दो ‘मुजरिम’ लालू और गुरमीत सिंह! और सत्ता का चरित्र

सुसंस्कृति परिहार

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इन दिनों पांच राज्यों के चुनावों की सरगर्मी के बीच दो मुलजिम चर्चाओं में है ।लालू यादव चारा घोटाले में जेल में बंद हैं उन्हें स्वास्थ्य खराब होने पर भी जमानत बड़ी मुश्किल से मिलती है और दूसरे हैं गुरमीत राम रहीम जो धर्म की आड़ में बलात्कार जैसे जुर्म में आजीवन कारावास झेल रहे हैं।यूं तो दोनों मामले पहली नज़र में सामान्य लगते हैं। लेकिन लालू यादव का मामला उनका तमाम राजनैतिक जीवन खत्म करने की एक पहली ऐसी घटना है जिसमें इस घोटाले की जांच की मांग उठाने वाला ही अपराधी बना दिया गया। ठीक वैसे ही जैसे गुजरात के आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट आज गुनहगार बतौर जेल में हैं और जमानत को तरस रहे हैं।


गुरमीत राम रहीम सिंह देश के विवादित नामों में से एक है ये अपने आप को स्पिरिचुअल मास्टर बताता रहा। तात्कालिक समय में इसने एक साथ कई कार्य करना शुरू किया इसे स्पिरिचुअल लीडर के साथ साथ अभिनेता, निर्देशक, गायक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता रहा।

जबकि डेरा सच्चा सौदा का कथित बाबा रामरहीम बलात्कार की सजा जेल में भोग रहा है उसे जमानत दी गई इसलिए क्योंकि पंजाब के मालवा क्षेत्र में उसका प्रभाव है वह वहां वोट दिलवा सकता है। पहले लोग इसे समझ नहीं पाए किंतु जब उसने अपने कोड के जरिए भाजपा और अकाली दल को वोट डालने का संदेश दिया तो लोगों के कान खड़े हो गए।एक बलात्कारी सजायाफ्ता से वोट कबाड़ने का कमाल भाजपा ने दिखा दिया।यह बेहद पतित काम है। लेकिन मोदी है तो मुमकिन है।इतना ही नहीं उसे जेडप्लस सुरक्षा भी दी गई इस बेस पर कि उसके जीवन को ख़ालिस्तानियों से ख़तरा है जबकि पंजाब अब खालिस्तानी खतरे से मुक्त है।

कहते हैं गुरमीत सिंह राम रहीम का राजनीति में भी गहरी पैठ बनी हुई है इनका राजनैतिक असर सदा से पंजाब के मालवा क्षेत्र में बरकरार रहा है। वर्ष 2014 में हरियाणा में होने वाले चुनाव में इन्होने देश की तात्कालिक सबसे बड़ी और रूलिंग पार्टी भारतीय जनता पार्टी को इनका समर्थन प्राप्त हुआ था। इसके बाद फरवरी 2015 को दिल्ली विधानसभा में इसने एक बार पुनः भारतीय जनता पार्टी को खुल कर अपना समर्थन यह कहते हुए दिया कि दिल्ली में उनके कुल 20 लाख समर्थक हैं और भारतीय जनता पार्टी ही दिल्ली विधान सभा जीतेगी, किन्तु ऐसा नही हुआ और भारतीय जनता पार्टी को पूरी दिल्ली में केवल 3 सीटें प्राप्त हुईं थी। इसके उपरान्त बिहार विधान सभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी के लिए कार्य किया और लगभग 3000 डेरा समर्थक पूरे बिहार भर में भारतीय जनता पार्टी के प्रचार प्रसार में किया, किन्तु अंततः वहाँ भी भारतीय जनता पार्टी को हार का ही सामना करना पड़ा। पंजाब में भी ऐसा ही जवाब मिलने की उम्मीद है।

आपराधिक चरित्रधारी गुरमीत राम रहीम के ऊपर डेरे के महिला अनुयायियों के साथ बलात्कार का आरोप लगा। उस के ऊपर सिरसा के एक स्थानीय पत्रकार की हत्या का भी एक मामला है। इस केस में फैसला आना अभी बाकी है। उस पर डेरे के 400 से ऊपर पुरुष अनुयायियों को नपुंसक बनाने का भी आरोप है। आपको याद होगा।2015 में, गुरमीत की फिल्म, “Messenger of God”, जब सेंसर बोर्ड ने पास कर दी थी तो फिल्म के विरोध में तत्कालीन सेंसर बोर्ड की हेड लीला सैमसन ने अपना इस्तीफा दे दिया था।

