मोहम्मद सरताज आलम
10 मई को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के नवनिर्वाचित सरपंच असलम को देशद्रोह के आरोप में जेल भेज दिया गया। उसी महीने एक सत्र अदालत ने असलम को इस आधार पर जमानत देने से इनकार कर दिया कि उन पर “संगीन” और “गंभीर” आरोप हैं। 3 जुलाई को पुलिस ने अदालत में एक आरोप पत्र दाखिल किया जिसमें उसने राजद्रोह का मामला हटा लिया। असलम का मामला पुलिस द्वारा राजद्रोह के प्रावधानों का गैरवाजिब राजनीतिक हथियार के रूप इस्तेमाल को दर्शाता है। असलम के भाई शकील अहमद के मुताबिक चुनाव में असलम ने जिस उम्मीदवार को हराया था उसके बनाए एक फर्जी वीडियो के आधार पर पुलिस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं के दबाव में मामला दर्ज किया था।
असलम की जीत के बाद 2 मई को एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें “असलम भैया जिंदाबाद” और “पाकस्तान जिंदाबाद” के नारे सुनाई दे रहे थे। वह वीडियो अंधेरे में शूट किया गया है और नारे लगाने वालों के चेहरे दिखाई नहीं दे रहे हैं। पुलिस ने असलम और उनके समर्थकों पर धार्मिक भावनाओं को आहत करने और भारत सरकार के प्रति नफरत फैलाने वाले नारे लगाने का आरोप लगाया। लेकिन अहमद ने कहा कि न तो असलम ने और न ही उनके समर्थकों ने ऐसी कोई रैली की थी। पड़ोस के गांव के सात वर्षीय लड़के राहुल निषाद ने मुझे बताया कि वह उन बच्चों में एक था जिन्हें असलम के प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों से जुड़े लोगों ने नारे लगाने के लिए पैसे दिए थे।
अहमद के मुताबिक असलम और उनके समर्थकों को गिरफ्तारी के समय यह नहीं पता था कि वीडियो किसने बनाया या नारे लगाने वाले कौन हैं। आवाजें बच्चों और लड़कों की लगती हैं। वीडियो को सोशल मीडिया के जरिए फैलाया गया और यहीं से स्थानीय पुलिस का ध्यान इस पर गया। रेवसा प्रखंड के थानगांव पुलिस थाने ने 7 मई को प्राथमिकी दर्ज की और तीन दिन बाद असलम और तीन अन्य को देशद्रोह और विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। प्राथमिकी में कहा गया है कि रैली में कोविड-19 सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया गया।
बहुसंख्यक आबादी वाले गांव में अल्पसंख्यक प्रधान
असलम सीतापुर के रेवसा प्रखंड के बेलौटा पंचायत के निर्वाचित सरपंच हैं। अहमद के मुताबिक इस हिंदू-बहुल पंचायत में सौ से अधिक मुस्लिम मतदाता सहित करीब एक हजार वोटर हैं। उन्होंने कहा कि 29 अप्रैल को हुए पंचायत चुनाव में असलम को 408 वोट मिले थे और उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी गुलाब सिंह को 286 वोट।
अहमद ने कहा कि असलम और उनकी टीम 3 मई को मतगणना के दिन से पहले की रात तक रेवसा ब्लॉक में ही थे। उन्होंने कहा कि वह सुबह करीब चार बजे मतगणना के बाद बेलौटा गांव लौटे। अहमद ने मुझे बताया, “7 मई को थानगांव पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर अनिल कुमार ने मेरे भाई को फोन किया। “वहां पहुंचने पर हमें एक वीडियो दिखाया गया जिसमें “असलम भैया जिंदाबाद”, “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लग रहे थे। इंस्पेक्टर ने हमसे पूछा कि यह वीडियो किसने बनाया है। मेरे भाई ने कहा कि उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। चूंकि इस वीडियो में किसी का चेहरा नहीं दिख रहा है इसलिए पहचानना मुश्किल है। हमने कहा कि हम इसे सुनेंगे और अगर कोई आवाज पहचान में आती है तो हम उन्हें बताएंगे। साथ ही हम अपने स्तर पर भी पता लगाएंगे। इसके बाद इंस्पेक्टर ने हमें जाने को दिया।”
