नई दिल्लीः किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि मेरा सलाहकार तो इस देश का किसान और मजदूर है। राकेश टिकैत ने इस बाबत सोशल मीडिया पर लिखा कि मुझे लोग सलाह दे रहे हैं कि मैं सलाहकार बदलूं, (ताकि वो मेरे सलाहकार बन सकें) लेकिन मैं उन्हें सलाह देना चाहता हूं कि मेरे सलाहकार मेरे किसान और मजदूर हैं। सिर्फ उन्हें हक है कि वो मुझे बदल सकते हैं लेकिन मैं उन्हें नहीं बदल सकता। इसलिए मुझे ऐसे सलाहकारों की सलाहियत पर शक और शुबहा होना लाजमी है।
राकेश टिकैत ने कहा कि बंगलुरू में मेरे ऊपर फेंकी की गई स्याही इस सरकार के स्याह इरादों को नुमाया करती है। आलोचना करने वाले तो प्रधानमंत्री मोदी के अचानक रुककर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मिलने को लेकर भी आलोचना करते हैं। लेकिन उससे भारत के प्रधानमंत्री को देशद्रोही नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने कहा कि इसी तरह किसी के कहीं भी जाने को लेकर उसकी देशभक्ति पर सवाल नहीं खड़े किए जा सकते।
किसान नेता ने कहा कि यह सही है कि मैं सामान्य बुद्धि का सामान्य किसान हूं और उसी सामान्य किसान के साथ गलत सरकारी नीतियों के कारण अभी भी रसातल में खड़ा हूं इसलिए मुझे उठने और गिरने की चिंता नहीं है। राकेश टिकैत ने कहा कि इतिहास गवाह है कि जिन लोगों ने अंग्रेजों से माफी मांगी और उनसे पेंशन ली उन्हें जनता ने कभी माफ नहीं किया और थोपी गई सरकारी महानता के बावजूद उन्हें महान मानने से सदा इनकार किया है।
उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों का आज भी समाज में तिरस्कार होता है और उनके वंशजों को आज भी हिकारत की दृष्टि से देखा जाता है। हर व्यक्ति का अपना निर्णय होता है कि उसे किस ओर जाना है। ईसा मसीह ने सूली पर चढ़ते वक्त कहा था कि ‘हे ईश्वर, इन्हें माफ के देना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। मेरे ऊपर स्याह इरादों की स्याही फेंकने वालों के प्रति भी मेरे मन में यही विचार है। राकेश टिकैत ने कहा कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे। हे राम! किसान नेता मशहूर जनवादी शायर अदम गोंडवी की मशहूर गज़ल को भी सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा-
हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए ,
अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेड़िए
हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है,
दफ्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए।
गर गलतियां बाबर की थीं, जुम्मन का घर फिर क्यों जले?
ऐसे नाज़ुक वक्त में हालात को मत छेड़िए।
हैं कहां हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ खां,
मिट गए सब, ‘किसान’ की औकात को मत छेड़िए।
छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर नी गरीबी के खिलाफ,
दोस्त, मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए।