वो मैच जिसका प्रसारण नहीं हो पाया था, और जो कपिल की सिंगल हैंडेड जीत थी

वीर विनोद छाबड़ा

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

क्रिकेट के एक दिवसीय इतिहास की सबसे बेहतरीन इनिंग को खोजने के लिए हमें कभी मेहनत नहीं करनी पड़ी. सिर्फ एक ही तो है, कपिल देव के 175 नॉटआउट विरुद्ध ज़िंबाबवे. मौका था, इंग्लैंड में तीसरा वर्ल्ड कप 1983. हालांकि उन दिनों ज़िंबाबवे कोई बहुत बड़ी तोप टीम नहीं थी. दर्जा भी एसोसिएट मेंबर का. मगर उसने शक्तिमान ऑस्ट्रेलिया को हरा सनसनी मचा दी थी. भारतीय टीम भी एकदिनी में पहलवान नहीं थी. इसके पहले के वर्ल्ड कपों में ईस्ट अफ्रीका को छोड़ सबसे हार चुकी थी. हाँ वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले उसने वेस्ट इंडीज़ को उसकी ज़मीन पर एक मैच हराया था. लेकिन असली सनसनी तब मची जब 1983 के वर्ल्ड कप के पहले ही मैच में उसने इंडीज़ को 34 रन से हरा दिया. इंडीज़ को उन दिनों हराना कोई खाला जी का घर नहीं था. फिर भारत ने ज़िंबाबवे को 5 विकेट से हराया. लगातार दो जीत से भारत के हौंसले बुलंद हो गए. लेकिन ये हौंसले ध्वस्त हो गए. जब ऑस्ट्रेलिया ने उसे 162 से हराया और फिर सेकंड राउंड में इंडीज़ ने 66 से हरा कर बदला ले लिया.

लगातार दो हार से सदमे में दिख रही इंडिया का अब भारत का ज़िंबाबवे से फिर मुक़ाबला था. तारीख थी, 18 जून 1983, टुनब्रिज. इंडिया की पूरी उम्मीद मेमने ज़िंबाबवे को हरा कर रेस में वापस लौटने पर टिकी थी. भारत ने टॉस जीता और बैटिंग का फ़ैसला किया. लेकिन किसी ने बुरे से बुरे सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी बुरी शुरुआत होगी. पता ही नहीं चला कि गावस्कर और श्रीकांत गए और लौट आये. दोनों शून्य पर ढेर. बोर्ड पर स्कोर 6 रन टंगा था. कप्तान कपिल देव उस समय शॉवर ले रहे थे. उनको किसी ने आवाज़ दी. कैप्टेन सब कबाड़ा हो गया, जल्दी बाहर आओ.  दो विकेट डाउन हो चुके है. जब तक कपिल बाहर आते, तीसरा विकेट गिर गया. और जब तक वो पैडअप हुए, संदीप पाटिल भी आउट, चौथा विकेट गिरा. स्कोर 9 रन. मायूस कपिल भारी क़दमों से क्रीज़ पर पहुंचे.  अब तक एक के एक बाद जल्दी जल्दी जो झटके लगे, उसके बारे में वो सोच ही नहीं पाए, सब कुछ इतनी जल्दी-जल्दी हुआ कि सोचने की फुरसत ही नहीं मिली.

इस बीच भारत में रेडियो और ट्रांसिस्टर्स पर कमेंट्री सुन रहे एक-दूसरे को फूटी आँख न सुहाने वाले बांके लाल और फ़ज़्ज़ु मियां इस बात पर एकमत हो रहे थे, वापस बुला लो टीम को, इनके बस का न है क्रिकेट खेलना…अंग्रेज़ों के चोंचलों में न जाने क्यों फँस जाते हैं… इधर रेडियो पर शोर हुआ…यशपाल शर्मा भी गए…लीजिये साहब 17 पर 5 हो गए…बांके बिहारी चीखे, मैं पूछता हूँ शर्मा जी को किसने टिकट दिलाया…फ़ज़्ज़ु मियां भी कम नहीं थे, अजी होंगे सिफारशी लाल…एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है, ये कल के लौंडे कपिल को कप्तान किसने बनाया…मुझे तो सीनियर खिलाड़ियों की साज़िश लग रही है, कपिल को बदनाम करो…यानी, जितने मुंह उतनी बातें और उतने ही सुर. मुल्क में अलग-अलग शहरों की गलियों में कुछ ऐसी ही प्रतिक्रियाएं थीं. बांके और फ़ज़्ज़ु मियां रेडियो बंद कर शतरंज की बिसात पर बैठ गए.

