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त्रिपुरा हिंसाः पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाने वाले दिल्ली के दो वकीलों पर ही लगा दिया गया यूएपीए

नई दिल्ली: त्रिपुरा पुलिस ने दो वकीलों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) लगाया है। इन वकीलों ने त्रिपुरा में हुई हिंसा में आरोप लगाया था कि पिछले महीने राज्य में हुई हिंसा में मुसलमानों को निशाना बनाया गया, इस हिंसा में विश्व हिंदू परिषद (विहिप), हिंदू जागरण मंच, बजरंगदल समेत अन्य हिंदुत्तववादी संगठनों पर आरोप लगाया था।

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पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की ओर से एक फैक्ट-फाइडिंग और कानूनी सहायता मिशन का संचालन करने वाले वकीलों ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि त्रिपुरा की हिंसा प्रायोजित प्रतीत होती है, त्रिपुरा सरकार और राज्य पुलिस ने हिंसा को रोकने के लिए समय पर कार्रवाई नहीं की।

द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ जिन वकीलों पर यूएपीए लगाया गया है उनमें दिल्ली हाईकोर्ट के वकील मुकेश, सुप्रीम कोर्ट के वकील अंसार इंदौरी शामिल हैं। अंसार नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ) के भी सदस्य हैं। त्रिपुरा फैक्ट-फाइडिंग करने गई वकीलों की टीम में सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतेशाम हाशमी और अमित श्रीवास्तव भी थे। उनकी रिपोर्ट मंगलवार को दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जारी की गई।

वकीलों पर लगाए गए यूएपीए पर बसपा सांसद कुंवर दानिश अली ने नाराज़गी ज़ाहिर की है। उन्होंने कहा कि “अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में #TripuraPolice की निष्क्रियता को उजागर करने वाले वकीलों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ #UAPA केस लगाना गंभीर चिंता का विषय है। दुनिया देख रही है। निर्दोष भारतीयों को बचाने में आपकी विफलता के लिए भारत के लोग आपको कभी माफ नहीं करेंगे।”

त्रिपुरा में हिंसा की शुरुआत एक मस्जिद में तोड़फोड़ के साथ हुई और पनीसागर शहर में दुकानों और घरों पर हमला किया गया। बंग्लादेश में हिंदुओं के साथ ही सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में 26 अक्टूबर को विहिप ने रैली निकाली थी, इस रैली के दौरान ही राज्य में हिंसा हुई। इसके बाद कई अन्य कथित घटनाएं हुईं जिनमें मस्जिदों में तोड़फोड़ की गई और मुसलमानों के मकान एंव दुकानों को आग लगा दी गई।

त्रिपुरा पुलिस ने अब तक हिंसा के सिलसिले में लगभग 71 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है और कथित भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर पांच आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया है और राज्य सरकार से हिंसा पर रिपोर्ट मांगी है।

जानकारी के लिये बता दें कि पीयूसीएल की टीम ने 30 अक्टूबर को राज्य का दौरा किया था. दोनों वकीलों को 10 नवंबर तक अगरतला थाने में पेश होने को कहा गया है. एडवोकेट मुकेश ने इस मामले को “एक स्पष्ट जादू टोना और प्रतिशोध” के रूप में वर्णित किया। उन्होंने कहा, “हमने हिंसा के लिए कुछ धार्मिक संगठनों की भूमिका का खुलासा किया है, लेकिन त्रिपुरा पुलिस ने किसी से पूछताछ नहीं की है, लेकिन अब फैक्ट फाइडिंग करने गई टीम को निशाना बनाया जा रहा है।

पुलिस पर लग रहे आरोप पर पुलिस की प्रतिक्रिया लेने के लिये अगरतला पुलिस थाने की प्रभारी अधिकारी जयनता करमाकर से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन मैसेज और कॉल का कोई जवाब नहीं आया. वहीं एक पुलिस अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि वे मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं क्योंकि “मामला अब अदालत में है”।