इस्लाम हुसैन
आज ही के दिन 27 जनवरी 1948 को गांधीजी बिरला हाउस से प्रसिद्ध सूफी दरग़ाह हज़रत बख़्तियार काकी की दरगाह गए थे। जहां पर कुछ उपद्रवियों ने दरगाह और मस्जिद को नुक़सान पहुंचाया था। दरगा़ह हज़रत काकी की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हज़रत बख़्तियार काकी मश्हूर और दुनिया के जाने माने सूफ़ी हज़रत मुईनुद्दीन चिश्ती के ख़लीफा और हज़रत बाबा फरीद जैसी अज़ीमुश्शान हस्ती के पीरो-मुर्शिद थे।
इससे पहले गांधी जी ने 18 जनवरी को अपने ज़िन्दगी का आख़िरी 6 दिखनी उपवास इस शर्त पर ख़त्म किया था कि हिन्दू और मुसलमान आपस में सौहार्द से रहेंगे और हिन्दू समुदाय के उपद्रवियों ने जिन मस्जिदों और दरगाहों को नुक़सान पहुंचाया है उसका पश्चाताप करते हुए मस्जिद दरगाहों की मरम्मत के करेंगे, और मस्जिदों को वापस लौटाएंगे। इसी क्रम में दिल्ली की करीब 117 मस्जिदों को वापस मुसलमानों के हवाले किया गया था।
यह गांधी जी और हिन्दू समाज की बहुत बड़ी पहल थी, इसको हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। जिसके बूते मुसलमानों में देश के प्रति विश्वास पैदा हुआ था। पाकिस्तान जाते हुए काफ़िले रुके। यदि तीन दिन बाद गांधी जी शहादत नहीं हुई होती तो गांधीजी के उपवास के बाद हिन्दू समाज की यह पहल आज़ाद भारत में गंगा जमना तहज़ीब की सबसे बड़ी मिसाल मानी जाती, और वह इसी रूप में मनाई जाती।
मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि गंगा जमना तहज़ीब के कुछ दुश्मन दोनों तरफ बैठ कर पीढ़ियों को बर्बाद कर रहे हैं।
मुसलमानों में सूफियत को दोयम दर्जा देने वाले मौलवियों को मैं यह समझा दूं कि हज़रत बख्तियार काकी वह अज़ीम हस्ती थे, जिनके आगे बड़े से बड़े मौलवियों का इल्म और ज़ुबान बंद हो जाता करती थी। हज़रत उस चिश्तिया सिलसिले की बीच की कड़ी हैं जो सिलसिला हज़रत शेख उस्मान हारूनी से होकर हज़रत शेख मुईनुद्दीन चिश्ती, हज़रत बख़्तियार काकी, हज़रत बाबा फरीद, हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया महबूबे इलाही, हज़रत चिराग देहलवी और आगे दखन में हज़रत बंदा नवाज़ गेसू दराज़ सहित पूरे दक्षिण एशिया में मुहब्बतो इंसानियत का मरक़ज़ बना हुआ है।
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं)