यह रमज़ान कहीं वो रमज़ान तो नही!

आस मोहम्मद क़ैफ़

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

उस दिन 2 अप्रैल थी और रमज़ान की आमद का ऐलान हो चुका था। मुस्लिम समाज इस रमज़ान का शिद्दत से इंतजार कर रहा था। पिछले 2 साल ना तराबीह हो पाई थी और न् ईद की नमाज़,बहुत सारी जिंदगी कोरोना ने छीन ली थी। रमज़ान और ईद दोनों वो नही थे जो वो होते थे। इसलिए इस बार भारी उत्साह था। रमज़ान के पहले दिन (इसे चाँदरात भी कहते हैं ) बहुत चहल पहल थी। जो बहुएं अपने मायके चली गई थी वो वापस लौट रही थी। जो कारोबारी अपने घर से दूर थे वो वापस लौट रहे थे। बाजारों में जबरदस्त रौनक थी।

मुस्लिम समुदाय में एक दूसरे को खुशदिली से मुबारकबाद का संदेश दिया जा रहा था। एक और बात थी कि इसी दिन से नवरात्र भी शुरू हो रहे थे। इसमें हिंदू समाज 9 दिन तक व्रत रखता है। कुछ सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों ने इसे बहुत सकारात्मक लिया और आपस मे बधाई संदेश साझा करते हुए लिखा कि राजनीति भले ही हिन्दू और मुसलमानों को अलग करने की कोशिश करें मगर ईश्वर उन्हें एक ही रखना चाहता है इसलिए मुसलमानों और हिंदुओं की सबसे पवित्र व्रत श्रृंखला एक साथ शुरू हो रही है। बड़ा अच्छा लग रहा था।

अब उम्मीदें पलट जानी थी। इस दिन उत्तर प्रदेश के एक मुस्लिम बहुल क़स्बे में रामनवमी की शोभायात्रा निकाली जा रही थी। जैसे ही यह शोभायात्रा क़स्बे की जामा मस्जिद के सामने पहुंची तो डीजे की आवाज़ तेज़ कर दी गई और चर्चित गाने बजाए जाने लगे। रमज़ान की पहली शब होने के कारण बच्चें मस्जिद में जुट गए थे। मग़रिब की नमाज़ हो चुकी थी। तराबीह की तैयारी में लोग जुटे थे। मस्जिद में कम लोग थे। लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, शोभायात्रा आगे बढ़ गई।

अगले दिन कुछ उन्मादी लड़कों ने इसी शोभायात्रा के दौरान जामा मस्जिद पर भगवा झंडा लहराते हुए भड़काऊ सा गाना लगा दिया। इसे युवाओं की सोशल मीडिया कही जाने वाली इंस्टाग्राम पर अपलोड कर दिया गया। मुस्लिम समाज के युवाओं में इसे देखकर आक्रोश पैदा हो गया। दोनों पक्षों के युवाओं ने एक दूसरे को धमकाना शुरू दिया। जिस क़स्बे में कभी कोई साम्प्रदायिक झगड़ा नही हुआ वो बारूद के ढेर पर आ गया। पुलिस ने तेजी दिखाई औऱ एक ही पक्ष के 7 युवकों को लॉकअप में बंद कर दिया। इस दिन रमज़ान का पहला जुमा था। सैकड़ो लोगों का थाने पर जमावड़ा लग गया और तमाम सम्मानित लोगों के दखल के बाद इन्ही लड़कों के माफ़ी मांगने के बाद उन्हें छोड़ा गया। जिसने वीडियो डाली थी उसके और हिंदू संगठनों के सामने पुलिस बेबस दिखाई दी।

मगर देशभर में  सभी जगह कस्बे इतने सौहार्दपूर्ण नही रहे जिनके विवाद का निपटारा सिर्फ थाने में माफी मांगने से हो जाये। रामनवमी के इस पहली शोभायात्रा के बाद राजस्थान के करौली में दंगा हो गया। मध्यप्रदेश के खरगौन में आग लग गई। पश्चिमी बंगाल में तबाही हो गई और गुजरात जल गया। बिहार में दंगा हुआ। पैटर्न सबका एक जैसा था और यह सभी घटनाएं 2 अप्रैल के दौरान प्रारंभिक शोभायात्रा में हुई। पैटर्न यह रहा कि शोभायात्रा मुस्लिम बहुल इलाके से गुजरी और वहां मस्जिद के सामने आकर डीजे पर बवाल काटा गया। बेहद आपत्तिजनक नारे लगाए गए। मुसलमानों को सीधे धमकी दी गई। मस्जिद पर भगवा झंडा लगाने की कोशिश हुई,कुछ जगह लगाने पर विवाद हुआ और फिर दंगा हो गया।