गुरमीत राम रहीम तब और विवादों में आ गया था जब उसने सिखों के दशम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी की पोशाक धारण कर ली थी। इसके परिणाम स्वरूप, पंजाब सरकार ने डेरे पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसकी आपराधिक चर्चाओं में प्रियंका तनेजा उर्फ हनीप्रीत कौर भी रहीं जिनकी विश्वास गुप्ता के साथ शादी 14 फरवरी, 1999 को डेरा प्रमुख राम रहीम ने ही कराई थी. … बताया जाता है कि राम रहीम ने हनीप्रीत की शादी तो गुप्ता से कराई थी, लेकिन उसे कभी भी हनीप्रीत के साथ संबंध बनाने नहीं दिया गया बाद में बताया गया 2009 में राम रहीम ने उसे गोद ले लिया ।

25 अगस्त 2017 को, पंचकुला स्थित सी० बी० आई० की एक विशेष अदालत ने गुरमीत राम रहीम को सन 2002 में फाइल किए गए डेरे की दो साध्वियों के बलात्कार के आरोप में आरोपी घोषित किया। 28 अगस्त 2017 को, रोहतक जेल में सी० बी० आई० की एक विशेष अदालत के न्यायाधीश जगदीप सिंह ने गुरमीत राम रहीम को सन 2002 में फाइल किए गए डेरे की दो साध्वियों के बलात्कार के आरोप में 20 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। दोनों साध्वियों को 14 -14 लाख रूपए देने का भी आदेश जारी हुआ।
ऐसे व्यक्ति राम रहीम को 7 फरवरी 2022 को गुरुग्राम में अपने परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए 21 दिनों के लिए अवकाश दिया गया। यह 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले हुआ।वह भाजपा का चुनाव प्रचारक बन गया।

दूसरी ओर है लालू प्रसाद यादव जिन्हें पांच मामलों में लगातार सजाएं सुनाई जा चुकी हैं अस्सी और नब्बे के दशक में पशुपालन विभाग ने बिहार के विभिन्न कोषागारों से फ़र्ज़ी बिल्स के आधार पर क़रीब 900 करोड़ रुपये की अवैध निकासी की. अधिकारियों के मुताबिक ट्रेजरी की जाँच के क्रम में जब ये बातें अधिकारियों को पता चलीं, तो उनके लिए यह यक़ीन करना मुश्किल था. क्योंकि, तय बजट से अधिक की राशि खर्च की जा रही थी. साल 1985 में बिहार के तत्कालीन महालेखाकार ने भी इस पर आपत्ति की. तब उन्हें जरुरी ब्योरे नहीं मिल रहे थे. तब बिहार में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और डॉ जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री थे।

इस बीच बिहार की सत्ता बदली और साल 1990 में तत्कालीन जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने। इसके बावजूद अवैध बिल पर धन निकासी जारी रही।साल 1996 में यह पहली बार व्यापक चर्चा का विषय बना। तब बिहार सरकार ने युवा आइएएस अधिकारी अमित खरे को चाईबासा (पश्चिम सिंहभूम) ज़िले का उपायुक्त बनाकर भेजा. उन्होंने चाईबासा ट्रेजरी में छापा मारकर कई लोगों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज करायी और ट्रेजरी को सील कर दिया।उसके बाद यह घोटाला पकड़ में आया। तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के आदेश पर कई कोषागारों में छापेमारी की गयी और बिहार पुलिस ने कई रिपोर्टें दर्ज की गई हालाँकि बाद में यह मामला सीबीआई को चला गया और तब से तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को भी अभियुक्त बनाया गया है।मज़े की बात ये है कि तब पहली एफ़आइआर करने वाले अमित खरे अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं और इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकार हैं।

लालू प्रसाद यादव को इस घोटाले के कारण 25 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. उसी साल 30 जुलाई को उन्होंने पटना में सरेंडर किया और वे इस घोटाले में पहली बार जेल गए।अब विभाजन के बाद मामले झारखंड रांची में निर्णीत हो रहे ।

