CAA विरोधी आंदोलन को कुचलने के लिए लिखी गई अत्याचार की कहानी आज भी हमारे ज़हनों में जिंदा है: नदीम ख़ान

नई दिल्लीः नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिये आवाज़ उठाने वाले संगठन एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) ने 16 फरवरी को दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट एपीसीआर की ओर से आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जारी की गई है। प्रेस कांफ्रेंस की शुरुआत करते हुए सोशल एक्टिविस्ट और एपीसीआर के नेशनल सेक्रेट्री नदीम खान ने कहा कि सीएए के विरोध को कुचलने के लिए लिखी गई अत्याचार की कहानी आज भी हमारे ज़हनों में जिंदा है और हम इन अत्याचारों की जिम्मेदारी तय करने के लिए एक रिपोर्ट लेकर आए हैं।

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नदीम ख़ान ने कहा कि देश आज एक सबसे गंभीर संकट के बीच में है जबकि पिछले दशक में इसके लगभग सभी लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमले हुए हैं और उनकी स्वतंत्रता और कार्येशेली पर विभिन्न सवाल खड़े हुए हैं। न्यायपालिका, मीडिया, चुनाव आयोग, संसदीय लोकतंत्र सभी को दीवार पर धकेला जा रहा है। राज्यों के तमाम तंत्रों की अप्रत्याशित शक्ति से लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है। संकट के इस समय में, हम एक नागरिक और मानवाधिकार वकालत समूह के रूप में भारतीय संविधान और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून में गारंटीकृत नागरिकों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए अपनी जिम्मेदारी महसूस करते हुए एक रिपोर्ट पेश कर रहें हैं जो कि लोकतंत्र, संविधान और मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए समर्पित हैं।

क्या है रिपोर्ट में

“द स्ट्रगल फॉर इक्वल सिटिजनशिप इन उत्तर प्रदेश एंड इट्स कॉस्ट्स: ए गाथा ऑफ ऑम्निबस एफआईआर, लूट, गिरफ्तारी और मुस्लिम अल्पसंख्यक का उत्पीड़न” शीर्षक वाली इस रिपोर्ट, उत्तर प्रदेश में समान नागरिकता के लिए हुए लोकतांत्रिक विरोधों प्रदर्शनों पर बर्बर कार्रवाई के रूप और विस्तार को उजागर करती है। यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा सभी संवैधानिक आदर्शों और मूल्यों को दरकिनार कर शांतिपूर्ण असंतोष व असहमति के दमन के लिए राज्य की सरकारी मशीनरी की मनमानी कार्येशेली पर भी प्रकाश डालती है। राज्य सरकार पर आज तक भी कोई जवाबदेही और जुर्माना तय नहीं हो पाया है। नागरिक विरोध के दो साल के भयानक दमन के बाद, न तो मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने का प्रयास किया गया, या घायलों और जिनकी संपत्ति का नुकसान हुआ उनको किसी मुआवजा स्कीम से लाभान्वित किया गया है। प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस अत्याचारों की निष्पक्ष जांच शुरू करने का कोई महत्वपूर्ण प्रयास भी दिखाई नहीं पड़ता है। जबकि प्रदर्शनकारियों का उत्पीड़न आज परस्पर जारी है।

इस रिपोर्ट को जारी करते हुए एपीसीआर ने बताया कि पब्लिक डोमेन में उपलब्ध सत्यापित जानकारी और कानूनी दस्तावेजों तक पहुंचने के आधार पर हम इस निष्क्रे पर पहुंचे हैं कि, लगभग 5000 नामित व्यक्तियों और 100,000 से अधिक अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ इन विरोध प्रदर्शनों के संबंध में लगभग 350 प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गईं, जो राज्य पुलिस को किसी को भी फंसाने और प्रताड़ित करने का मुफ्त लाइसेंस देती है। इन मामलों में निर्दोष लोगों का अनावश्यक उत्पीड़न बड़ी तादाद में देखने को मिला ही जिसके अनेक प्रमाण हैं।

