जेल में बंद सोशल एक्टिविस्ट ख़ालिद सैफी की पत्नी का छलका दर्द, जिस तकलीफ से हम गुजर रहे हैं वो शायद…

नई दिल्लीः सोशल एक्टिविस्ट ख़ालिद सैफ़ी दो साल से भी अधिक समय से दिल्ली की जेल में बंद हैं। उन पर दिल्ली दंगों के आरोप में यूएपीए लगाया गया है। पिछले दिनों दिल्ली की एक अदालत ने ख़ालिद सैफ़ी की ज़मानत खारिज़ कर दी थी। अब उनकी पत्नी नरगिस ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया है। नरगिस ने एक पोस्ट लिखी है जिसमें उन्होंने शुरू से अब तक का संक्षिप्त विवरण दिया है।

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क्या कहती हैं नरगिस

नरगिस ने लिखा कि कल 21.4.22 को मेरी मुलाकात की तारीख थी। सेहरी के बाद से ही बैचेनी थी के मुलाकात पर जाना है,ख़ालिद को मेरा इंतजार होगा। मैं सेहरी के बाद सो नही पाई जैसे 7.30 बजे में उठ कर तयार हो कर बच्चो को सोता हुआ छोड़ कर चली गई। मैं सुबह 8 बजे के करीब मंडोली जेल पहुंच गई। मुलाकात के लिए लंबी लाइन लगी हुई थी। उस लाइन में लगे लोगो को देख कर लग रहा था के आधा मुस्लमान दावतों में मसरूफ है और आधा जेल के अंदर, और बाकी उन के बचे हुए घर वाले कोर्ट और जेल की लाइनों में लगे है। जेलें मुसलमानों से भरी पड़ी है और मैं देखती हूं किसी की बूढ़ी मां लाइन में लगी है, किसी का बूढ़ा बाप वहा खड़ा पुलिस की गाली खा रहा है।

खैर मैं ख़ालिद के लिए दो जोड़ी कपड़े ले कर गई थी अंदर पहुंचते ही पता चला के में एक जोड़ी ही ले जा सकती हूं। वहां बाहर जो ऑफिसर बैठी थी बेइंतहाई बततमीज थी, मैंने उनसे रिक्वेस्ट की मैं ये कपड़े कहां रखूंगी तो बोली बाहर कही भी फेंक दे पर जायेंगे एक ही, मैने उस से ज्यादा बहस नहीं करी अकेले होने की वजह से कपड़ो को बाहर आ कर एक साइड में किसी पेड़ के नीचे रख दिया और अल्लाह से कहा के तेरे सुपुर्द।

मैं दुबारा लाइन में लगी और वो स्टॉप पार किया फिर नेक्स्ट लेवल पर पर पहुंची उस के बाद वहा चैकिंग हुई वहां मेरा बुरखा उतारा गया, उस के बाद मुझे मेरे बाल खोलने के लिए कहा गया, ये प्रोसेस दो जगह दो बार हुआ। उन लेडिस पुलिसकर्मियों के हाथ लगाने और चेकिंग करने से घिन आ रही थी, और उन का रवैया ऐसा था मानो जैसे उन सब के दिमाग में ये हो के जेल में बन्द  सारे मुसलमान गुनहगार है। और इन की फैमिली की कोई इज्जत नहीं है ।

जेल मिलने जाना भी अपने आप में एक टॉर्चर है। तीन बार ख़ालिद के एक जोड़ी कपड़े की चैकिंग हुई। ख़ालिद की जेल तक पहुंचते पहुंचते थक गई थी, क्योंकी मुझे दो घंटे बस इन सब को पार करने में लगे। ख़ालिद की जेल के बाहर एक ऑफिसर को एक स्लिप दी जिस से वो ख़ालिद को बुलाते मिलने के लिए, वहां में 1/2 घंटा बैठी रही, गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी और गरम हवाओ के थपेड़ों से हलक सुख चुका था इंतज़ार करते हुए एक अजीब सी घबराहट थी के काफी दिन बाद में ख़ालिद से मिलने जेल आई थी,अक्सर ख़ालिद मुझे मना करते है जेल आने के लिए,पर इस बार मेरा दिल नहीं माना और में चली गई।