भारत के इतिहास में पहली बार कोई मुख्यमंत्री फर्जी बिल बनाने और उसे पेमेन्ट करने के लिए जेल गया है। मजे की बात यह है, मुख्यमंत्री न बिल बनाता है, न चेक साइन करता है, न कोषागार जाकर आहरण करता है।मामला क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी का है। मुख्यमंत्री ने आपराधिक षड्यंत्र किया, ऐसा गवाहों के बयानों में आया है। गवाहो के बयानों में उस मुख्यमंत्री की कॉन्सपिरेसी भी आई थी, जिसने अपने गुंडों को तीन दिन तक, अपनी राजधानी में मौत का नंगा नाच करने की छूट दी थी। महत्वपूर्ण बात है कि जिस षड्यंत्र को रचने का आरोप लालू पर साबित हुआ है, वह उनके 20 साल पहले से चल रहा था। याने 1978 से पशुपालन विभाग, अपनी आवंटन राशि से अधिक की निकासी कर रहा था। लालू यादव ने जांच बिठाई। FiR की, एक नहीं , दो नही, पूरी 64 Fir, छापे मरवाये, अफसरों को सस्पेंड किया। जांच कमीशन बिठाया, कि इस बीच PIL दाखिल हो गयी। क्योकि भावी उपमुख्यमंत्री, सुशील कुमार मोदी को यकीन नही था कि लालू सरकार निष्पक्ष जांच करेगी। सो हाईकोर्ट से रिक्वेस्ट की, कि मामला सीबीआई को दे दिया जाये। तब सीबीआई ने सभी दर्ज 64 केस हैंडओवर ले लिए। खुद भी नई FIR दर्ज की। इनमें लालू को ही नामजद कर दिया गया। शुरुआती जांच में नीतीश कुमार का भी नाम सीबीआई के दस्तावेजों में है। लेकिन वे समता पार्टी बनाकर बीजेपी से मिल चुके थे। तब सीबीआई ने सभी दर्ज 64 केस हैंडओवर ले लिए। खुद भी नई FIR दर्ज की। इनमे लालू को ही नामजद कर दिया गया।

वैसे तो शुरुआती जांच में नीतीश कुमार का भी नाम सीबीआई के दस्तावेजों में है। लेकिन वे समता पार्टी बनाकर बीजेपी से मिल चुके थे। लेकिन लालू ने बीजेपी से हाथ न मिलाया। न 1996 में, न 2016 या 2021 में। इसलिए 22000 करोड़ के सृजन घोटाले में नीतीश सुरक्षित हैं। वो तीसरी बार अबाधित राज कर रहे हैं। लालू के केस में न कोई गवाह पलटता है, न बयान बदलता है। सबको बीस साल पहले का सब घटनाक्रम, एकदम साफ साफ याद रहता है।

लगता है लालू का सबसे बड़ा दोष यह है कि उन्होंने इस मामले को उठाया।दबा रहता तो अच्छा होता।क्योंकि दूसरा बंदर बांट नहीं हो सकी।तीसरे सबसे चुभने वाली बात यह है कि उन्होंने बिहार के दलित और पिछड़े वर्ग को ऊंची जात की बराबरी करने के रास्ते खोल दिए।यह भाजपा के लिए आज तक बिहार में बड़ी चुनौती बनके खड़ी है।

दोनों मुलजिमों की दास्तान यह साफ़ तौर पर जाहिर करती है कि देश अब निरंतर फाज़िज़्म की ओर तेज गति से बढ़ रहा है जिसमें शातिर अपराधी ना केवल केन्द्र की सत्ता पर बैठेंगे बल्कि घृणित कृत्यों में संलग्न अपराधी भाजपा का चुनाव प्रचार करेंगे जेड प्लस सुरक्षा के साथ तथा घोटाले के विरुद्ध आवाज उठाने और गुजरात नरसंहार के बारे में सच बोलने तथा आदिवासियों को अपने अधिकारों की बात बताने वाले अपना तमाम जीवन जेल में बिताएंगे।बेशक भारत बदल रहा है। लोकतंत्र तड़प रहा है।जन गरजे तो बात बने।