उधर क्रीज़ पर कपिल का साथ देने आये रॉजर बिन्नी. दोनों ने टुकटुकाना शुरू किया.  इधर भारत में बांके लाल ने रेडियो खोला, मियां देखें भारत के लाल आल आउट हुए कि नही. उधर तभी बिन्नी साथ छोड़ चलते बने. स्कोर सात विकेट पर 77 रन. बांके ने बुरा सा मुंह बनाया और पिच्च से पान की पीक थूकी, सा…सातवां सूरमा गया…इससे बेहतर होता अगर गुल्ली-डंडा खेलते होते, कम से कम राष्ट्रीय खेल तो है.

35 ओवरों के बाद लंच ब्रेक हुआ. स्कोर 110 पर 7 विकेट कपिल देव ड्रेसिंग रूम में आये. वहां कोई नहीं था, सब छुपे हुए थे. आख़िर किस मुंह से सामने आते? टेबल पर एक कागज़ रखा था, जिस पर मोटे-मोटे हरफ़ों में लिखा था, सॉरी कैप्टेन. कपिल खामोश बैठे रहे. इधर मुल्क में कोई कह रहा था, चलो शुक्र है, सौ पार गए. डेढ़ सौ तक पहुँच जाएँ तो नाक कटने से बच जायेगी. उधर ड्रेसिंग रूम में भी यही फीलिंग थी. डेढ़ सौ में ज़िंबाबवे को लपेट लेंगे. 140 के स्कोर पर मदन लाल शर्मा (17) भी चले गए. 72 रन की साझेदारी की… किसी ने गहरी सांस ली, बहुत किया, कम से कम अपना फ़र्ज़ अदा कर गए.

सयैद किरमानी साहेब पधारे, कपिल को हौंसला बंधाया, तुम अपना नेचुरल गेम खेलो, हम दूसरा एंड सील करता है, 60 ओवर तक टिके रहे तो दो सौ तो बन ही जाएंगे. लेकिन कपिल के दिल में कुछ और था जिसे वो व्यक्त नहीं कर पाए. 60 ओवर तक टिकने का मतलब दो सौ नहीं काफी आगे जाना था. अब कपिल ने टुकटुकाने की बजाये ठोंकना शुरू किया.

इधर मुल्क में बंद हो चुके रेडियो-ट्रांजिस्टर फिर खुल गए…यार मज़ा आ रिया है, लौंडा बड़ी बेरहमी से ठुकाई कर रहा है…मैं तो बहुत पहले से कह रिया था कि पंजाबी जट्ट पुत्तर में बहुत दम है…बांके लाल और फ़ज़्ज़ु मियां भी शतरंज की बिसात समेत ट्रांजिस्टर पर जम गए.

करीब साढ़े छत्तीस साल हो चुके हैं, ट्रांजिस्टर पर कमेंटरी सुन रहा था मैं अपने पिता जी के साथ. मुझे वो इनिंग आज भी याद है. क्या चौके-छक्के मारे थे! 138 गेंद में 175 नॉट आउट, 16 चौके और 6 छक्के. गावस्कर इसे आज भी एक दिनी क्रिकेट की महानतम इनिंग कहते हैं. किरमानी भाई 24 पर नॉट आउट रहे और कपिल के साथ आठवें विकेट के लिए 126 रन बना डाले. जब इनिंग ख़त्म हुई तो स्कोर था 266 रन पर 8 विकेट, उम्मीद से बहुत ज़्यादा. ड्रेसिंग रूम में भी माहौल बिलकुल बदला हुआ था. सब राहत महसूस कर रहे थे. लेकिन कप्तान का सामना करने की हिम्मत किसी को नहीं हुई. आख़िर कल तक के कप्तान रहे गावस्कर उठे, पानी का गिलास लेकर अपने कप्तान कपिल को पेश किया. इस पानी के गिलास ने टीम की व्यथा कह डाली. कपिल के चेहरे पर अब कोई तनाव नहीं था. सिर्फ एक ही धुन थी, ज़िंबाबवे को जल्दी से जल्दी आउट करना है. हालांकि थोड़ी दुश्वारी आई.  बहरहाल, भारत ने ये मैच 31 रन से जीता. और बाकी तो हिस्ट्री है. भारत ने फ़ाइनल में पराक्रमी वेस्ट इंडीज़ को हरा कर वर्ल्ड कप जीता. बांके लाल और फ़ज़्ज़ु मियां बड़ी देर तक एक दूसरे से चिपके रहे. दोनों की आँखों में आंसू थे.

लेकिन कितनी बड़ी बदकिस्मती है ये कि उस दिन बीबीसी पर स्ट्राइक के कारण इस ज़बरदस्त मैच का टेलीकास्ट नहीं हो पाया. कपिल की ये महानतम इनिंग सिर्फ हरफ़ों में दर्ज है.