नई दिल्ली। अफगानिस्तान में हथियार के बल पर सत्ता में आए तालिबान के विजय को इस्लाम की विजय बताना मुस्लिम युवको को भर्मित करना है, ये पूरी तरह से सत्ता की लड़ाई है, साथ ही तालिबान का सूफी यानी अहले सुन्नत मतावलंबियों से कोई संबंध नहीं है, बल्कि वह देवबंदी विचारधारा से संबंध रखते हैं। भारत के सबसे बड़े मुस्लिम छात्र संगठन मुस्लिम स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया की तरफ से एक वेबीनार में यह बात उभरकर सामने आई।
अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के मुद्दे पर मुस्लिम स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन की तरफ से बुलाए गए इस वेबीनार में मुख्य वक्ता के तौर पर हरिदेव जोशी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के एडजंक्ट फैकल्टी डॉक्टर अखलाक उस्मानी और टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार मोइनुद्दीन अहमद ने अपने विचार व्यक्त किए, जबकि कार्यक्रम का संचालन एम एस ओ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शुजात अली क़ादरी ने किया।
डॉ उस्मानी ने कहा कि भारत में एक बहुत बड़ा भ्रम पाया जा रहा है कि अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा करने वाले तालिबान की विचारधारा अहले सुन्नत है जबकि दक्षिण एशिया मे अहले सुन्नत का अर्थ सूफी या आम भाषा में बरेलवी होता है। तालिबान की मौलिक विचारधारा कट्टर देवबंदियत की है। डॉक्टर उस्मानी ने यह भी स्पष्ट किया कि तालिबान के उभार के बाद सुन्नी दुनिया में लीडरशिप का सपने संजोए तुर्की और सऊदी अरब बहुत गंभीरता से इस डेवलपमेंट को देख रहे हैं, हालांकि उन्होंने यह बात मानने से इनकार किया कि अफगानिस्तान तुर्की की जगह ले सकता है।
उस्मानी ने कहा कि तालिबान के उभार के बाद मध्य और दक्षिण एशिया की शांति को खतरा जरूर पैदा होता है और यह खतरा सिर्फ भारत में कश्मीर घाटी में ही नहीं चीन के शिनजियांग, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान और खुद पाकिस्तान को भी है। उन्होंने कहाकि पाकिस्तान को ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने अफगानिस्तान की सत्ता में आए तालिबान की वजह से पाकिस्तान की खुशी को अस्थाई बताते हुए कहा कि कभी भी बंदूक के सहारे हासिल की गई सत्ता हमेशा नुकसान देह नतीजे ही देती है।
मोइनुद्दीन अहमद ने कहा कि तालिबान को उनके इतिहास के झरोखे से देखने की आवश्यकता है। साल 2001 के बाद तालिबान की सरकार में अपनी ही जनता पर जिस प्रकार के अत्याचार किए हैं उन्हें भुलाया नहीं जा सकता। कई देशों में आज आधुनिक इस्लामी शासन राज कर रहा है परंतु अगर उससे तालिबान के शासन करने के तरीके की तुलना की जाए तो तालिबान को स्वीकार नहीं किया जाएगा। अहमद ने कहाकि तालिबान का अर्थ यूँ तो विद्यार्थी होता है लेकिन आवश्यक नहीं है कि तालिबान यानी विद्यार्थी के नाम पर सत्ता में आए लोग किसी भी तरह पूरे पढ़े लिखे हैं। उन्होंने कहा कि तालिबान हनफी विचारधारा के हैं लेकिन एक विरोधाभास दूर करने की आवश्यकता है कि तालिबान के नेता देवबंद में नहीं बल्कि देवबंद विचारधारा वाले पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी मदरसों में पढे हुए हैं।
कार्यक्रम के संचालक डॉक्टर शुजात अली कादरी ने पाकिस्तान की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि तालिबान के उभार से अनंतिम रुप से पाकिस्तान को भी नुकसान होगा। इस दौरान फेसबुक लाइव के जरिए कई श्रोताओं ने अपने प्रश्न पूछे, जिसका दोनों पैनलिस्ट और एमएसओ अध्यक्ष डॉक्टर क़ादरी ने उत्तर दिए।