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सत्ताधारी यही चाहते हैं कि मुसलमान दोयम दर्जे के नागरिक बन जाएं!

मुस्लिम मुहल्ल्लों में धार्मिक जुलुस और उसके बाद बवाल की कई घटनाएँ सामने आ रही हैं। हर जगह मस्जिद या मुस्लिम बाहुल्य बस्ती से पथराव होता है और उसके बाद नुक्सान, घायल, जेल जाना, घर तोडना और नुक्सान मुसलमान पक्ष का ही होता हैं, दिल्ली में जहांगीरपुरी की बेहद गरीब और मजदूरों की बस्ती में हुए उपद्रव पर यह बात मीडिया से गायब हो गई की मस्जिद के भीतर भगवा झंडे और पत्थर आये कैसे? उस इलाके से दिन में एक बजे के बाद तीसरी बार जुलुस निकला और फिर उपद्रव हुआ।

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जानते हैं आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? असल में मुसलमान का थोक वोट तो सभी को चाहिए लेकिन  जब उस पर पुलिस का लट्ठ बज रहा है तो कोई बड़ा नेता सामने नहीं आता,  उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों के बाद भी यही हुआ  था. इस तरह आम गरीब मुसलमान, जो कई बार निर्दोष या उसने जो अपराध किया है, उससे बड़े मुक़दमे में फंसता है या मारा पीटा  जाता है. तो अनजाने में वह रेडिकल लोगों के चंगुल में ही फंसता है.

कल दिल्ली पुलिस ने जिस असलम को पकड़ा, उसके घर में औरतों और बच्चों की निर्मम पिटाई की गई, सारा सामान तोड़ा गया। सबसे बड़ी बात वह असलम नाबालिग है, उसकी उम्र रिकार्ड के अनुसार 16 साल है और उसे आम अदालत में पेश कर  रिमांड लिया गया, असलम के दोनों हाथ नुचे हुए हैं। असलम दंगईयों की भीड़ में शामिल था तो उस पर क़ानूनी कार्यवाही होना ही चाहिए और कड़ी कार्यवाही होना चाहिए लेकिन हमारी न्याय प्रणाली के अनुसार।

दिल्ली में इन सभी झुग्गी वालों ने जिस केजरीवाल को वोट दिया, उनका कोई नेतृत्व आज मैदान पर नहीं हैं। दोषी की गिरफ्तारी, निर्दोष को बचाना। यह सब  स्थानीय नेतृत्व की ज़िम्मेदारी से हो तो तनाव, उपद्रव से बचा जा सकता है, जन प्रतिनिदी या राजनैतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी यह भी होती है। जब जहांगीरपुरी में शांति व्यवस्था एक लिए समाज के जिम्मेदार लोगों की मौजूदगी चाहिए थी, तब केजरीवाल और उनकी टीम सरकारी पैसे से दिल्ली में सुन्दरकाण्ड करवा रहे थे.

आज हर एक राजनितिक दल इस बात से डर रहा है की इस तरह के विग्रह में खड़ा होगा तो उस पर मुस्लिम परस्त होने का तमगा लगेगा और हिन्दू वोट मिलेंगे नहीं. और इसी चक्कर में बगैर आस के बैठा मुसलमान कानून से भड़क रहा है, सत्ताधारी यही चाहते हैं, उन्हें अलग थलग करना, कटघरे में खड़ा करना और इस हालत में ले आना कि वे दोयम नागरिक हो जाएँ, कहने की जरूरत नहीं टीवी मीडिया इस कुकर्म ने सहयात्री है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)