दिल्ली दंगों के दो साल: दंगा पीड़ितों के लिये किस तरह मसीहा बनी जमीयत उलमा-ए-हिंद!

फरवरी 2020 में नॉर्थ ईस्ट दिल्ली मे हुए सांप्रदायिक दंगों को पूरे दो साल हो चुके हैं। इन दंगों में 53 लोगों की जान गई थी, और कई सो लोग जख्मी हुए थे। इसके अलावा निजी संपत्तियों को भी दंगाईयों ने तहस नहस कर दिया था। 1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों के बाद दिल्ली में इतने बड़े पैमाने पर इस तरह के दंगे हुए हैं। ये दंगे तीन दिन तक चले, दंगा पीड़ितों और दंगों के दौरान आईं विभिन्न वीडियो के मुताबिक़ स्पष्ट कहा जा सकता है कि इन दंगों में भी पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में रही। वास्तव में, यह दंगा नहीं बल्कि एक ‘प्रोग्राम’ था जिसमें दंगाईयों के साथ पुलिस प्रशासन भी शामिल था। बृजपुरी में मस्जिद और मदरसे को निशाने बनाने वाले दंगाई पुलिस की वर्दी में थे। दंगों का शिकार हुए हाजी मोहम्मद अब्बास बताते हैं कि दंगे में न सिर्फ मुस्लिम अल्पसंख्यकों की दुकानें और मकान जला दिए गए उनकी जान भी ली गई, जिसके कारण बड़ी संख्या में बच्चों ने अपने पिता का साया खो दिया। और कई परिवार ने अपने परिवार का ‘अकेला’ कमाने वाले खो दिया। दिल्ली दंगों पर सरकारी और सामाजिक संस्थाओं की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट बताती है कि दंगे न केवल संगठित थे बल्कि एकतरफा थे। रिपोर्ट में तो यहां तक ​​कहा गया है कि दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध थी और कई घटनाओं में पुलिस के जवान दंगों में शामिल थे।

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दंगों के जख़्मों पर जमीअत का मरहम

ऐसे हालात में जमीयत उलेमा-ए-हिंद हमेशा की तरह दंगों का शिकार हुए लोगों के साथ खड़ी रही और शोषितों की मदद करता रही। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी दंगों के दौरान बंग्लादेश के दौरे पर थे, लेकिन जैसे ही दिल्ली दंगों की ख़बर मिली वो भारत लौट आए। और अपने सहोयोगियों तथा जमीयत के पदाधिकारियों के साथ सीधे गुरु तेगे बहादुर अस्पताल गए, और घायलों से मुलाकात कर उनका दुःख साझा किया। इसके बाद वे जाफराबाद पहुंचे जहां उन्होंने जमीयत के पदाधिकारियों को राहत कार्य शुरू करने का निर्देश दिया। इसी रोज़ सुबह मौलाना मदनी ने मुस्तफाबाद का दौरा किया और पीड़ितों से मुलाकात की और उनकी दर्द भरी दास्तान सुनीं, उन्होंने मुस्तफाबाद स्थित मदरसा बैतुल उलूम को राहत केंद्र बनाने का फैसला किया. वह दिन है और आज, दो साल बीत चुके हैं, जमीयत उलेमा-ए-हिंद लगातार पीड़ितों तक पहुंच रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की अन्य राज्य इकाइयों से भी जमीयत उलमा-ए-हिंद को खूब सहयोग मिला है, जिसकी बदौलत जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दंगा पीड़ितों को फिर से आबाद किया। और अब दंगा पीड़ितों के मुकदमों की पैरवी की जा रही है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद की कोशिशों से फिर से आबाद हुई टायर मार्केट

सहायता और पुनर्वास

125 दंगा पीड़ित छोटे व्यापारियों पर जमीयत की ओर 41 लाख रुपये खर्च किये गए, ये ऐसे कारोबारी थे जिनक दुकान अथवा कारोबार को दंगे में जला दिया गया था।

शहीदों के परिवारों को 11 लाख रुपये के माध्यम से विशेष सहायता प्रदान की गई।

ईद-उल-फितर के मौके पर 14 लाख रुपये की ईद किट बांटी गई।

इसके अलावा, सबसे गरीब प्रभावित परिवारों और विधवाओं को विशेष वित्तीय सहायता प्रदान की गई। 1.2 करोड़ रुपये की लागत से 45 दुकानों और 166 घरों का पुनर्निर्माण किया गया। 88 लाख रुपए की लागत से 10 मस्जिदों का पुनर्निर्माण किया गया।

दंगों का निशाना बनी मशहूर टायर मार्केट में 97 दुकानों की मरम्मत की गई और 224 दुकानों को फिर से पेंट किया गया।

करावल नगर स्थित एसई स्कूल का पुनर्निर्माण इसी तरह मदरसा जमीयत-उल-हुदा बृजपुरी का पुनर्निर्माण दस लाख रुपये की लागत से किया गया था। जमीयत द्वारा राहत कार्य और पुनर्वास तक़रीबन साढ़े पांच करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं।

क़ानूनी लड़ाई

दिल्ली दंगों के बाद से मुस्लिम अल्पसंख्यक के खिलाफ पुलिस प्रशासन और जांच एजेंसियों द्वारा दोहरा रवैय्या रहा है। दिल्ली दंगों के मामलों की सुनवाई करने वाले चार न्यायाधीशों में से एक न्यायाधीश ए.एस.जे यादव ने कई आदेश दिये जिसमें उन्होंने पुलिस जांच को “बेवकूफ”, “हास्यास्पद”, “क्रूर” और “अनिर्णायक” करार देते हुए अप्रभावी” बताया है।

दंगों से संबंधित 150 से अधिक दं मामलों के दौरान, न्यायाधीश ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ कई आलोचनात्मक टिप्पणियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जब विभाजन के बाद राजधानी में हुए सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगों को देखा जाएगा, तो साइंटिफिक जांच की कमी निश्चित रूप से लोकतंत्र के रक्षकों को आहत करेगी।” ऐसे में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने बेगुनाहों को न्याय दिलाने के लिए कानूनी तौर पर लंबा संघर्ष किया है और यह संघर्ष अभी तक जारी है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सचिव एडवोकेट नियाज अहमद फारूकी इन मामलों की निगरानी कर रहे हैं।

दिल्ली दंगों के बाद दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका

जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दंगों की निष्पक्ष जांच के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने बीते वर्ष 25 नवंबर को पुलिस को गिरफ्तारी और मुकदमे से संबंधित सभी कार्यवाही पर अदालत में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। इस मामले में जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से जून चौधरी और एडवोकेट तैय्यब ख़ान देख रहे हैं।

शिव विहार मदीना मस्जिद का मामला

दिल्ली दंगों में दंगाग्रस्त इलाक़े शिव विहार स्थित मदीना मस्जिद को दंगाइयों ने गैस सिलेंडर की सहायता से क्षतिग्रस्त कर दिया था। लेकिन विंडबना देखिए कि जब इस मामले में मस्जिद के मुतवल्ली हाजी मुहम्मद हाशिम ने इस घटना शिकायत की तो उन्हें ही जेल में डाल दिया गया। अब उनके मुकदमे को जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से एडवोकेट एम.आर शमशाद देख रहे हैं। दिल्ली पुलिस हाजी मोहम्मद हाशिम की मदीना मस्जिद से संबंधित शिकायत और दंगे के एक अन्या मामले को एक ही एफआईआर में दर्ज करके उल्टे हाजी मोहम्मद हाशिम को ही गिरफ्तार कर लिया था। इस तरह हाजी हाशिम शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों बन गए। जब जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा इस मामले को अदालत के संज्ञान में लाया गया तो जस्टिस विनोद यादव ने इस पर हैरानी ज़ाहिर करते हुए मोहम्मद हाशिम और उनके बेटे को तत्काल जमानत देने का निर्देश दिया। फिलहाल उनका मुकदमा ट्रायल पर है. उनके वकील भी एडवोकेट एमआर शमशाद हैं।

503 मुकदमों में मिली ज़मानत

दिल्ली दंगों में आरोपी बनाए गए जिन लोगों का मुकदमा जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा देखा जा रहा है। उनमें से 503 मामलों में ज़मानत मिल चुकी है। इस क़ानूनी लड़ाई में जमीयत उलमा-ए-हिंद के 84 लाख 25 हज़ार रुपये खर्च हुए हैं। जमानत के बाद सबसे बड़ा मुद्दा उन मामलों का है जिन पर मुकदमा चल रहा है, यानी वे मामले जिनमें चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और अब आपराधिक स्थिति और सजा पर मुकदमा चल रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस तरह के करीब 160 मामले लड़ रही है जिसमें जमीयत उलेमा-ए-हिंद के वकील एडवोकेट सलीम मलिक, एडवोकेट अब्दुल गफ्फार, एडवोकेट शमीम अख्तर, एडवोकेट एमआर शमशाद और एडवोकेट सरवरमंदर प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। सर्वविदित है कि अदालतों में मुकदमों की पैरवी पर कितना समय और पैसा खर्च होता है, इसलिए जो मामले ट्रायल पर हैं उन पर भारी खर्च आएगा, ऐसा अनुमान है कि यह खर्च तक़रीबन तीन करोड़ रुपये तक जा सकता है।

