यह भी होने लगा है। असम अपने नागरिकों से कह रहा है कि वे मिज़ोरम न जाएँ और जो किसी काम से गए हैं सतर्कता बरतें। यह शर्मनाक भी है और ख़तरनाक भी। अभी तक इस तरह की हिदायतें एक देश दूसरे देश के लिए जारी करता था लेकिन मेरी नज़र में यह पहली बार देखने को मिल रहा है कि भारत के भीतर एक राज्य दूसरे राज्य के प्रति यात्रा हिदायतें जारी कर रहा है। मोदी और शाह को असम आकर मिज़ोरम जाना हो तो लगता है अब हिमांता बिस्वा शर्मा से इजाज़त लेनी होगी ?
यह उस नेता के नेतृत्व में हो रहा है जिनकी ब्रांड वैल्यू मज़बूती के नाम पर बनाई गई है। जिन्होंने खुद दो दिन तक असम के मारे जवानों के लिए दो शब्द नहीं कहे। उसके बाद मैंने भी देखना छोड़ दिया। ये नेता दावा करते रहते हैं कि उनकी सरकार में पूर्वोत्तर पर सबसे अधिक ध्यान दिया। शायद इसी का नतीजा है कि ज़्यादा ध्यान दिया। पूर्वोत्तर को समझने के नाम पर ग़लत समझने लगे हैं। दिल्ली में दावा किया गया कि हालात सामान्य हो गए लेकिन यह यात्रा हिदायत बता रही है कि सच्चाई क्या है।
क्या असम और मिज़ोरम दो अलग संविधान के तहत काम करते हैं? क्या दोनों अलग देश हैं? क्या यह विखंडन नहीं है ?
इन्हें बात कर समस्याओं को सुलझाना नहीं आता है। आप इनका रिकार्ड देख लीजिए। जम्मू कश्मीर के साथ क्या किया। बिना बात किए धड़ाम से राज्य का दर्जा ख़त्म कर दिया।नेताओं को पाकिस्तानी और देश के लिए ख़तरा बता कर साल साल भर नज़रबंद किया। फिर याद आया कि अरे बात भी करनी है। बात करने का फ़ोटो खिंचवाया और बात ख़त्म। नागरिकता क़ानून का हाल देखिए। अचानक क़ानून ले आए। विरोध करने वालों से बात तक नहीं की। ऐसे जताया कि हम परवाह नहीं करते। हम मज़बूत नेतृत्व वाले हैं। आज तक उस क़ानून के नियम नहीं बना सके हैं। पास होकर भी लागू नहीं है।
किसानों से बातचीत का नतीजा आपके सामने है। ऐसे दम दिखाया कि हम जनदबाव की परवाह नहीं करते। लेकिन आज एक साल हो गए हैं उस क़ानून को भी लागू नहीं कर पा रहे हैं। न पहले बात करने का तरीक़ा आता है और न बाद में। बस कुछ लोगों को फँसाने डराने और जेल में बंद करने में ही सारी बहादुरी नज़र आती है।