तकरीबन 1/2 घंटे बाद ख़ालिद की आवाज़ लगी और जल्दी से उठ कर उन से मिलने गई। वो मुझे देख कर बहुत खुश हुए। उन की आंखों में चमक थी। हम ने फोन उठाया और बातें करनी शुरू की। बातों से ज्यादा हम बस एक दूसरे को देख रहे थे। हमारे बीच में शीशा और सलाखे थी फिर भी में ख़ालिद के हाथो को छूने की कोशिश कर रही थी। उन की आंखों में मेरे लिए आंसू थे। वो मेरे लिए परेशान थे के में गर्मी में रोज़े की हालत में बच्चो को सोता हुआ छोड़ कर आई हूं। वो मुझे से सॉरी बोल रहे थे के मेरी वजह से तुझे इतना परेशान होना पड़ रहा है।

मैं वहां बस उन को सुनने गई थी, वो अपने दिल की बाते सुना रहे थे। जिस तकलीफ से ख़ालिद और हमारे सभी साथी गुजर रहे है वो शायद आप और में महसूस भी नही कर सकते। छत गरम, दिवारे गरम, फर्श गरम, खिड़की से आती हुई हवा गर्म, कूलर नही पंखे मानो बोल रहे है के अब हम साथ नही दे सकते। चादर गीली कर के लेटना पड़ता है।

ठीक नहीं ख़ालिद सैफी की तबीयत

इस हालत में जब ख़ालिद की तबियत बिल्कुल भी ठीक नहीं, उन को सही खाना नही मिल रहा, सही इलाज नहीं मिल रहा उस हालत में भी एक रोजा नही छोड़ रहे, अपनी इबादत में और तरावीह और तहाजुद में कोई कमी नहीं आने दे रहे ,जिस मौसम में आप सारी सहूलियत होने के बावजूद मस्जिद तक नहीं जा रहे उस हालत में भी ख़ालिद का ईमान मजबूती के साथ खड़ा है ख़ालिद को और मुझे ये पता है के हमे इस हालत में कुछ नही मिल रहा पर हमे अल्लाह मिल रहा है और जब वो मिल जाए तो किसी की जरूरत नहीं होती।

शायद अल्लाह को भी मंजूर था के हम और बाते करें पता ही नही चला के कब 1/2 घंटा गुजर गया। और मेरे पीछे से आवाज आई के आप का टाइम खतम हो गया है, मेने उस ऑफिसर से कहा दो मिनट रुकिए तो उस ने कहा मैडम 15 मिनट का टाइम होता है और आप को तो फिर काफी देर हो गई है में समझ गई और मुस्कुरा कर उसको Thank You बोल। उस की दूसरी आवाज सुनते ही दिल को धक्का लगा क्योंकी मुझे ख़ालिद को फिर से उस दुनिया की जहन्नुम में छोड़ कर आना था। जहा इंसान को इंसान नहीं समझा जाता।।

फोन रखते हुए उन की मेरी आंखों में आसूं थे,मानो वो कह रहे है मुझे साथ ले चल और में भी बोल रही हू के मैं थक गई हूं अकेली भागते भागते अब बहोत हो चुका मेरे साथ चलो। ये सब अभी मुमकिन नही था, हम ने अल्लाह हाफिज कर के फोन काटा और एक दूसरे को देख कर चले गए।बाहर आते हुए और उन से बिछड़ते हुए आंसू रूक ही नही रहे थे। बाहर आते आते एक जगह ऐसा लगा के अंधेरा छा गया है पैर कांपने लगे,वहा एक पुलिस वाला बोला क्या हुआ चक्कर आ गया था शायद आप को फिर उस ने मुझे बैठने को बोला पानी ऑफर किया पर रोजा था तो माना कर दिया।कुछ मिनट आराम मिलने के बाद उस भाई को शुक्रिया बोला और में बाहर आ गई।

7.30 सुब्ह से शुरू हुआ सफर बहार आने तक 11.30 तक चला।  फिर ऑटो कर के अपने घर 12 बजे तक पहुंची। घर आते ही बच्चो ने गले लगाया और अब्बू के बारे में पूछने लगे, अपने बच्चो के लिए ख़ालिद गिफ्ट के तौर पर लेटर्स लिखे थे तो मेने वो बच्चो को दे दिए तीनों लेटर्स ले कर बहुत खुश हुए। आप सभी को ख़ालिद ने सलाम भेजा है,अपनी दुआओं में ख़ालिद और सभी को याद रखे। अल्लाह हमे और आप को हिम्मत के साथ एक जूट हो कर तानाशाही, फसीवाद से लड़ने की ताकत दे। मोमिनो के लिए तो दुनिया वैसे भी कैद खाना है,तुम हमें कैद करो हम यूसुफ बन कर जेल को नूर की रोशनी से मुन्नवर करेगें।।

न डरे थे,न डरेंगे इंशाअल्लाह

नाइंसाफी की इस लड़ाई को हिम्मत के साथ जारी रखेंगे।