अगले दिन 8 मई को इंस्पेक्टर ने असलम को दोबारा थाने बुलाया। अहमद ने बताया, “इंस्पेक्टर ने मेरे भाई से कहा कि बहुत दबाव है। महामारी के दौरान प्रोटोकॉल के उल्लंघन से संबंधित उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। असलम और उनके तीन समर्थकों- अतीक, फरीद और सलमान- पर भारतीय दंड संहिता की धारा 295A, 188, 269 के तहत मामला दर्ज किया गया। साथ ही महामारी रोग अधिनियम के तहत आरोप भी लगाए गए। चारों को उसी दिन जमानत पर रिहा कर दिया गया। अहमद ने जोर देकर कहा कि उस समय तक असलम के खिलाफ देशद्रोह का कोई आरोप नहीं था।
अहमद के मुताबिक 10 मई को बजरंग दल और आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने बेलौता गांव में धरना प्रदर्शन किया। असलम के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले एक अन्य पंचायत चुनाव के उम्मीदवार चंद्र प्रकाश शुक्ला अपने भाई अनुज शुक्ला के साथ धरने पर मौजूद थे। अहमद ने कहा कि अनुज बजरंग दल का कार्यकर्ता है। अहमद ने बताया कि इसके बाद पुलिस प्रशासन ने मेरे भाई समेत चार लोगों के मामले में देशद्रोह की धारा जोड़ते हुए जेल भेज दिया। उसी दिन एक ट्रायल कोर्ट ने चारों को जमानत देने से इनकार कर दिया। इसके बाद सत्र अदालत ने भी उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। जमानत की सुनवाई में अदालत ने कहा, “चूंकि आवेदक ने कथित रूप से गंभीर और संगीन अपराध किया है और इस प्रकार आवेदक के न्यायालय की पहुंच से दूर भागने, अभियोजन पक्ष के गवाहों को अपने वश में करने और अभियोजन पक्ष के सबूतों के साथ छेड़छाड़ की पूरी संभावना है। इस मामले में जमानत देना जनता और राज्य के व्यापक हितों के लिए घातक होगा।”
किसने रचा षड़यंत्र
अहमद का मानना था कि वायरल वीडियो असलम के विरोधी गुलाब और चंद्र प्रकाश के कहने पर बनाया गया था। उन्होंने बताया, “मेरे भाई को गुलाब सिंह और चंद्र प्रकाश की साजिश पर एक फर्जी वीडियो के आधार पर देशद्रोह के मनगढ़ंत आरोप में जेल भेज दिया गया।” पुलिस प्रशासन ने बिना किसी जांच के यह कार्रवाई की है। अहमद ने कहा कि वीडियो को देखकर यह स्पष्ट हो गया कि इसे बेलौता में नहीं बल्कि पास के एक अन्य गांव में शूट किया गया है। उन्होंने कहा कि उनकी टीम गांव गई और वहां ग्रामीणों से बात कर वीडियो के बारे में पता लगाया।
“एफआईआर में बताया गया है कि वीडियो हमारे गांव बेलौता का है,” अहमद ने आगे कहा। “हमने अपनी जांच की और पाया कि यह वीडियो गोडियन पुरवा में शूट किया गया था जो हमारे गांव से एक किलोमीटर दूर है। दरअसल हमारे प्रतिद्वंदी चंद्र प्रकाश और गुलाब सिंह पंचायत चुनाव में हार के बाद निराश हैं।” अहमद ने दावा किया कि वीडियो विरोधी उम्मीदवारों के दो समर्थकों शुभम और रामचरण ने बनाया था और उन्होंने गोडियन पुरवा में कुछ बच्चों को नारे लगाने के लिए पैसे दिए। अहमद ने कहा, “जब हमने नारे लगाने वाले बच्चों से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि उन्हें नारे लगाने के लिए पैसे मिले थे।”
मैंने अहमद के दावे को जांचने के लिए स्वतंत्र रूप से बच्चों में से एक से संपर्क किया। मैंने गोडियन पूरवा निवासी दर्शन निषाद के सात साल के बेटे राहुल निषाद से बात की। राहुल ने पुष्टि की कि उसे नारे लगाने के लिए पैसे दिए गए थे। राहुल ने कहा, “शुभम और रामचरण ने हमें ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाने के लिए 1000 रुपए दिए। जैसे ही हमने नारे लगाए रामचरण और शुभम ने वीडियो बनाया।”
दर्शन ने यह भी बताया की कि राहुल ने उन्हें घटना के बारे में बताया था। दर्शन ने कहा, “हालांकि जब नारे लगे तब मैं घर पर नहीं था लेकिन राहुल ने मुझे बताया कि शुभम ने नारे लगाने के लिए कहा तो उन्होंने नारे लगाए। मैंने राहुल को डांटा कि उन लोगों ने तुमको नारे लगाने के लिए उकसाया तो तुम बच्चों ने ऐसा क्या किया?’ अब अगर पुलिस हमसे पूछताछ करेगी तो हम सच बता देंगे।”
