नई दिल्लीः कृषि कानूनों का रद्द करने और एमएसपी पर क़ानून बनाने की मांग को लेकर बीते छह महीने से भी अधिक समय से किसान दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे हैं. इसी बीच किसान नेता चौधरी राकेश टिकैत ने कहा है कि वे अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव में लोगों से बीजेपी को वोट ना देने की अपील करेंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी को दवाई मिली तो इनको आराम मिला, अगले तीन साल में बीजेपी को पूरा आराम मिलेगा.
उन्होंने ये बातें एनडीटीवी से बातचीत करते हुए कही हैं. किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हराएंगे और लोगों से वोट ना देने की अपील करेंगे. राकेश टिकैत ने कहा कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी को जो दवाई मिली, उससे इन्हें आराम मिला. यूपी में भी दवाई दी जाएगी और इन्हें आराम मिलेगा. राकेश टिकैत ने यह भी कहा कि इनका तीन साल का कोर्स है और अगले तीन साल में इनको पूरा आराम मिल जाएगा.
टिकैत ने कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव की शुरुआत होने के साथ ही वे लोगों के पास जाएंगे और बीजेपी के खिलाफ पंचायत करेंगे. राकेश टिकैत ने यह भी कहा कि लोगों को यह बताया जाएगा कि यूपी में बिजली के रेट काफी ज्यादा हैं, यहां गेहूं की खरीद नहीं बढ़ी है, गन्ने का रेट भी नहीं बढ़ा है और ना ही भुगतान हुआ है. लोगों को यह भी बताया जाएगा कि कैसे कोरोना काल में लोग उचित स्वास्थ्य व्यवस्था ना होने की वजह से अस्पताल के गेट पर मरे. हालांकि किसान नेता राकेश टिकैत ने यह स्पष्ट किया कि वे कोई भी चुनाव नहीं लड़ेंगे.
इस दौरान किसान नेता राकेश टिकैत ने यह भी कहा कि 26 जून को देश के सभी राज्यों के गवर्नर हाउस पर किसान प्रदर्शन करेंगे. किसान राज्यपाल को अपना ज्ञापन सौंपेंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि इस दौरान कोई भी मार्च नहीं निकलेगा. राकेश टिकैत ने यह भी कहा कि हम कोई बड़ी रणनीति इसलिए नहीं बना रहे हैं कि मीडिया कहे कि हमें कोरोना की चिंता नहीं है.
किसान केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले छह महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमा पर धरना दे रहे हैं. किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच आखिरी बातचीत 22 जनवरी को हुई थी. केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को तीनों कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक निलंबित करने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन किसान संगठनों ने सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. किसान संगठनों ने केंद्र सरकार से इन कानूनों को वापस लेने को कहा था लेकिन सरकार ने इससे साफ़ मना कर दिया था.