रोहिणी सिंह
सुशांत सिंह मामले में सीबीआई जांच का क्या होगा वो जांच के बाद पता चलेगा। लेकिन रिया के साथ समाज-मीडिया जिस तरह का बर्ताव कर रहा है,उसकी चारित्रिक हत्या हो रही है,उससे समाज के अंदर छिपी सोच की गंदगी भी निकल कर सामने आ रही है,केस से इतर मैं समाज,औरत और इस सोच पर हैरान हूं। रिया में मीडिया की बहुत बात हो रही। लेकिन मुझे समाज में उन महिलाओं से भी निराशा है जो रिया को डायन, हत्यारिन,काला जादू करने वाली कहने वाली भीड़ के साथ लगी है। वे घर में अपनी बेटी के सामने रिया को कूलटा बता रही है। भूल रही है कि कभी उनकी बेटी भी “रिया”बनेगी। कभी किसी से प्यार करगी. रिया ने क्या किया? प्यार किया। सब छोड़कर प्यार के पास रहने चली गयी। एक औरत ही समझ सकती है जब वह अपना सबकुछ छोड़कर किसी के पास जाती है तो उसस पहले किन हालात से गुजरती है। रिया उस दौर से गुजरी। प्यार बिछड़ गया। रिया ने उसे भी स्वीकार किया। वह हंसती रही। उसकी मजबूती में समाज को कूलटा दिख गया। बेचारी होती तो पसंद आती। क्योंकि रिया नहीं हमें बेचारी चाहिए। क्या रिया की जगह राजेश होता तो क्या इतने सवाल होते जितनी एक लड़की पर हो रही है? नहीं होते।
हर पुरुष को प्रेमिका खुद के लिए रिया जैसा ही चाहिए। लेकिन दूसरी की प्रेमिका अगर रिया जैसी हो तो वह वेश्या लगने लगती है। पुरुषों और उनके साये को जीवन का सच स्वीकार कर चुकी महिला को रिया जैसी स्वतंत्र सोच की लड़कियों से दिक्कत है। आप रिया के बहाने हो रही बातों को देखिये,पता चल जाएगा। समाज कह रहा है, रिया ने सुशांत को बिगाड़ दिया। वाह! एक पुरुष जब तक सफलता पा रहा था,जिंदगी में शोहरत की बुलंदियो पर था तब वह स्वतंत्र इंसान था। लेकिन बिगड़ गया तो उसे एक औरत ने बिगाड़ दिया। मतलब जब पुरुष घर छोड़े तो वह सन्यास लेने के लिए निकलता है और और औरत घर छोड़े तो वह वेश्या है। मत कीजिये ऐसा। प्रेम में डूबी हर स्त्री अमृता प्रीतम होती है या फिर होना चाहती है, वह बागी हो जाती है,या हो जाना पड़ता है। प्यार इंसान को बागी बना देता है। रिया बागी थी।
रिया के प्रकरण में समाज से मुझे कोई हैरानी नहीं हुई। हम जैसी हजारों लड़कियां हर पल-जगह कहीं न कहीं,परिवार में ,बाहर में अपनी स्वतंत्र वजूद तलाश करने की हसरत कीमत चुकाते हैं। इस दर्द को न बताते हैं न किसी को समझा सकते हैं। असली परेशानी मिडिल क्लाल महिलाओं को देखकर हुई। रिया प्रकरण ने बता दिया कि उनके अंदर भी कुंठा किस कदर छिपी हुई थी. मैं बहुत कुछ लिखना चाहती थी। कहां शुरू करूं,कहां खत्म पता नहीं चल रहा। असीमित,अनकही सी कहानी है।
रिया के बहाने समाज की कड़वी हकीकत फिर सामने है। रिया के बहाने कई दर्द भी जगे हैं। रिया को समझयें। जानिये। यहां रिया से मतलब एक लड़की नहीं,प्रतिनिधित्व से है। रिया तुम बहुत मजबूत हो। समाज की सबसे फेक तरीके से कही गयी बात है कि हर सफल मर्द के पीछे एक महिला होती है। जबकि मन के अंदर छिपा होता है कि हर असफल पुरुष को छिपाने के लिए एक औरत का बहाना होता है। हकीकत है कि कई औरतों को जीवन में रिया सी हालत गुजरनी होती है। कभी सरेआम। कभी बंद कमरों में।