APCR द्वारा तैयार रिपोर्ट जारी करते सोशल एक्टविस्ट

एपीसीआर ने कहा कि हमारे निष्कर्षों ने यह भी सामने आया है कि लगभग 3,000 लोगों (मुख्य रूप से मुस्लिम) को निराधार आरोपों के तहत कानून की किसी भी उचित प्रक्रिया पालन न करते हुए  अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया था जिसमें से कई सीएए विरोधी प्रदर्शन शुरू होने के दो साल से अधिक समय के बाद भी अभी तक जेलों में बंद हैं। वर्ष 2019 में 19 दिसंबर को सीएए और एनआरसी के खिलाफ अखिल भारतीय विरोध प्रदर्शन के पहले आह्वान पर, राज्य प्रशासन ने विरोध करने के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करने से रोकने के लिए लगभग 3000 लोगों को ‘सावधानी’ नोटिस के साथ धमकाया था। उसी दिन लगभग 3305 लोगों को हिरासत में लिया गया जो दो दिनों के भीतर बढ़कर 5400 हो गए थे और कई लोगों को बाद में उसी प्राथमिकी में फंसाया गया जैसा कि ऊपर बताया गया है। सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के लिए 500 से अधिक वसूली नोटिस, बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के, दस जिलों में अनुमानित 3.55 करोड़ रुपये के नुकसान के लिए मनमाने ढंग से जारी किए गए, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अवैध और असंवैधानिक करार दिया है। कुछ लोग इन गैरकानूनी जुर्मानाों का भुगतान भी कर चुके हैं जैसे अकेले कानपुर जिले में, लगभग 15 परिवारों, ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर, कानूनी प्रक्रिया से अनभिज्ञ होने के कारण प्रत्येक परिवार 13,476 रुपये का भुगतान भी कर चुका है।

अपना डाटा जारी करे सरकार

एपीसीआर ने कहा कि हम राज्य सरकार पर तत्काल पब्लिक डोमेन में आधिकारिक डेटा जारी करने के लिए दबाव बनाना चाहते हैं, जिसमें एफआईआर दर्ज की गई, गिरफ्तार किए गए, हिरासत में लिए गए, आरोपी, जमानत पर, कड़े आतंकवाद विरोधी कानूनों और अन्य कठोर कानूनों के तहत सीएए विरोधी के संबंध में दर्ज किया गया है। विरोध प्रदर्शन और उनका विवरण भी वसूली नोटिस भेजा गया था, संपत्तियों को कुर्क किया गया था और यदि कोई हो तो नीलाम किया गया था। सरकार को इन सभी मामलों की स्थिति पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी करनी चाहिए। 1,00,000 से अधिक शांतिपूर्ण सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सभी मनगढ़ंत मामले राज्य सरकार द्वारा तुरंत और बिना शर्त वापस लिए जाने चाहिए।

अदालत की निगरानी में हो जांच

एपीसीआर ने कहा कि हम एक त्वरित, निष्पक्ष और पारदर्शी अदालत की निगरानी में राज्य के दमन की जांच की मांग करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अतिरिक्त न्यायिक हत्याएं, यातनाएं और कई अन्य प्रकार की राज्य हिंसा हुई है। सरकारी अधिकारियों और अन्य व्यक्तियों को ज्यादतियों में लिप्त पाए जाएं उन पर कानून के अनुसार उनके कार्यों के लिए जवाबदेही और सज़ा तेय होनी चाहिए। सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में सत्ताधारी दल के सदस्यों द्वारा हिंसा भड़काने के आरोपों को जांच के दायरे में शामिल किया जाना चाहिए।

संगठन ने कहा कि हम राज्य सरकार से अनुरोध करते हैं कि पुलिस कार्रवाई में मारे गए लोगों और घायलों के परिजनों के लिए एक व्यापक मुआवजा पैकेज का प्रावधान दिया जाए, जिसमें वे लोग भी शामिल हैं जो अनुचित पुलिस कार्रवाई के कारण अस्थायी या स्थायी रूप से विकलांग हो गए हैं।

