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इस देश का दुर्भाग्य है कि देश का निर्माण करने वाले करोड़ों लोगों को मरने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया गया है

कृष्णकांत

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वे रोटी कमाने शहर गए थे. वे रोटी के बदले ऊंची ऊंची अट्टालिकाएंं बना रहे थे. अचानक संकट आया और अट्टालिकाओं के दरवाजे बंद हो गए. जिन दरवाजों के भीतर वे काम करते थे, वही दरवाजे उनके लिए बंद हो गए. वे बदहवास भाग रहे हैं. किसी को मंजिल मिल रही है, किसी को मौत. नासिक हाइवे पर पैदल चलते बिहार के एक मजदूर की मौत हो गई. चलते हुए अचानक 6 बजे उसे चक्कर आया और उसकी मौत हो गई. नासिक हाइवे पर छह घंटे तक लाश पड़ी रही. लोग पुलिस को सूचना देते रहे. रात नौ बजे पुलिस ने आकर शव उठाया. टीवी9 की खबर बता रही है कि मजदूर की भूख प्यास से मौत हुई है, उसके बारे में यह कोई नहींं जानता कि वह कौन है और बिहार में कहां का रहने वाला है.

रवि मुंडा नागपुर से झारखंड पैदल जा रहे थे. साथ में सात मजदूर और थे. घर लौटना जरूरी हो गया था. कोई साधन नहीं मिला तो पैदल चल पड़े. 1200 किलोमीटर पैदल चलने के बाद बिलासपुर पहुंचे थे. रवि की तबियत अचानक बिगड़ गई. अस्पताल में भर्ती कराया गया. डॉक्टर ने बताया कि हार्ट अटैक से मौत हो गई है. सभी के टेस्ट किए गए, किसी को कोरोना नहीं था. रवि मुंडा का शव अंतिम संस्कार के लिए किसी संस्था को दे दिया गया, बाकी सात मजदूर झारखंड के लिए रवाना हो गए हैं. किसी खबर में यह सूचना नहीं मिल सकी कि वे सातों पैदल गए हैं या किसी वाहन से.

गुजरात के अंकलेश्वर से एक मजदूर उत्तर प्रदेश के लिए निकला था. वडोदरा पहुंचकर उसकी मौत हो गई. मजदूर की लाश सड़क के किनारे झाड़ी में बरामद हुई. घटनास्थल पर उसकी साइकिल भी बरामद हुई है. मृतक की पहचान उत्तर प्रदेश निवासी राजू साहनी के रूप में हुई है. किसी राहगीर ने राजू के लिए एंबुलेंस बुलाई.

झारखंड के 56 मजदूर सूरत के एक शो-रूम में काम करते थे. 42 दिन फंसे रहे. फिर मजदूरों को भेजे जाने की छूट हुई तो इन लोगों ने मिलकर एक बस बुक कराई. बस वाले ने कुल 2 लाख 24 हजार रुपये में बस बुक की. सबने मिलकर पैसा जुटाया और 2 लाख 24 हजार रुपये अदा किया. बस वाले ने लाकर गिरीडीह छोड़ दिया. उसके बाद सबको अपने घर जाने के लिए पैदल चलना पड़ा. कोई सौ किलोमीटर पैदल चला, कोई 50 किलोमीटर.

देश के हर बड़े शहर से सूचनाएं हैं कि मजदूर अब भी पैदल भाग रहे हैं. यह संंख्या करोड़ में है. इनमें महिलाएं हैं, बच्चे हैं, बुजुर्ग हैं, बीमार हैं, अक्षम हैं. ऐसे भी लोग हैं जिनके पास खाने को कुछ भी नहीं है. लॉकडाउन को अब 44 दिन हो गए हैं. लॉकडाउन के दो तीन बाद से यह भगदड़ शुरू हुई थी. तब यह बहाना था कि इतनी जल्दी इतने बड़े देश में करोड़ों लोगों की व्ययवस्था नहीं हो सकती. अब 44 दिन बाद कौन सा बहाना है? इस देश का दुर्भाग्य है कि देश का निर्माण करने वाले करोड़ों लोगों को मरने के लिए उनके हाल पर छोड़ दिया गया है.