बच्चों को नहीं दी रिश्वत
रामचरण ने वीडियो बनाने में अपनी भूमिका की पुष्टि की लेकिन बच्चों को रिश्वत देने से इनकार किया। “पैसे देने की बात बिल्कुल गलत है,” उन्होंने मुझसे कहा। “मतगणना की रात 3-4 बजे गोडियन पुरवा में पंद्रह-बीस लोगों का एक जुलूस निकला। वे ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे। मैंने नारे लगाने वाले लोगों में से किसी को भी नहीं देखा। मैंने फौरन वीडियो बनाया और 100 नंबर डायल कर पुलिस को सूचना दी।”
इस बीच गुलाब और चंद्र प्रकाश दोनों ने वीडियो बनाने में कोई भूमिका होने से इनकार किया। सिंह ने मुझे बताया, “वीडियो रामचरण ने बनाया था। मैंने रैली नहीं देखी क्योंकि मैं रात को 1 बजे घर आया और सो गया। रैली मेरे घर के पास से नहीं गुजरी। लेकिन मैंने सुना है कि रैली गांव में हुई थी।” चंद्र प्रकाश ने भी ऐसा ही दावा किया था। उन्होंने कहा, “यह आरोप कि मैंने वीडियो बनाया है पूरी तरह से झूठा है। असलम के भाई अपने बचाव में यह आरोप लगा रहे हैं। हमने वह रैली नहीं देखी। जब हम रात को आए तो थक कर सो गए। लेकिन लोगों ने हमें बताया कि रैली हुई थी।”
बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने भी इस वीडियो को सोशल मीडिया पर प्रचारित किया। बजरंग दल के सीतापुर जिला संयोजक संदीप अवस्थी ने पुष्टि की कि उन्होंने ट्वीट किया था और बाद में पुलिस द्वारा इस पर ध्यान दिलाने के बाद वीडियो हटा लिया। “कार्यकर्ताओं की ओर से खबर थी कि जीत की खुशी में एक रैली निकाली गई और ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए गए। मैंने उस वीडियो को ट्वीट किया। उसके बाद पुलिस ने कार्रवाई की,” अवस्थी ने मुझे बताया। “बाद में मैंने ट्वीट हटा लिया।” उन्होंने इस बात से इनकार किया कि बजरंग दल ने गांव में हुए एक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। उन्होंने कहा कि आरएसएस ने विरोध प्रदर्शन किया था जिसमें कई संगठन शामिल हुए।
मुश्किल नहीं है सच्चाई का पता लगाना
हालांकि खुद को बजरंग दल का रेवसा प्रखंड संयोजक बताने वाले आर्यन सोनी ने 11 मई को पोस्ट किया, ”बजरंग दल के विरोध के बाद राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया। नवनिर्वाचित मुखिया समेत चार लोगों को जेल भेजा गया।” पुलिस द्वारा चार्जशीट जमा करने से पहले और बाद में मैंने कई स्थानीय पुलिस अधिकारियों से मामले और अहमद के आरोपों के बारे में बात की। सीतापुर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक नरेंद्र प्रताप सिंह ने आरोपपत्र दायर होने से पहले मुझे बताया, “असलम के मामले की जांच की जा रही है और वीडियो को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा जाएगा।” थनगांव पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर संत कुमार सिंह ने मुझे बताया, “वीडियो रात का है इसलिए रिकॉर्डिंग साफ नहीं है। लेकिन यह किस गांव का है इसकी सच्चाई का पता लगाना बहुत मुश्किल नहीं है। सच क्या है, पता चल जाएगा। जो होगा सही होगा, किसी के साथ अन्याय नहीं होगा। जांच के दौरान नारे लगाने के मामले में बयान सामने आए हैं लेकिन पैसे देकर नारे लगाने की बात की पुष्टि नहीं हुई है।”