एपीसीआर ने कहा कि हमारा मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर नागरिकों, सांसदों, कानूनी विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं के साथ गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, (यूएपीए), अफस्पा, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA), देशद्रोह जैसे कठोर, असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कानूनों को निरस्त करने की दिशा में एक तत्काल बातचीत शुरू करने का उच्च समय है। देश में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलने के लिए घोर (गलत) इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें कुख्यात उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धार्मिक धर्मांतरण निषेध अध्यादेश, 2020 भी शामिल है, जो धार्मिक परिवर्तन के नाम पर युवाओं को जेलों में कैद करने का एक आसान उपकरण बन गया है। ये सभी मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाएं  कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों के खिलाफ जाता है जबकि भारत इनमे एक पार्टी है।

सीएए पर पुनर्विचार करे सरकार

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) ने केंद्र सरकार से मांग करते हुए कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है, इस पर सरकार को पुनर्विचार करने करना चाहिए। एपीसीआर ने कहा कि इस कानून के गंभीर नुकसान को ध्यान में रखते हुए और इसके लागू होने से पहले ही नागरिकों और हमारे राष्ट्र की प्रतिष्ठा के नुकसान पहुंचा है वो चिंताजनक है। सीएए विरोधी असंतुष्ट देश के समान और वास्तविक नागरिक हैं, हम दृढ़ता से मानते हैं कि लोगों की सरकार को लोगों के जनादेश का सम्मान करना चाहिए और इस अनुचित और असंवैधानिक कानून को निरस्त करना चाहिए। हमें ऐसे कानूनों की आवश्यकता है जो मानवाधिकारों का सम्मान करें, विविधता का जश्न मनाएं और सभी के अधिकारों के शांतिपूर्ण अभ्यास के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करते हुए एकता को बढ़ावा दें जो हमारे देश को प्रगति और समृद्धि के मार्ग की ओर ले जाए।

एपीसीआर ने कहा कि इस कानून को निरस्त करने का बोझ अकेले सरकार पर नहीं है, माननीय सर्वोच्च न्यायालय को हमारी (एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) सहित सैकड़ों याचिकाओं पर भी ध्यान देना चाहिए, जो नागरिकता अधिनियम के कई प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती हैं और राष्ट्रव्यापी एनआरसी अभ्यास पर प्रतिबंध के लिए प्रार्थना करती है। सुप्रीम कोर्ट को इन याचिकाओं पर तेजी से सुनवाई करनी चाहिए और मामले को जल्द से जल्द निपटाना चाहिए।

क्या बोला रिहाई मंच

एपीसीआर द्वारा आयोजित प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए रिहाई मंच से जुड़े मुहम्मद शोएब ने लखनऊ में सीएए आंदोलन के समय और समाजसेवियों की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है और उत्तर प्रदेश की जनता ने दो साल बाद भी अत्याचार कर रही है जिसकी कोई रोक थम नहीं है।

जानबूझकर छुपाया गया डेटा

जामिया की छात्रा सफूरा जरगर ने प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट को तैयार करने में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जो डेटा पब्लिक डोमेन में होना चाहिए उसे जानबूझकर छुपाया गया है और पुलिस कारवाइयों की मार झेल चुके परिवारों के मन में अभी भी डर का माहौल है जिस के कारण वे खुलकर अपने विचार व्यक्त करने में असहज हैं। हमें उम्मीद है कि यह रिपोर्ट सच्चाई को उजागर और न्याय की उम्मीद को जिंदा करेगी।

सफूरा जरगर छात्र एंव एक्टिविस्ट

एपीसीआर की ओर से आयोजित इस प्रेस कांफ्रेंस में प्रमुख वकील, पत्रकार और कार्यकर्ता उपस्थित थे जिन्होंने मीडिया को संबोधित किया और रिपोर्ट पर अपने विचार प्रस्तुत किए। जिनमें मुहम्मद शोएब, अध्यक्ष रिहाई मंच; प्रो. अपूर्वानंद, दिल्ली विश्वविद्यालय; हरतोष सिंह, राजनीतिक संपादक, कारवां पत्रिका ; नदीम खान, राष्ट्रीय सचिव, एपीसीआर ; ऐमन खान, मानवाधिकार शोधकर्ता; सफूरा ज़रगर; मानवाधिकार कार्यकर्ता; नजमिस साकिब, अधिवक्ता, लखनऊ उच्च न्यायालय; आसिफ इकबाल तन्हा, छात्र नेता आदि उपस्थित रहे।