नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पैगंबर के अपमान को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी राज्य सरकारों को निर्देश जारी किया है कि वह इस सम्बंध (तहसीन पूनावाला मामले) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार अपनी कार्रवाई से सम्बंधित रिपोर्ट तीन सप्ताह के भीतर दाखिल करें।
सुप्रीम कोर्ट ने जीमयत उलेमा-ए-हिंद एवं अन्य याचिकाकर्ताओं को भी आदेश दिया कि वह पैगंबर और घृणा फैलाने की घटनाओं को प्रदर्शित करने वाला एक एक संपूर्ण तालिका चार्ट तैयार करें और एक सप्ताह के भीतर राज्य के अधिकारियों को प्रदान करें जो इसके जवाब में यह बताएंगे कि इन घटनाओं के सम्बंध में क्या कार्रवाई की गई है। इसके बाद एक सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर दाखिल किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए छह सप्ताह के बाद का समय निर्धारित किया है।
यह मामला न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति एएस ओका की खण्डपीठ के समक्ष विचाराधीन था, जहां जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी की ओर से वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा और अधिवक्ता एमआर शमशाद पेश हुए। वकीलों ने जोरदार ढंग से जमीयत उलेमा-ए-हिंद की इस चिंता को अदालत के सामने रखा कि मुसलमान, पूरी दुनिया के सबसे महान पैगंबर मोहम्मद साहब के अपमान से बहुत दुख और कष्ट में हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सितंबर 2021 में त्रिपुरा में सामूहिक रूप से इस्लाम के पैगंबर का अपमान किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और उस समय यह अपील की थी कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी नहीं किया, तो देश में ऐसी घटनाओं की पुनरावृति होगी, जो काफी दर्दनाक और कठिन परिस्थितियों का कारण बनेंगे। आज देश में जो परिस्थितियां हैं, वह जमीयत उलेमा-ए-हिंद की अग्रिम चेतावनी की अनदेखी का नतीजा हैं और इसके लिए सरकारों का ठण्डा रवैया भी जिम्मेदार है।
एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि पैगंबर के अपमान की घटनाएं देश के संविधान और उसमें निहित धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर भी हमला हैं लेकिन अफसोस की बात यह है कि वर्तमान सरकारों ने इन घटनाओं के सम्बंध में बहुत ही पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाई है और इसके दोषियों के साथ नरमी बरती है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस तथ्य को खुलेआम व्यक्त करती है कि घृणात्मक घटनाएं, विशेष रूप से इस्लाम के पैगंबर के अपमान के कारण देश के बहुलवाद और विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच सह-अस्तित्व के राष्ट्रीय चरित्र के लिए एक गंभीर खतरा हैं, जिसका संरक्षण सभी भारतीयों विशेष रूप से सरकारी मशीनरियों की संवैधानिक जिम्मेदारी है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी की प्रतिक्रिया सुप्रीम कोर्ट के आज के निर्देश पर प्रतिक्रिया देते हुए जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद (सल्ललाहो अलैहि वसल्ल्म) का व्यक्तित्व पूरी दुनिया के इंसानों के लिए दया और करुणा की प्रतिमूर्ति है एवं सम्मानजन है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट से आशा है कि वह इस बेहद संवेदनशील विषय पर जल्द ही निर्देश जारी करेगी। आज यह निराशाजनक पहलू है कि हमारी सरकारें स्वयं जागरूक नहीं होतीं। उनको न्यायलयों के दिशा-निर्देश का इंतजार करना पड़ता है जो किसी भी तरह से देश के विकास, अखंडता और स्वतंत्रता के लिए उपयोगी नहीं है।