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सुसंस्कृति परिहार का सवाल: अज़ान! अब क्यों सताने लगी आवाज़?

आजकल अजान  की  आवाज़ पर सख्त पहरा है उसे बाकायदा मापा जा रहा है और उसे नियंत्रित किया जा रहा है।पहले पहल  इस आवाज से खलल इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति मोहतरमा को पड़ा था उनकी सुबह-सुबह की नींद भंग होती थी उसे लेकर उन्होंने शिकायत दर्ज कराई जिसके बाद मस्जिद पर लगे माईक का मुंह कुलपति आवास की तरफ से दूसरी तरफ किया गया और आवाज़ का एक मीटर तय हुआ। संपूर्ण नमाज़ में सिर्फ दो मिनिट लगते हैं।जब इसे मंदिरों की घंटियों और भजन की तरह समझने वाले लोग नमाज़ को ईश्वर की इबादत की तरह मानते हैं। उन्हें अज़ां और आरती दोनों प्यारी है। जबकि आरती भजन और घंटे तो लगभग एक घंटे से भी ज्यादा वक्त लेते हैं तब कभी नमाज़ अदा करने वालों ने कभी आपत्ति नहीं उठाई। भाईचारा यूं चलता रहा जब अज़ान हो तब दो मिनिट के लिए शांति रखी जाए।तब से यही सिलसिला चलता रहा।

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दुखकर प्रसंग तब सामने आया जब कि जब पांच वक्त पढ़ी जाने वाली अंजान की तरह हनुमान चालीसा पढ़ने की घोषणाएं हुईं। बड़ी हलचल शुरू हो गई। कोशिशें असफल रही क्योंकि हनुमान चालीसा याद ही नहीं था। फजीहत करवाई गई।इसे राजनैतिक संबल और संरक्षण दिया गया लेकिन यह फ्लाप शो होकर रह गया।इधर उत्तर प्रदेश में मस्जिदों के साथ मंदिरों को भी एक निश्चित मापक 55डेसीबिल पर माईक बजाने की जब कोर्ट ने अनुमति दी तब भक्त खुद ही इसके शिकार हो गए। जबकि आम लोग अज़ान की आवाज़ और मंदिरों से आती भजनों की आवाज़ से उठकर सुकून पाते हैं।।सुबह सुबह ख़ुदा /भगवान की इबादत किसे पसंद ना होगी।

ऊंचे आवाज का शोर निश्चित तौर पर हमारे लिए हानिकारक है।ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ निरंतर लिखा जा रहा है लेकिन शोर घनघोर तरीके से बढ़ता जा रहा है अब तो छोटे छोटे घरु आयोजन से लेकर प्रवचनों और भाषणों की घंटों चीख चिल्लाहट भी बंद होनी चाहिए। विद्यालयों, अस्पतालों और सरकारी दफ्तरों के आसपास होने वाले कार्यक्रमों पर पूरी तरह प्रतिबंध होना चाहिए।शादी विवाह, मेलों का शोर और सभी धर्मों के उत्सवों में गांव से लेकर शहरों में एकरूपता दिखाई देती है।यह भी सभी की नींद में खलल डालता है पड़ौसी के घर से आने वाली आवाज पर भी ये मानदंड अपनाने चाहिए।खुशी के मौके पर पटाखों का शोर शराबा भी इस कसाब का हिस्सा बनना चाहिए।ज्ञातव्य हो ध्वनि प्रदूषण के ख़िलाफ़ पूर्व न्यायाधीश एवं व्यंग्यकार श्रीकांत चौधरी ने अपने लेखन और पत्रों के ज़रिए सतत रूप से आवाज उठाई है ।यदि इन तमाम जगहों पर भी ये पहरा हो तभी मंदिर मस्जिद के प्रतिबंध जायज़ होंगे ।

अगर विद्वेषपूर्ण दृष्टि से सिर्फ मस्जिदों में होने वाली अजान पर ही ध्यान केंद्रित रखते हैं तो इसका अंजाम ठीक नहीं होगा।अभी तो उत्तर प्रदेश में ही देखना है किस तरह इसका परिपालन होता है?इधर सूत्रों से ख़बर मिल रही है कि मध्यप्रदेश में उत्तर प्रदेश का अनुकरण करते हुए मामा ने बुलडोजर के बाद अब रमजान के आखिरी मौके पर राजधानी भोपाल की जामा मस्जिद पर अज़ान की माप कर कार्रवाई करते हैं तो यह घृणास्पद काम होगा।वैसे भी यहां अंतिम नमाज़ सड़क पर अदा हुई तथा समीपवर्ती लोगों को शोर शराबे पर आपत्ति के लिए उकसाया जा रहा है।जिसका लोगों ने विरोध कर उम्दा मिसाल दी है।

इन तमाम घटनाओं को देखकर यह लगता है कि अज़ान , हनुमान चालीसा तथा आरती में यकीन रखने वालों को अलग-थलग करने की सरकार की मंशा को आम लोग किस तरह लेते हैं।यह भी अब साफ होने लगा है कि अयोध्या ही नहीं बल्कि हर उस जगह जहां हमारा सदियों पुराना भाईचारा आहत करने की कोशिश हुई उसकी वजह सिर्फ भाजपा के सिरफिरे ऐसे लोग हैं जो जालीदार टोपी और बुर्के धारण कर फिज़ा बिगाड़ने में लगे हैं। अवाम आज भी देश के तमाम धर्मों में  विश्वास रखती है तथा सभी को एक ईश्वर के रूप में देखती है। इसलिए अज़ान की आवाज़ उन्हें नहीं बल्कि उन चंद लोगों को अचानक सताने लगी है जो साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का काम आज़ादी से पहले से कर रही हैं।