गुरदीप सिंह सप्पल
यूक्रेन में भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत के बाद हमारे केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा, विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले 90% भारत में क्वालिफायर तक पास कर नहीं पाते। इस बारे में आपने पेरी महेश्वर का लिखा पढ़ लिया होगा। यूक्रेन युद्ध में जान गंवाने वाले कर्नाटक का नवीन 97% लाया था 12th में, क्या उसके NEET में 18% भी नहीं होंगे? सही पढ़ा आपने! NEET पूरा फ़र्जीवाड़ा है। इसमें पास होने के लिए सिर्फ़ 18% नम्बर चाहिए। NEET पास करने के लिए सिर्फ़ 138/720 नम्बर चाहिए। ऐसा क्यों? देश में MBBS की कुल 90675 सीट हैं, जिसमें सरकारी 44555 हैं।
सरकारी की फ़ीस कुछ हज़ार और प्राइवेट की 1.5 करोड़ तक है। पिछले साल 15.4 लाख बच्चों ने NEET परीक्षा दी, पास हुए 8.7 लाख। सीट 90675, पास 8.7 लाख! क्यों? यहीं खेल है! NEET में अपनी अपनी कैटेगरी टॉप रैंकिंग वाले तो सरकारी मेडिकल कॉलेज में चले जाते हैं। बाक़ी 8.65 लाख बच्चों के लिए 46120 प्राइवेट सीट ही बचती हैं। अगर बात सिर्फ़ मेरिट की होती, 46 हज़ार सीट के लिए थोड़े ही ज़्यादा बच्चे पास करते, 19 गुना नहीं! समझते हैं, क्यों? 19 गुना बच्चे पास करके हर प्राइवेट सीट के लिए 19 NEET पास बच्चों की मंडी सजा दी जाती है। चूँकि इस मंडी में हर छात्र की क्षमता को करोड़ -डेढ़ करोड़ तक फ़ीस की नहीं होती है। इसलिए रैंकिंग और फ़ीस क्षमता के मैचिंग होती है। कई गरीब अच्छे छात्र ख़राब लेकिन सस्ते प्राइवेट कॉलेज में जाते हैं। कई अमीर, या किसी तरह से पैसा जुटाने वाले छात्र बहुत अच्छे प्राइवेट कॉलेज में जाते हैं, चाहे उनकी रैंकिंग बहुत ख़राब ही क्यों न हो। और बहुत से अच्छी रैंकिंग वाले भी पैसे की कमी से कहीं नहीं जा पाते हैं!
पिछले साल 7.5 लाख रैंकिंग वाले और 21% NEET नम्बर वाले छात्र को भी प्राइवेट कॉलेज में दाख़िला मिल गया था। इससे दो बात साफ़ है-
उससे ऊपर रैंकिंग वाले कम से कम 705445 बच्चों को दाख़िला नहीं मिला!
अगर 21% नम्बर वाले को भी नहीं देते तो प्राइवेट सीट ख़ाली रह जाती!
प्राइवेट मेडिकल कॉलेज नुक़सान में न रहें, इसीलिए 19 गुना बच्चों को NEET पास दिखाया जाता है, चाहे उनके 18% नम्बर ही क्यों न हों! NEET के बाद 90% कॉलेज ने फ़ीस ही 5-6 गुना बढ़ा दी, जो कैपिटेशन फ़ीस का ही दूसरा रूप है! अब सवाल ये है कि नवीन के क्या 18% नम्बर भी नहीं थे? नवीन शेखरप्पा यूक्रेन इसलिए नहीं गया क्योंकि वो NEET पास नहीं कर सका। सच तो ये है कि वहाँ भी एडमिशन NEET रैंकिंग के आधार पर ही मिलता है।मंत्री जी या सरकार को क्या ये मालूम नहीं है? नवीन शेखरप्पा इसलिए यूक्रेन गया था क्यूँकि 97% वाला छात्र थ। यहाँ अच्छे प्राइवेट कॉलेज की एक-डेढ़ करोड़ फ़ीस नहीं दे सकता था और किसी बेकार से प्राइवेट कॉलेज में पढ़ना उसे मंज़ूर नहीं था। यूक्रेन में क्वालिटी का और खर्च का अच्छा विकल्प था, इसलिए वो वहाँ गया था।क्या ग़लत था? सरकार को व इसके मंत्रियों को शर्म आनी चाहिए कि केवल अपनी नाकामी छुपाने के लिए वो इन प्रतिभाशाली छात्रों को बदनाम करने में जुट गए! ये छात्र देश में पढ़ते यदि फ़ीस ठीक होती या सीट ज़्यादा होतीं। ये सभी NEET पास हैं व इनसे बहुत बहुत कम रैंकिंग वाले भारत में पैसा दे पढ़ रहे हैं।
और एक आख़िरी बात। जेनरल, SC, ST, OBC, EWS सभी वर्गों के लिए कुल मिला कर केवल 44555 सीट ही सरकारी हैं।बाक़ी 46120 के लिए प्राइवेट मंडी है, जहां 18% नम्बर पर भी दाख़िला मिल सकता है। प्रतिभा का, मेरिट की क्या ग़ज़ब परिभाषा है!
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)