नई दिल्लीः केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसान यूनियन से सवाल किया था, कि कृषि क़ानूनों में काला क्या है। अब उन्हें पूर्व आईपीएस विजय शंकर ने जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि यह तीनों कानून जितना मैंने पढ़ा है उसके अनुसार, इन नए कृषि कानूनों मे ‘काला’, सरकार की नीयत में है। नीयत ही काली है। विजय शंकर सिंह ने क़ानूनों के बारे में बताते हुए कहा कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में विवाद होने पर, सिविल कोर्ट में वाद दायर करने के न्यायिक अधिकार से किसानों को वंचित रखना, कानून में काला है।
- No civil court shall have jurisdiction to entertain any suit or proceedings in respect of any matter, the cognizance of which can be taken and disposed of by any authority empowered by or under this Act or the rules made thereunder. किसान न्यायालय जा ही नहीं सकता, इस संबंध में किसी विवाद होने पर। निजी क्षेत्र की मंडी को टैक्स के दायरे से बाहर रखना, कानून में काला है। सरकार खुद तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीदे और निजी मंडियों को, अपनी मनमर्जी से खरीदने की अंकुश विहीन छूट दे दे, यह कानून में काला है।
पूर्व आईपीएस ने आगे बताया कि निजी बाजार या कॉरपोरेट को उपज की मनचाही कीमत तय करने की अनियंत्रित छूट देना, कानून में काला है। किसी को भी जिसके पास पैन कार्ड हो उसे किसानों से फसल खरीदने की छूट देना और उसे ऐसा करने के लिये किसी कानून में न बांधना, कानून में काला है। किसी भी व्यक्ति, कम्पनी, कॉरपोरेट को, असीमित मात्रा मे, असीमित समय तक के लिये जमाखोरी कर के बाजार में मूल्यों की बाजीगरी करने की खुली छूट देना, यह कानून में काला है। जमाखोरी के अपराध को वैध बनाना, कानून में काला है।
उन्होंने आगे बताया कि जब 5 जून को पूरे देश मे लॉक डाउन लगा था, और तब आपात परिस्थितियों के लिये प्राविधित, संवैधानिक प्राविधान, अध्यादेश का दुरुपयोग कर के यह तीनों कानून, बना देना, यह सरकार की नीयत के कालापन को बताता है औऱ यह कानून में काला है। 20 सितंबर 2020 को राज्यसभा में हंगामे के बीच कानून को, मतविभाजन की मांग के बावजूद, उपसभापति द्वारा, केवल ध्वनिमत से पास करा देना, यह कानून में काला है। कानून का विधिवत परीक्षण हो, इसलिए इसे नियमानुसार स्टैंडिंग कमेटी को भेजा जाना चाहिए था। पर ऐसा जानबूझकर न करना, कानून में काला है।
विजय शंकर सिंह ने बताया कि इस कानून के ड्राफ्ट से लेकर इसे लाने की नीयत के पीछे किसानों का हित कहीं है ही नहीं। हित उनका है जो रातोरात महामारी आपदा में अवसर तलाशते हुए बड़े बड़े सायलो बना कर पूरी कृषि व्यवस्था को अपने कॉरपोरेट में हड़प जाने की नीयत रखते हैं। यह कानून में काला है। यह सूची अभी और लंबी हो सकती है। जो मित्र इस कानूनो को समझ रहे हैं वे इन कानूनो में व्याप्त खामियों को कमेंट बॉक्स में लिख दें। जो मित्र क़ानून की खूबियां बताना चाहें तो उनका भी स्वागत है। उन्होंने कहा कि कृषिमंत्री और उनके सहयोगी फिर 11 बार बात किस विंदु पर करते रहे जबकि अभी तक उन्हें यही पता नही लग पाया कि कानून में खामियां क्या क्या हैं? साथ ही वे किन संशोधनो और पूरे कृषि कानून को ही होल्ड पर रखने के लिये राजी हो गए?