उत्तर प्रदेश में राशन कार्ड वापसी का अभियान चल रहा है। अमर उजाला में कार्ड लौटाने से संबंधित कई ख़बरें छपी हैं। आगरा में ही 43000 राशन कार्ड लौटाने की ख़बर है। इसे लेकर कई सवाल नज़र आ रहे हैं। लौटाए जा चुके राशन कार्ड में से ज़्यादातर कब बने थे? क्या चुनाव को देखते हुए बनाए गए थे? बिना पात्रता के अधिकारियों ने कार्ड किसके दबाव में बनाए? क्या लखनऊ से कोई आदेश निकला था कि सबका कार्ड बनाना है? यह भी देखना चाहिए कि जो लोग कार्ड लौटा रहे हैं, उनमें से कितने लोगों ने अनाज लिए हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि कार्ड के नाम पर अनाज कहीं और बिक रहा था?
राशन कार्ड वापसी अभियान को लेकर कई तरह की शंकाएँ उभर रही हैं। इसे भूल सुधार कार्यक्रम के रूप में पेश किया जा रहा है। क्या इसलिए कि अधिकारियों को बचाया जा सके? अगर किसी ने ग़लत अनाज लिया है तो उससे पैसे क्यों नहीं लिए जाने चाहिए? सरकार जब विज्ञापन छपवा रही थी तब उसे क्यों नहीं दिखा कि 15 करोड़ लोग राशन के लिए कहां से आ गए? क्या प्रदेश में इतनी ग़रीबी है? सरकार ने भी अनाज बाँटते समय शर्तों का प्रचार क्यों नहीं करवाया?
एक संकट नैतिकता का भी है। लोग मुफ़्त अनाज के लिए झूठ भी बोल सकते हैं। घर में कार है, एसी है लेकिन राशन कार्ड से अनाज लेंगे। हो सकता है कि कई लोगों की कार होने के बाद भी आर्थिक परिस्थिति कठिन हो, लेकिन यह सभी के साथ तो नहीं हो सकता। क्या उन्हें कुछ भी ग़लत नहीं लगा कि ग़रीबों के लिए बनी योजना का लाभ उठा रहे हैं? ग़रीबों का हक़ मार रहे हैं।
इससे पता चलता है कि समाज में फ्राड करने में किसी को संकोच नहीं है। लोग कैसे ग़रीबों के लिए बनी इस योजना का लाभ उठाने सकते हैं? क्या हिन्दू राष्ट्र में समाज उसी तरह करप्ट रहता है? धर्म के नाम पर मारा-मारी करने वाले समाज भी ईश्वर का ध्यान कर भ्रष्टाचार से नहीं डरता है? यही वह समाज है तो पाप-पुण्य के नाम पर हर तरह की अनैतिकता को पचा जाता है। भ्रष्ट नेताओं को नायक बनाता है। इसे सिर्फ़ यही पता है कि लोकतंत्र का लाभ केवल चोरी के रास्ते से लिया जा सकता है। वर्ना तमाम तरह की संस्थाओं के पतन और विध्वंस की ख़बरों से यह चेत जाता। नैतिकता की बात सुन लेंगे लेकिन करेंगे वही जो अनैतिक है। अनैतिकता का सामाजीकरण हो चुका है। चूँकि इसके नाम पर खुलेआम जी नहीं सकते इसलिए दिन-रात धर्म के नाम पर पहचान बनाने के लिए उछल-कूद करते रहते हैं। धर्म की भूमिका क्या है? इसका मतलब तो यही है कि अच्छे नागरिक के निर्माण में धर्म की समझ का कोई रोल नहीं है। संविधान और लोकतंत्र की संस्थाओं के प्रति समझ से ही होता है।
आज अमर उजाला में ख़बर छपी है कि ग़ाज़ियाबाद में ऐसे 4900 लोगों ने राशन कार्ड लौटा दिए हैं, जिनके पास एयरकंडिशनर हैं। ख़बरों में यह साफ़ नहीं है कि इन लोगों ने अनाज लिया था या केवल कार्ड ही बना हुआ था। एसी ख़रीद रहे हैं, अनाज नहीं ख़रीद सकते। केवल इस एक ज़िले से सात हज़ार कार्ड लौटाए गए हैं। इसे अगर वोट में गिन लें तो पता चलेगा कि यूपी के चुनाव में राशन कार्ड के ज़रिए क्या खेल हुए है। बिहार के चुनाव में किस तरह का खेल रचा गया था।
अब वही अमर उजाला लिख रहा है कि ग़ाज़ियाबाद में तीन लाख परिवारों को दो महीने से मुफ़्त वाला राशन नहीं मिला है। दो महीने से राशन नहीं मिला है, और कोई हलचल नहीं है? अख़बारों में विज्ञापन तो छपवाया गया था कि नमक और तेल भी मुफ़्त मिलेगा लेकिन अख़बार लिखता है कि दो महीने से नहीं दिया गया है। जितने लोगों के पास कार्ड हैं, उनमें से आधे से ज़्यादा लोगों को राशन नहीं मिला है। चुनाव के पहले तो ऐसी परेशान नहीं थी।