखिलेश ने इस विधानसभा के गांव दबथुवा में रैली कर गठबंधन का एलान किया था। इस सीट पर काफी समय तक राजकुमार सांगवान के चुनाव लड़ने की चर्चा थी लेकिन जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन धर्म निभाते हुए गुलाम मुहम्मद को टिकट दे दिया।
जब गुलाम मुहम्मद के नाम का एलान हुआ तो जाट समाज के लोगों ने विरोध हुआ,ऐसा कई जगह देखने को मिला। लेकिन जयंत चौधरी ने उन्हें दिल्ली बुलाकर अच्छे से समझा दिया। अब उनके कार्यकर्ता समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को चुनाव लड़ा रहें हैं। ज़्यादातर मुस्लिम वोटों वाली सिवालखास विधानसभा मेरठ में आती है लेकिन जाट समाज का वोट यहां बहुत तादाद में है। अब देखना ये है कि क्या जाट-मुस्लिम गठबंधन इस मुश्किल सीट पर पास हो पायेगा?
असल मे गठबंधन का टेस्ट इसी सीट पर है,क्यूंकि उनके गठबंधन में कितनी एकता है औए कितनी ताक़त है ये इस सीट पर आए परिणाम तय करेंगें। वरना फिर ये सवाल उठना लाज़िम हो जाएगा कि क्या 2013 के जख्म अभी भरे नही है? हालांकि ज़मीनी स्तर पर गठबंधन बहुत मज़बूती से चुनाव लड़ रहा है और पश्चिमी यूपी में अखिलेश यादव जयन्त चौधरी के बड़े चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन होता असल मे ये है कि राजनीति में दो और दो, चार नहीं होते हैं। बल्कि 22 होते हैं। देखना ये है कि ये 2022 किसका होगा।