कृष्णकांत
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने सीएए को लेकर भारत के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल करते हुए हस्तक्षेप की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त मिशेल बेचेलेत जेरिया ने कोर्ट से अपील की है कि उन्हें बतौर एमिकस क्यूरी सुनवाई में शामिल होने की मंज़ूरी दी जाए.
अमेरिकी मीडिया संस्थान हफिंगटन पोस्ट ने आज लिखा है कि सीएए पर भारत सरकार दो तरह की बातें कर रही है. उसने आरटीआई में कुछ और कहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में कुछ और कहा है. सरकार कोर्ट में हलफनामा देती है कि यह भारत का आंतरिक मामला है, लेकिन आरटीआई के जवाब में कहती है कि ऐसे खुलासे से भारत के दूसरे देशों से संबंधों पर असर पड़ेगा. क्या सरकार खुद ही नहीं जानती कि यह उसका आंतरिक मुद्दा है या अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है.
गौरतलब है कि सीएए कानून का मसौदा भी ऐसे ही विरोधाभासी प्रावधानों से भरा है, जिसका भारत सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है, न संसद की बहसों में, न संसद से बाहर. इससे पहले दिसंबर में भी संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने सीएए पर चिंता जताते हुए कहा था कि भारत का यह नया कानून बुनियादी रूप से भेदभाव करने वाला है.
डोनल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के ठीक पहले धार्मिक आजादी से संबंधित एक अमेरिकी संस्था ने इस कानून के मद्देनजर गंभीर टिप्पणी की थी. संयुक्त राज्य अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने कहा कि सीएए और एनआरसी से भारत के मुसलमानों का मताधिकार छिन सकता है और भारत में धार्मिक स्वतंत्रता में गिरावट आई है. यह एक स्वतंत्र अमेरिकी संस्था है जो दुनिया भर में लोगों की धार्मिक आज़ादी पर नज़र रखती है. इस संस्था ने उसी तरह के सवाल उठाए हैं जो भारत में लोग उठा रहे हैं. बीती जनवरी में भारतीय गणतंत्र दिवस के मौके पर अमेरिका में सीएए के खिलाफ करीब 30 शहरों में प्रदर्शन हुए थे.
ब्रिटेन सरकार ने कल 4 मार्च को सीएए के संभावित प्रभाव को लेकर अपनी चिंता फिर से जाहिर की थी. आज 5 मार्च को ब्रिटेन की संसद में इस पर तीखी बहस हुई है. ब्रिटेन के सिख सांसद तनमनजीत सिंह और प्रीत गिल कौर ने ब्रिटिश सरकार से कई सवाल किए और कहा कि जब मैं भारत में पढ़ रहा था तो एक अल्पसंख्यक के तौर पर 1984 के सिख नरसंहार का गवाह बना. हमें इतिहास से सीखना चाहिए, हमें उन लोगों के बहकावे में नहीं आना चाहिए जो समाज को बांटने का मकसद रखते हैं, जो धर्म की आड़ में लोगों को मारना चाहते हैं और धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं. मैं स्पीकर से यह पूछना चाहता हूं कि उन्होंने भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ हो रही घटनाओं को लेकर भारतीय समकक्ष को क्या संदेश दिया है?
विदेशी मीडिया में लगातार इस कानून की आलोचना में खबरें छप रही हैं. कई देश इस कानून को अलोकतांत्रिक और भेदभावकारी बता चुके हैं. इन चर्चाओं से दुनिया में यह संदेश जाएगा कि भारत एक ऐसा देश बन गया है जो अपने अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करता है.
भारत ने मानवाधिकार से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और भारत इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि वह कानून के समक्ष समता का पालन करेगा. यह कानून भारत की साख के लिए मुसीबत खड़ी करता है. क्या अब भारत के लोग ऐसा भारत चाहते हैं जो दुनिया में अपना बनाया हुआ सम्मान खो दे और पाकिस्तान जैसे देशों की श्रेणी में आ जाए जिसे संदेह और तिरस्कार से देखा जाता है?