जमीयत उलमा-ए-हिंद का पैग़ाम

जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी कहते हैं कि दिल्ली के दंगों को भारत के इतिहास में इसलिये उद्धृत किया गया क्योंकि ये देश की राजधानी में हुए थे, जिसके कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश को बदनाम हुआ। ये नुकसान हिंदुओं और मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि देश के लिए है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, जिसका इतिहास ही लोगों की सेवा करने का रहा है, और जिसने आजादी के बाद से देश के निर्माण में योगदान दिया है, वह हमेशा उत्पीड़ितों के साथ खड़ा रहा है। यह अल्लाह की मेहरबानी है। उसने जमीयत उलेमा-ए-हिंद से मानवता की सेवा का काम लिया और सरकारों को जो करना चाहिए, वह जमीयत ने किया। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने घर बनवाए, दुकानों की मरम्मत कीं, और वित्तीय सहायता से व्यापारियों को फिर से रोजगार दिया। दंगों में खाक हुए टायर मार्केट को फिर से आबाद किया गया, यह ऐसा एक ऐसा बाजार था जिसमें हजारों लोग काम करते हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिंद मानवता के आधार पर काम करती है जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने यहां जो कुछ भी किया है, उसने न केवल अपनी जिम्मेदारी पूरी की है और धर्म और राष्ट्रीयता के बावजूद सभी को लाभान्वित किया है। आज हम कानूनी सहायता प्रदान कर रहे हैं, उस पर संसाधनों का बोझ है, लोग हमारे पास आ रहे हैं कि हमें दो साल बाद भी मुआवजा नहीं मिला है, हमारे वकील उनके लिए कानून लड़ाई लड़ रहे हैं।

देश की वर्तमान व्यवस्था में सरकारी सहायता देने में इतनी देरी हो रही है कि अगर सामाजिक और कल्याणकारी संगठन आगे नहीं आए तो बहुत से परिवार निराशा और भुखमरी में रह जाएंगे। हमने लोगों को इससे बाहर निकालने की कोशिश की। हम अस्थायी राहत देकर पीछे नहीं हटते लेकिन जब तक स्थिति में सुधार नहीं होता, हम उनके साथ हैं और आगे भी रहेंगे।

जमीत उलमा-ए-हिंद की ओर से अदालती मामलों को देख रहे नियाज़ अहमद फारूक़ी कहत हैंजमीयत उलेमा-ए-हिंद न्याय के लिए प्रयास कर रहा है। हम तीन कई मोर्चों पर न्याय के लिये संघर्ष कर रहे हैं। जिसमें हम दिल्ली दंगों की निष्पक्ष जांच और न्याय के लिए जिम्मेदार लोगों को लाना चाहते हैं। हम इसके लिए दिल्ली हाई कोर्ट में लड़ रहे हैं। दूसरी ओर हमारा संघर्ष दिल्ली पुलिस की गैरजिम्मेदार जांच के कारण जेल में बंद निर्दोष लोगों को न्याय दिलाना है।

वहीं दिल्ली दंगों जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से राहत कार्यों का प्रभार संभालने वाले मौलाना हकीमुद्दीन क़ासमी कहते हैं कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद का एक प्रतिनिधिमंडल रात को शिवविहार पहुंचा, जब शिवविहार के अधिकांश पीड़ितों ने शिविर में शरण ली थी। इस दौरान जमीयत उलेमा की टीम को दंगा पीड़ितों की सहायता करने का मौका मिला जो बच गए लेकिन उनकी जिंदगी बर्बाद हो गई, किसी की आंख तेजाब से जला दी गई, किसी का हाथ काट दिया गया, ऐसे लोगों की इलाज से लेकर हर स्तर पर जमीयत का सहायता की है। इसका एक उदाहरण मुहम्मद वकील हैं, वकील शिव विहार में रहते हैं, दिल्ली दंगों में उनकी आंखों तेज़ाब के हमले में जल गईं थी, जिसके बाद उनकी आंखों को रोशनी चली गई। जमीयत उलमा-ए-हिंद द्वारा उनका इलाज कराया जा रहा है, साथ ही जमीयत ने उनके मकान का भी पुनिर्माण किया है।