अपनी क़यादत का नारा यानी अपनी ही गर्दन पर कुल्हाड़ी मारना…

मोहम्मद वज़हुल क़मर

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जब हम यह बोलते हैं कि मुसलमानों मुत्तहिद हो जाओ एक हो जाओ , वोट बंटने नहीं चाहिए तो हम यादव, जाटव , जाट, गुर्जर, पासवान, निषाद , राजभर इत्यादि सभी जातियों को भी हिंदू के नाम पर एकजुट होने के लिए उकसा रहे होते हैं और बीजेपी ऐसे ही नारों का फायदा भी उठाती है और जब यह लोग भी एक होकर किसी एक उम्मीदवार को वोट दे देते हैं तो फिर हम विफरने लगते हैं कि यादव ने धोखा दे दिया , पासवान ने वोट नहीं दिया , जाटव ने छूरा भोंक दिया बगैरह बगैरह। इसलिए मुसलमानों के राजनीति ट्रेनिंग की ज़रूरत है।

यह कहना ग़लत नहीं होगा कि जैसे जैसे मुस्लिम समुदाय का संप्रदायिक धुर्वीकरण होगा हिंदू समुदाय भी तेज़ी से संप्रदायिक धुर्वीकरण करते नज़र आएंगे। यह तो धन्यवाद दीजिए जाति और वर्ण व्यवस्था को जिसकी वजह से अभी भी हिंदू समुदाय के पचास फीसदी लोगों का संप्रदायिक धुर्वीकरण नहीं हो पाता है । अगर वह भी वोट देते समय मुसलमानों की तरह जाति वर्ण व्यवस्था भूलकर एकमत हो जाएं तो फिर बीजेपी का वोट प्रतिशत 80 % हो जाएगा। और जिस तरह से मुस्लिम युवा भारतीय राजनीति के पृष्ठभूमि को समझे बगैर उझल कूद मचाए हुए हैं नि:संदेह हिंदू वोटर्स भी विकास, महंगाई, रोज़गार बगैरह की परवाह किए धीरे धीरे पूरी तरह से एकजुट हो जाएंगे और इस तरह बीजेपी अगले 20-30 साल भी नहीं हारेगी। और इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह होगा कि भारतीय मुसलमान धीरे-धीरे बीजेपी के चौखटों पर नतमस्तक करते नज़र आएंगे क्योंकि सत्ता पक्ष से आप ज़्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकते.

जिसके पास सत्ता होती है शक्ति उसी के पास होती है और जीवनशैली में इसकी ज़रूरत पड़ती ही है। इसलिए नेता किसी भी दल का हो ज़रूरत आपको उसके चौखट पर जाने को मजबूर कर ही देती है। अभी तो चंद फिरोज़ बख्त और आरिफ मुहम्मद दिख रहे हैं लेकिन यदि केंद्र और राज्यों में बीजेपी की ही सरकार बनती रही तो आने वाले कल में इसकी भी होड़ लगनी है। क्योंकि जहां सत्ता ओर शक्ति होगा वहां लोग होंगे। लेकिन समझने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि मज़बूरी में दरवाजे पर आए हुए मतदाताओं को नेता कुत्ता बनाकर रखती है। नज़र उठाकर देख लीजिए मिसालें दिख जाएंगी। और देश का मुसलमान जिस तरह अपनी कियादत अपनी कियादत चिल्ला रहे हैं आने वाले कल में सत्ता के गलियारों के कुत्ता बनने वाले हैं।

अभी यूपी में दुबारा बीजेपी की सरकार बनने दीजिए ,जो आज बड़ी बड़ी बात कर रहे हैं वही बीजेपी विधायकों के दरबारी बनते दिखेंगे। क्योंकि मुस्लिम ठेकेदार चाहे सपा को जिताना चाहते हों या बसपा कांग्रेस को उनका मकसद क़ौम की फलाह नहीं बल्कि उसे अपनी बंद दुकान को चालू करना है और जब दुकानें ज़्यादा दिनों तक बंद रहती है तो इंसान लोकेशन चेंज करता है। यही कारण है कि बीजेपी सांसदों के आफिस में आज आपको लंबी लंबी दाढ़ी वाले दिख जाएंगे।

वैसे तो बहुत देर हो चुकी है क्योंकि बहुसंख्यक के ज़हन में मुसलमानों ने एकजुट होने वाला वायरस डाल दिया है फिर भी एक कोशिश तो बनता है। अब मुसलमानों को स्वंय पहले असंप्रदायिक बनकर मिसाल पेश करना होगा। वरना न योगी जी हारेंगे और न ही मोदी जी। और जो अपनी कियादत अपनी कियादत चिल्ला रहे हैं उनसे बस इतना पूछ लीजिए कि बीजेपी जीत क्यूं रही है , जवाब मिल जाएगा।


(लेखक सोशल एक्टिविस्ट एंव राजनीतिक विश्वेषक हैं, ये उनके निजी विचार हैं)