शोभायात्रा में शामिल भीड़ तलवारें,फरसे आदि लिए हुई थी। मुस्लिम बहुल इलाकों में संघर्ष के दौरान पथराव हुआ। जहां भी शोभायात्रा के दौरान दंगा हुआ वहां सबसे ज्यादा माली और जान का नुकसान मुसलमानों का ही हुआ, जैसे करौली 80 में 73 दुकानें मुसलमानों की ही जला दी गई। खरगौन और गुजरात मे 3 मुस्लिम युवकों की मौत भी हुई। खरगौन में मध्यप्रदेश सरकार ने एक ही समुदाय को चिन्हित करते हुए उनके घर पर बुलडोजर भेज कर तबाह करवा दिए। मध्यप्रदेश सरकार की सवेंदनहीनता का अंदाजा आप इससे लगा लीजिये कि उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति वसीम को पत्थरबाज बताते हुए उसकी गुमटी गिरा दी जिसके दोनों हाथ एक हादसे में पहले ही कट चुके थे।

कहानी यहीं खत्म नही हुई ! एक बार फिर 13 अप्रैल को शोभायात्रा निकाली गई। इस बार यह बालाजी जयंती थी,जिसे हनुमान जयंती भी कहा जाता है। उत्तराखंड के मुस्लिम बहुल डाडा जलालपुर गांव में इस दिन शोभायात्रा निकाली गई। जिसकी इसके पहले इस मार्ग से परंपरा नही थी। इस शोभायात्रा में हिन्दू संगठनों से जुड़े युवकों ने गांव की बड़ी मस्जिद के सामने तेज आवाज में डीजे बजाकर नारे लगाना शुरू कर दिया। मस्जिद में तराबीह की नमाज़ हो रही थी। दोनों पक्ष भिड़ गए ,हिंसा हो गई। यह गांव हरिद्वार जनपद के अंतर्गत आता है। हरिद्वार से संतो ने गांव में पहुंचने का ऐलान कर दिया।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने त्वरित एक्शन लेते हुए गांव में बुलडोजर भेज दिए,पुलिस ने एक ही पक्ष के 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। जिनमे मस्जिद का मुतवल्ली का भी नाम था। इसी दिन दिल्ली की जहांगीरपुरी में भी यहीं हुआ। बिना अनुमति के हनुमान जयंती मुस्लिम बहुल इलाके में निकाली गई। मस्जिद के सामने आकर डीजे बजाया गया और आपत्तिजनक नारे लगाए गए। मस्जिद में घुसने का प्रयास हुआ और उसके बाद हिंसा हो गई। गिरफ्तारी यहां भी एकपक्ष से हुई और उन्ही के घर बुलडोजर ने ध्वस्त कर दिए। 

जिस दिन पहली बार शोभायात्रा के दौरान पर हिंसा की वारदात हुई थी उस दिन रमज़ान का महीना शुरू हुआ था और जब इन पंक्तियों को लिखा जा रहा है तब तक 18 रोज़े हो चुके हैं। हर दिन तनाव में गुजरते इस रमज़ान में आज का दिन बहुत भारी गुजरा है। दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद आज दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में गरीब मुसलमानों के सपनों को बुलडोजर की ताकत के नीचे रौंद दिया गया है। बरकतों वाले महीना रमज़ान का यह इम्तिहान सख़्त हो रहा है। नम आंखों के बीच इस कार्रवाई को एकतरफ़ा माना जा है और सरकार की तानाशाही की आलोचना हो रही है। मगर इस सबके बीच जिस एक बात ने सबसे ज्यादा तकलीफ दी है वो यह है कि एक समूह ने इस पर भी जश्न मनाया है ! मुस्कुराते हुए तस्वीरें दी है। खिल्ली उड़ाते हुए मुंह चिढ़ाया है। गरीबों का उजड़ता आशियाना उन्हें आनंद दे रहा है।

हक़ीक़त यह घटनाएं दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और बिहार, बंगाल में हुई तो जरूर है मगर इनका असर हर एक मुस्लिम परिवार दिखाई पड़ रहा है। जिस ईद का उन्हें शिद्दत से इंतजार था उस ईद का मज़ा बिगड़ गया है। जिस खुशी को सालों से तलाश रहे थे उसमे तनाव आ गया है। मुसलमानों में भविष्य की चिंता गहरी हो गई है। इन घटनाओं का जो पैटर्न है वो बुरी तरह से हतोउत्साहित करने वाला है। मस्जिदों पर डीजे बजाकर नारेबाजी करना और फिर भगवा झंडा लहराने की कोशिश करना,विरोध करने पर एकतरफ़ा कार्रवाई झेलना काफी तकलीफदेह लग रहा है। मुसलमानो के उदास चेहरे इसकी कहानी कह रहे हैं। यह रमजान वो रमज़ान नही लग रहा है जिसकी कल्पना 18 दिन पहले की गई थी! मुसलमानों को लगता है कि उनको प्रताड़ित किया जा रहा है और इसमें भी सबसे खराब यह लगता है कि बहुसंख्यक आबादी इससे खुश है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एंव टू सर्किल नेट के संपादक हैं)