वह बूढ़ा मेहिन्द्र सिंह जिन्होंने बचाई कई मुसलमानों की जान, क्या ईश्वर ऐसा ही दिखता होगा?

कृष्णकांत

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

जब दिल्ली में हिंसा हो रही थी, तब एक सरदार जी मासूम लोगों की जान बचाने में जुटे थे। कुछ लोग एक दूसरे की जान के प्यासे थे, तब सरदार जी मासूम लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचा रहे थे। जब लोग धर्म के नाम पर इंसानियत को शर्मसार कर रहे थे, जब सरदार जी अपने बेटे के साथ मिलकर इंसानियत की रक्षा कर रहे थे। जब लोग धर्म के आधार पर शिकार ढूंढ रहे थे, तब सरदार जी बिना हिंदू मुसलमान देखे लोगों को गाड़ी में बिठा कर उनके घर पहुंचा रहे थे।

नाम है मोहिंदर सिंह। पेशे से दुकानदार हैं। अपने जीवन में तमाम रंग देखे हैं, लेकिन उन रंगों में से उन्होंने नफरत का रंग दफना दिया है। सरदार जी उम्र के लिहाज से बुजुर्गियत के करीब हैं, लेकिन अपने कर्म से युवा फरिश्ता हैं जो खून खराबे का सामना करने का माद्दा रखता है। सरदार जी 16 या 17 साल के थे तब 1984 हुआ था। उसकी टीस आज भी उनके मन में है। लेकिन उस टीस से उन्होंने सबक सीखा। मानवता का सबक। दोबारा वही मंजर देखकर उनकी यादें ताजा हो गईं। बीबीसी ने उन पर स्टोरी की है। वे कह रहे हैं कि इंसान की सब नस्ल एक हैं। मैंने किसी को हिंदू या मुसलमान के रूप में नहीं देखा। मैंने छोटे छोटे मासूम बच्चों को देखा तो यही सोचा कि किसी तरह इनकी जान बच जाए।

सरदार जी की जुबानी कहें तो जो 1984 में हुआ था, वही फिर से लोगों पर दोहराया नहीं जाना चाहिए। 1984 में भी लोगों ने लोगों को बचाया था। सरदार जी ने 1984 के नरसंहार से गर्दन काटना, खून बहाना और जिंदा जलाना नहीं सीखा। सरदार जी ने जिन इंसानों को बचा लिया, अब वे हिंदू या मुसलमान नहीं हैं। वे सभी जिंदा इंसान सरदार जी की इस इंसानियत के गवाह हैं। वे जब तक जिंदा रहेंगे, तब तक अपने बच्चों को यह कहानी सुनाएंगे कि कैसे एक सरदार ने उन्हें मौत के मुंह से बचा लिया था।

वे कह रहे हैं कि तब लोगों ने हमारी मदद की थी, आज हमने इंसानियत के नाते अपना फर्ज निभाया। मुझ पर उस समय का कर्जा था, परमात्मा ने हमें मौका दिया कि उस कर्ज को ब्याज समेत चुका दिया जाए। मैंने किसी पर एहसान नहीं किया। जब भी इंसानियत का कत्ल होता है, तमाम ऐसे लोग होते हैं जो अपने दम भर कोशिश करते हैं कि इंसानियत बची रहे। बरसों बाद जब सरदार जी नहीं होंगे, तब उनका वह बेटा होगा जो दंगे के समय जान बचाने में सरदार जी के साथ था। तब वे लोग होंगे जो आज बचा लिए गए हैं।

सरदार जी को सुनते हुए प्रेम और करुणा से आपकी आंखें छलक सकती हैं और दिल गर्व से भर सकता है। जब तक सरदार मोहिंदर सिंह जैसे लोग जिंदा हैं, हिंदुस्तान को अपने होने पर फ़ख़्र होगा। अगर कोई कहे कि मैंने ईश्वर को देखा है तो मैं उससे पूछूंगा कि क्या ईश्वर सरदार मोहिंदर जी जैसा दिखता है? मुझे तो ऐसा ही लग रहा है कि जिसकी बातें सुनकर आपके भीतर कुछ भर जाए और खुशी से आप रो भी न सकें, हंस भी न सकें, बस सोचते रहें।