मोहम्मद असग़र
बॉम्बे हाईकोर्ट : सरकार ने जमातियों को बलि का बकरा बनाया। टीवी और प्रिंट मीडिया ने प्रोपेगेंडा चलाकर उन्हें बदनाम किया और संक्रमण फैलने का ज़िम्मेदार बताया। उस पर पश्चाचाताप करने और क्षतिपूर्ति के लिए पॉजिटिव कदम उठाए जाने की जरूरत है।
जब से ये फैसला सुना है, मन कर रहा है एक एक बंदे की वॉल खंगाल कर पोस्ट लिखूं। और उन्हें आईना दिखाया जाए। देखो कैसे प्रोपेगेंडा चलाया, या तुम शिकार हुए। अब तो कोर्ट का सम्मान करते हुए, अफसोस जताओ। उस चीज को सही करो जो तुमने गलत फैलाई। मुसलमानों को दोषी ठहराया। नफ़रत फैलाकर लोगों को बांटने की कोशिश की। तुम गलत थे लिखो अब अपनी वॉल पर। क्यों इतना सन्नाटा है। क्यों कोई अब जमातियों के बारे में नहीं लिख रहा?
कितनी लोग थे, जो अपनी पोस्ट में फर्जी खबरों को शेयर कर रहे थे। पता नहीं कहां कहां के वीडियो शेयर कर रहे थे कि जमाती ऐसा कर रहे हैं, वैसा कर रहे हैं। सूत्रों के हवाले से खबरें चलाई जा रही थीं कि बिरयानी मांग रहे हैं। हद तो ये सूत्रों के हवाले से खबरें चलाईं नर्सों से छेड़छाड़ कर रहे हैं। सीसीटीवी फुटेज मांगे तो कहा कि कैमरे खराब पड़े थे। वाह अद्भुत कमाल हो गया ये तो।
एक खबर सुनकर तो मैं बहुत हैरान हो गया था कि कोई इतना झूठ कैसे बोल सकता है, या इतना गंदा कैसे हो सकता है, खबर चलाई गई, “जमाती हाथों में थूककर रेलिंग पर लगा रहे हैैं” शर्मनाक है वो पत्रकार जिसने ये खबर रची। अगर सच था तो की सबूत पेश नहीं किए? अगर मैं कल को किसी के बारे में कुछ कहूं तो क्या वो खबर होगी? क्या पत्रकारिता के एथिक्स भूल गए। या अखबार बांटते थे, बाल काटते थे और पत्रकार बन गए हो? अंडरवर्ल्ड के भी उसूल होते हैं, मगर तुम पत्रकार होकर ईमान का धंधा करने लगे।
कितना हल्ला था कि जमाती अस्पताल में वहीं खुले में शौच कर रहे हैं। मगर कहीं शौच का वीडियो सामने नहीं आया। और हद देखिए कानपुर की डॉक्टर आरती लालचंदानी तो जमातियों को ज़हर का इंजेक्शन देकर मारने की बात कर रही थीं। उन्हें आतंकवादी बता रही थीं। ये सब उसी मीडिया की कवरेज का नतीजा था जो हमारी टीवी और प्रिंट मीडिया नफ़रत परोस रही थी। तभी तो एक डॉक्टर जो भगवान का रूप होते हैं। वो राक्षस के रूप में वीडियो में नज़र आईं। ये खबरों का असर था, जो रात दिन परोसी जा रही थीं।
जब डॉक्टर आरती का वीडियो वायरल हुआ तो बात से पलट गईं और मुसलमानों को अपना भाई बताने लगीं। क्योंकि अपने बयान पर खुलकर अडिग रहतीं तो नौकरी चली जाती। सोचा था मीडिया वाले अपने भाई बन्धु हैं। कुछ भी कह लूं इनके सामने क्या फर्क पड़ता है। और मीडिया वाले भी उनकी बात में हां में हां मिला रहे थे। मगर कोई एक था जिसने वीडियो बनाया और सबके सामने सच ला दिया।
खैर खुद को घिरता देख इस डॉक्टर ने तो माफी मांग ली थी, जो खूब पोस्ट लिख रहे थे और शेयर कर रहे थे। मुसलमानों को कोरोना बम बता रहे थे, क्या अब उन लोगों के अंदर शर्म बाकी है, वो कोर्ट के फैसले के बाद माफ़ी मांगें। और अपनी अपनी वॉल पर सकारात्मक पोस्ट लिखें। जिसमें बताएं हमसे गलती हुई। हम मीडिया के बहकाए में आ गए। सब प्रेम से मिलकर रहें। बीमारी का अटैक था। जिसको मजहबी रंग दिया गया। हम सब आपस में एक हैं। सब भारतवासी हैं। और भारत आए लोग हमारे मेहमान हैं। हमें उनकी भी इज्ज़त करनी चाहिए। और सद्भाव के साथ रहना चाहिए।
आम आदमी पार्टी पर तो कड़ी आलोचना होनी चाहिए। जो एक कदम आगे बढ़कर अलग से जमातियों के आंकड़े दे रही थी। यानी मज़हब के नाम पर गंदा खेल खेला। मरीजों को बांट दिया। और मैसेज दिया कि इनकी वजह से कोरोना फैल रहा है। शर्मनाक हरकत थी। ईमानदार कहते हैं खुद को। हम भी मानते हैं। तो फिर कम से कम दिल्ली सरकार इस बात पर कोर्ट के फैसले को देखते हुए ही खेद जता दे। बीजेपी से तो क्या ही उम्मीद करें कि वो कुछ करेगी। अगर करे तो सराहनीय क़दम होगा।
(लेखक युवा पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)