रेवसा ब्लॉक के अधिकार क्षेत्र में आने वाले महमूदाबाद तहसील के सर्कल अधिकारी शिवशंकर प्रसाद से जब मैंने पूछा कि वीडियो कहां का है तो उन्होंने कहा, ”वीडियो असलम के गांव का है। जीत के बाद कुछ लोग पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। किसी ने उसका वीडियो बना लिया।” असलम के समर्थकों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि नारे लगाने वाले तीन लोगों को जेल भेज दिया गया है। उन्होंने दावा किया कि वीडियो बेलौता गांव में बनाया गया। मैंने प्रसाद से पूछा कि क्या बजरंग दल के विरोध के बाद असलम के खिलाफ मामला दर्ज किया गया तो उन्होंने कहा, “ऐसा कुछ नहीं है। वीडियो के संज्ञान में आने के बाद जांच कर मामला दर्ज किया गया है। यह पूछे जाने पर कि क्या वीडियो में बच्चों की आवाज है प्रसाद ने कहा, “ऐसा लगता है। लेकिन बारात असलम की है। बड़े भी बोल रहे हैं, बच्चे भी बोल रहे हैं। हो सकता है कि बड़ों की आवाज़ रिकॉर्ड न की गई हो।” उन्होंने कहा कि वीडियो के बारे में “आसपास के लोगों से पूछताछ” करने और गोपनीय जानकारी मिलने के बाद असलम का “नाम सामने आया।”
क्या कहती है पुलिस
अपनी जांच के बाद 3 जुलाई को पेश किए गए आरोपपत्र में पुलिस ने कहा कि उपलब्ध सबूतों के आधार पर, “धारा 124ए का अपराध नहीं पाया गया।” राजद्रोह का आरोप हटने के बाद मैंने फिर से पुलिस से संपर्क किया। थानगांव के एसएचओ संत कुमार ने कहा कि “मामले से जुड़े ट्वीट देखे गए, फेसबुक पोस्टें देखी गईं, जिसके आधार पर इलाके और मौके पर मौजूद लोगों के बयान लिए गए और कार्रवाई की गई।” जब मैंने संत कुमार से पूछा कि क्या पुलिस ने बच्चों को नारे लगाने के लिए पैसे दिए जाने के आरोप की जांच की गई तो उन्होंने कहा, “बच्चे आखिर बच्चे होते हैं।” यह पूछे जाने पर कि क्या बच्चों से नारे लगवाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी, तो उन्होंने कहा, “अगर हमें कोई सबूत मिला तो हम कार्रवाई करेंगे क्योंकि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।”
बेलौता गांव निवासी संतोष पांडेय ने पुलिस पर सवाल उठाते हुए कहा कि “असलम के साथ अन्याय हुआ है।” उन्होंने कहा, “ग्रामीण उनसे इतना प्यार करते हैं कि अगर आज चुनाव होंगे तो उन्हें पहले से ज्यादा वोट मिलेंगे। गांव में अगर कोई बीमार पड़ता है तो इलाज के लिए अपनी गाड़ी लेकर आते हैं, जरूरत पड़ने पर इलाज के लिए पैसे खर्च करते हैं। उन्होंने कभी नहीं देखा कि जरूरतमंद ग्रामीण हिंदू है या मुस्लिम। वह सभी को एक समान देखते हैं। ऐसे व्यक्ति कभी भी इस तरह के नारे नहीं लगा सकता।” पांडे ने आगे कहा, ”उन्हें लोगों ने अपनी साजिश का शिकार बनाया है। बजरंग दल ने ही असलम को फंसाया है। इन लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाया कि असलम को जेल भेजा जाए नहीं तो आला अधिकारियों के पास चले जाएंगे। पूरा गांव उनके जल्द रिहा होने का इंतजार कर रहा है।”
पुलिस शक्ति का दुरुपयोग
जून में एक सामाजिक कार्यकर्ता जाकिर अली त्यागी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में एक शिकायत दर्ज कर आरोप लगाया कि पुलिस ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया है और लापरवाही से राजद्रोह का आरोप लगाया है। अहमद ने आगे इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए याचिका दायर की है। उन्होंने कहा, “वहां से न्याय की उम्मीद है।”
मैंने मामले की वैधता पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और असलम के वकील सीबी पांडेय से बात की। उन्होंने कहा, “सिर्फ नारे लगाने से धारा 124ए नहीं लगाई जा सकती और इसीलिए जांच अधिकारी ने इस धारा को हटा दिया। नारे के बाद हिंसा होती और जांच अधिकारी को सबूत मिलते, तो यह धारा नहीं हटाई जाती।” उन्होंने कहा कि वीडियो अपने आप में पर्याप्त सबूत नहीं है और कितने ही मामलों में वीडियो प्रस्तुत किए जाते हैं लेकिन मौखिक साक्ष्य के अभाव में मामले टिक नहीं पाते। दूसरी बात इस वीडियो में कोई भी नारे लगाते हुए नहीं दिख रहा है। उन्होंने आगे कहा, “केवल नारे लगाने से 124ए का अपराध नहीं बनता। ऐसे कई मामले सुप्रीम कोर्ट में आए लेकिन उन्हें स्वीकार नहीं किया गया। इसलिए नारे लगाने पर असलम के खिलाफ देशद्रोह का मामला नहीं बनता।”
(यह रिपोर्ट कारवां से सभार ली गई है)