नई दिल्लीः लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन (एलडीएआर) 2021 का मसौदा कोविड -19 महामारी के कठिन समय में जारी किया गया है, जो देश के सबसे कमजोर द्वीपसमूह लक्षद्वीप के स्थानीय लोगों के अधिकारों के हनन के इरादे का संकेत देता है।
यह विनियमन केंद्र शासित लक्षद्वीप के प्रशासक और केंद्र सरकार की शक्तियां बढ़ा रहा है। मसौदे में अपनी संपत्ति रखने और बनाए रखने के अधिकार में सीधे हस्तक्षेप करने के लिए सरकार और उसके सभी निकायों को मनमानी करने की छूट दी गई है। प्रशासक को अनियंत्रित शक्तियां देकर लक्षद्वीप में मौजूद आमजन की भूमि पर सरकार के स्वामित्व और सरकारी उपयोग की धमकी दी गई है।
मसौदे की धारा 29 सरकार को “विकास संबंधी” गतिविधियों के लिए किसी भी भूमि को चुनने का अधिकार देती है। इस विनियमन के तहत अधिग्रहीत भूमि के मालिक की अनुमति के बिना ही भूमि का सरकार जैसा उचित समझे वैसा उपयोग किया जा सकता है। इस मसौदे में “सार्वजनिक उपयोग” शब्द का जानबूझकर अस्पष्ट अर्थ बनाकर पेश किया गया है जिससे इसका प्रशासक और अन्य अधिकारियों द्वारा आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है। यदि यह लागू किया जाता है तो प्रस्तावित विनियमन जैव विविधता में बहुत समृद्ध लक्षद्वीप के लिए विनाशकारी होगा। यह भारत के पर्यावरण और प्राकृतिक जैव विविधता की रक्षा के लिए संवैधानिक जनादेश का स्पष्ट विरोधाभास है।
लक्षद्वीप के कुख्यात प्रशासक प्रफुल्ल पटेल की मनमानी का रिकॉर्ड पुराना है। पदभार ग्रहण करने के बाद सब से पहले उन्होंने गुंडा अधिनियम को लक्षद्वीप जैसी जगह लागू किया जहां जेल लगभग खाली हैं। दूसरा, पंचायत अधिसूचना के मसौदे में प्रावधान है कि दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति पंचायत चुनाव में भाग लेने के लिए पात्र नहीं हैं। पशु संरक्षण अधिनियम बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी वाले स्थान पर गोमांस पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करता है। इस तरह के और भी कई सनकी कृत्य और नियम स्थानीय लोगों पर थोपे गए हैं।
हम इस बात से बेहद चिंतित हैं कि वनस्पतियों और जीवों से भरें समृद्ध और एक अनूठी संस्कृति और विरासत वाले इस द्वीप का एक खोखले ‘विकास’ एजेंडे के नाम पर गुलाम बनाया जा रहा है। हमारे संविधान ने स्थानीय लोगों को उनकी भूमि के अधिकारों की सुरक्षा के प्रावधान दिए हैं। यह अधिनियम स्पष्ट रूप से प्रकृति और प्राकृतिक जैव विविधता के सामंजस्य में समावेशिता और विकास की संवैधानिक भावना के साथ विश्वासघात है।
इस संबंध में स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन ऑफ इंडिया (एसआईओ) पुरजोर तरीके से यह मांग करता है कि इस प्रस्तावित निर्दय एलडीएआर 2021 को तुरंत रद्द कर दिया जाए। जैसा कि प्रशासक प्रफुल्ल पटेल स्पष्ट रूप से द्वीप के मामलों को संभालने में अक्षम साबित हुए हैं, उन्हें तुरंत वापस बुला लिया जाना चाहिए।
हम ऐसे कठोर कानूनों और अक्षम प्रशासन के खिलाफ लक्षद्वीप के लोगों के संघर्ष में उनके साथ खड़े हैं। हम देश के नागरिकों से अपील करते हैं कि वे अपने लोगों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील रहें और अपने पर्यावरण का भी ध्यान रखें। हम निश्चित रूप से किसी भी तरह के समझौते और विकास और पर्यटन के खोखले नारों को स्वीकार नहीं करेंगे।