जान अब्दुल्लाह
नई दिल्लीः देश की राजधानी मुस्तफाबाद की रहने वाली तीन मुस्लिम महिलाएं न केवल मुस्लिम समुदाय बल्कि पूरे समाज के लिए नजीर बनी हुई हैं। ऐसा कहा जाता है कि हिजाब पहनने वाली महिलाएं इस तरह से सड़कों पर जल्दी से सामाजिक कार्यों में भाग नहीं लेती हैं, वो भी उस वक्त में जब कोरोना के हाहाकार की वजह से लोग अपने घरों में कैद हैं।
वहीं तीन महिलाएं इमराना सैफी, शमां परवीन, नसरीन मैदान में उतरकर कोरोना से जंग लड़ रही हैं। तीनों ही रोजेदार हैं। इमराना सैफी ने बताया कि कोरोना से दिल्ली की स्थिति बहुत ही खराब हो चुकी है, सरकार व प्रशासन अपनी ओर से सभी तरह के प्रयास कर रहे हैं।
एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उनका फर्ज था कि वह इस मुश्किल वक्त में भी दिल्ली वालों के लिए कुछ करें। वह आरडब्ल्यूए फेडरेशन ऑफ दिल्ली के साथ जुड़ी। उन्होंने कहा कि वह रोजा रखकर शमां और नसरीन के साथ सैनिटाइजेशन किट कमर पर टांग कर मुस्तफाबाद की गलियों में जा जाकर अपने हाथों से सैनिटाइज करती हैं।
इसके बाद घर पर आकर इफ्तारी की तैयारी में जुट जाती हैं। शमां परवीन ने कहा कि पर्दे में रहकर भी एक महिला सारे में काम कर सकती है, रोजे की हालत में जब वह सैनिटाइज करती हैं तो पैदल चल चलकर हालत खराब हो जाती है। लेकिन वह हौसला नहीं हारती।
बता दें कि मार्च आखिरी सप्ताह में दिल्ली स्थिती तब्लीग़ी जमात के मरकज़ में मौजूद जमातियों के बहाने जमात के नाम पर ऐसा प्रोपेगेंडा चलाया गया जिसमें कोरोना का ज़िम्मेदार जमातियों को ठहराया गया। मीडिया के इस शोर में वे आवाज़ों और चेहरे पर्दे के पीछे छिपा दिये गए, जो अपनी जान मुश्किल में डालकर समाज के कल्याण में लगे हैं।