तिरंगे और भगवा झंडे का खेल

पलाश सुरजन

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कर्नाटक में हिजाब को लेकर मचे घमासान के बीच पिछले दिनों एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें शिमोगा के एक कॉलेज में खम्भे पर पर एक युवक भगवा ध्वज लगाते नज़र आया। कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने आरोप लगाया कि यह भगवा झंडा, तिरंगे को हटाकर फहराया गया। इस आरोप में कोई सच्चाई नहीं पाई गई लेकिन इस घटना के एक-दो दिन बाद भाजपा के नेता के.एस. ईश्वरप्पा के बयान से एक नया विवाद खड़ा हो गया। उन्होंने कहा कि भगवा झंडा भविष्य में राष्ट्रीय ध्वज बन सकता है। हालांकि तिरंगा अभी राष्ट्रीय ध्वज है और इसका सभी को सम्मान करना चाहिए। अपने वैचारिक पुरखों के उद्गार दोहराते हुए मंत्री जी ने यह भी कहा कि ‘‘सैकड़ों साल पहले श्री रामचंद्र और मारुति के रथों पर भगवा झंडे थे। क्या तब हमारे देश में तिरंगा झंडा था? अब यह (तिरंगा) हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में निर्धारित है। इस देश का अन्न ग्रहण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इसका सम्मान करना चाहिए। इस पर कोई सवाल ही नहीं उठता है।’’

ईश्वरप्पा, कर्नाटक के ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री भी हैं। उनके इस कथन पर कर्नाटक कांग्रेस के विधायकों ने विधानसभा में उनके इस्तीफे और बर्खास्तगी की मांग के साथ-साथ देशद्रोह का मामला भी दर्ज करने की मांग की। इन विधायकों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए विधानसभा में ही रात गुजारी। उन्होंने ईश्वरप्पा के विरुद्ध कार्रवाई की मांग को लेकर सदन में नारेबाजी भी की और आरोप लगाया कि यह सरकार आरएसएस की कठपुतली है। ईश्वरप्पा ने भी शिवकुमार पर राज्य के संसाधनों को लूटने का आरोप लगाते हुए उन्हें देशद्रोही करार दिया। यह विवाद कर्नाटक तक ही सीमित नहीं रहा। जदयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भी ईश्वरप्पा को देशद्रोही ठहराया और उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की। हालांकि उपेंद्र कुशवाहा की ये मांग बहती गंगा में हाथ धोने जैसी ही कही जाएगी, बिहार सरकार में भागीदार दोनों पार्टियों के बीच पनप रही खटास ऐसे ही बहानों से जब तब सतह पर आ जाती है।

दो साल पहले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती के इस कथन कि “जब तक जम्मू-कश्मीर को लेकर संविधान में किए गए बदलावों को वापस नहीं ले लिया जाता, तब तक उन्हें चुनाव लड़ने और तिरंगा थामने में कोई दिलचस्पी नहीं है, वे तिरंगा झंडा तभी थामेंगी जब जम्मू-कश्मीर को पूर्ववर्ती राज्य का झंडा वापस मिल जाएगा” को जम्मू कश्मीर भाजपा ने ‘देशद्रोही’ बताते हुए उनकी गिरफ्तारी की मांग की थी। साफ़ है कि जो बात कश्मीर में भाजपा को ‘देशद्रोह’ दिखाई देती है, कर्नाटक में उसका अपना नेता वैसी ही बात करे तो उसके मुंह में दही जम जाता है। वह भूल जाती है कि 2004 में इसी कर्नाटक के हुबली से जलियांवाला बाग तक उमा भारती के नेतृत्व में तिरंगा यात्रा निकाली गई थी। उमा भारती को तब राष्ट्रध्वज के अपमान के आरोप में मुक़दमे का सामना भी करना पड़ा, हालांकि बाद में अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। इसी कर्नाटक के बेलगाम में चार साल पहले देश का सबसे ऊंचा तिरंगा फहराया गया। ये और बात है कि यह पहल तब कांग्रेस के स्थानीय विधायक ने की थी।

लेकिन राष्ट्रीय ध्वज को लेकर भाजपा का दोहरा रवैया केवल कश्मीर या कर्नाटक में नहीं है। दरअसल तिरंगा उसके लिए राष्ट्रीय ध्वज कम, अपने सियासी मक़सद को हासिल करने का औजार ज़्यादा है। पिछले साल किसान आन्दोलन के दौरान जब लाल किले पर एक धार्मिक झंडा फहरा दिया गया तो आन्दोलन को बदनाम करने का भाजपा को बहाना मिल गया। उसने जगह-जगह ‘तिरंगा सम्मान यात्राएं’ निकालीं और लोगों को ये बताने की कोशिश की कि दिल्ली की सरहदों पर बैठे किसान देशद्रोही हैं, जबकि धार्मिक झंडा फहराने वाले का प्रत्यक्ष-परोक्ष सम्बन्ध भाजपा से था। कश्मीर के कठुआ में मासूम बच्ची से बलात्कार करने वालों के नाम जब सामने आए तो हिन्दू एकता मोर्चा ने उनके समर्थन में तिरंगा यात्रा निकाली थी। पीडीपी-भाजपा की गठबंधन सरकार में शामिल भाजपा के दो मंत्री इस यात्रा में शरीक हुए थे, बाद में दोनों को इस्तीफ़ा देना पड़ा था। गौमांस के नाम पर बिसाहेड़ा में अख़लाक़ की हत्या करने वाले एक आरोपी की मौत हुई तो केंद्र सरकार के एक मंत्री उसे श्रद्धांजलि देने पहुँच गए, लेकिन उसके शव पर रखे गए तिरंगे पर उन्होंने रत्ती भर भी ऐतराज़ नहीं जताया।

बीते बरसों में तमाम भाजपा शासित प्रदेशों में ऊंचे से ऊंचा तिरंगा फहराने की एक मुहिम सी चली थी, केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों ने भी अपने अधीन संस्थानों में ये काम करने का ऐलान किया था। करोड़ों रूपए इस काम में खर्च किए गए, सिर्फ़ इसलिए कि जनता भाजपा को ही सबसे बड़ा देशभक्त माने, ऊंचे तिरंगे को देखकर गर्व का अनुभव करे और उस अनुभूति में अपनी भूख-प्यास सब भूल जाए। इसके अलावा जब समुदाय विशेष को नीचा दिखाना हो तो उस जिन्ना टावर पर जबरन तिरंगा फहराने की कोशिश की जाए, जो उसके लिए बना ही नहीं और जिसका उनके मजहब से कोई वास्ता ही नहीं, या कॉलेज के उस खम्भे पर भगवा फहरा दिया जाए जहाँ तिरंगे के अलावा कुछ और होना ही नहीं चाहिए। कुल मिलाकर, एक जादूगर जिस तरह अपनी टोपी से कभी खरगोश, तो कभी कबूतर निकालकर दर्शकों से तालियाँ बजवा लेता है, कुछ वैसा ही खेल तिरंगे और भगवा झंडे के साथ दिखाया जा रहा है। जनता इस खेल को जितनी जल्दी समझ ले उतना अच्छा होगा।

(लेखक देशबन्धु के संपादक हैं)